श्वेत रक्त कणिकाएं ( White Blood cells )- इनका निर्माण अस्थिमज्जा, लिम्फनोड में होता है।
- इनका जीवनकाल औसतन 1 से 4 दिन होता है एवं Lymphocyts का वर्षों तक भी।
- इनमें केन्द्रक पाया जाता है।
- इनकी आकृति अनिश्चित होती है (अमीबा के समान) एवं ये आकार में R.B.C. से बड़ी होती है (19 से 16 \muμm मोटी)।
- इनका प्रमुख कार्य शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करना है।
श्वेत रूधिर कणिकाएं मुख्यत 2 प्रकार की होती हैं
- ग्रेन्यूलोसाइट या कणिकामय – न्यूट्रोफिल्स (50-70%), इआसिनोफिल्स (3-5%), बेसोफिल्स (1-3%) होता है।
- अग्रेन्यूलोसाइट व कणिका रहित – लिम्फोसाइट्स (28-35%) तथा मोनोसाइट्स (5%)।
- न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) – W.B.C. में इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। इनका मुख्य कार्य जीवाणुओं का भक्षण करना है। इन्हें Microphases (माइक्रोफेजेज) कहते हैं।
- इआसिनोफिल्स (Eosinophills) – Allergy (एलर्जी), अस्थमा एवं कृमि के इन्फैक्शन होने से रूधिर में इनकी संख्या बढ़ जाती है।
- बेसोफिल्स – ये सबसे छोटी (10 \muμm) W.B.C. है तथा Mast cells द्वारा स्त्रावित पदार्थ हिंपैरीन, हिस्टामीन का वहन करती है।
- लिम्फोसाइटस – ये जीवनकाल वर्षों तक एन्टीबॉडीज (प्रतिरक्षी) का निर्माण करती है। जो बाह्य पदार्थें (एन्टीजन) से क्रिया करके उन्हें नष्ट करते हैं।
- मोनोसाइटस – ये सबसे बड़ी (16 \muμm) W.B.C. है। ये भी जीवाणु आदि बाह्य पदार्थों का भक्षण करती है। इन्हें मेक्रोफेजेज (Macrophages) भी कहते हैं।
- W.B.C. की संख्या 4000 से 11,000 / ml of Blood होती है।
- Blood Cancer में श्वेत रूधिर कणिकाओं की संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है। (1.5 लाख/mm3 तक)।
- कोई इन्फेक्शन बीमारी (जीवाणु) का आक्रमण होने पर भी इनकी संख्या बढ़ जाती है। परन्तु 1.5 से कम।