कार्ल लैंडस्टीनर ने सन् 1900 ई. में पता लगाया कि मनुष्य में रूधिर के चार वर्ग होते हैं तथा इन वर्गों को A, B, AB और 0 नाम दिया।
विभिन्न रूधिर वर्गों में भिन्नता का कारण R.B.C. की कोशिका झिल्ली पर पाये जाने वाले विशेष ग्लाइकोप्रोटीन होते हैं जिन्हें एन्टीजन कहते हैं।
एन्टीजन एवं एन्टीबॉडी
वर्ग | कोशिका R.B.C. में एन्टीजन | प्लाज्मा में प्रतिरक्षी | दिया जाने वाला रूधिर वर्ग | न दिया जाने वाला रूधिर वर्ग |
A | A (Antigen) | B(Antibody) | A तथा O | B तथा AB |
B | B | A | B तथा O | A तथा AB |
AB | A तथा B | कोई नहीं | A, B, AB, O | – |
O | कोई नहीं | A तथा B | O | A, B तथा AB |
AB रूधिर वर्ग वाला मानव सार्वत्रिक ग्राही तथा 0 रूधिर वर्ग वाला मानव सार्वत्रिक दाता कहलाता है।
भारत में सबसे अधिक रूधिर वर्ग B (34.5%) पाया जाता है तथा दूसरे नम्बर पर O रूधिर वर्ग तथा सबसे कम व्यक्ति AB रूधिर वर्ग के पाये जाते हैं।
1940 ई. में लैण्डस्टीनर तथा वीनर ने रूधिर में अन्य प्रकार के एन्टीजन का पता लगाया (खोज रिसस बन्दर में) जिसे Rh Factor कहा जाता है जिनमें यह उपस्थित उन्हें Rh+ एवं जिनमें यह Absent उन्हें Rh– कहते हैं।
इरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटेलिस : यदि पिता Rh+ एवं माता Rh– हो तो जन्म लेने वाले (प्रथम शिशु को छोड़कर) सभी सन्तानें गर्भावस्था या जन्म के कुछ समय बाद मर जाती है।
रूधिर की कमी होने पर एनिमिया रोग हो जाता है।
रक्त दाब स्फिग्मोमैनोमीटर से नापा जाता है। सामान्य व्यक्ति में रक्त दाब 120-80 mm/Hg होता है।