अधिगम के सिद्धान्त थार्नडाइक

अधिगम के सिद्धांतउद्दीपक अनुक्रिया सिद्धांत

प्रवर्तक – 1898 ( थार्नडाइक अमेरिका )

उद्दीपक अनुक्रिया से आशय

किसी उद्दीपक के माध्यम से अनुक्रिया का होना ही उद्दीपक अनुक्रिया कहलाती है।

थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धांत में अनुक्रिया से पूर्व उद्दीपक की उपस्थिति पर सर्वाधिक बल दिया। क्योंकि थॉर्नडाइक के अनुसार उद्दीपक के अभाव में अनुक्रिया नहीं हो सकती।

थॉर्नडाइक के अनुसार जब व्यक्ति के सम्मुख कोई नवीन उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तो व्यक्ति उससे प्रभावित होकर विभिन्न अनुक्रियाएँ करने लगता है। परंतु प्रारंभिक अनुक्रियाएँ गलत/अस्वाभाविक होती है लेकिन निरंतर अभ्यास के माध्यम से व्यक्ति की गलती में कमी होने लगती है और व्यक्ति का अधिगम प्रभावी हो जाता है।

थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन करने हेतु भूखी बिल्ली पर प्रयोग किया।   

(भूखी बिल्ली → पिंजरे में बंद →  बाहर मांस का टूकड़ा उद्दीपक – उद्दीपक को देखकर अनुक्रिया करना)

थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन करने हेतु मुख्य नियम बताये

  • तत्परता का नियम
  • अभ्यास का नियम
  • उपयोग का नियम
  • अनुपयोग का नियम

परिणाम व प्रभाव का नियम

  • संतोष का निय
  • असंतोष का नियम

थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धांत के पाँच गौण नियम बताये

  1. बहुप्रतिक्रिया का नियम
  2. मानसिक विन्यास का नियम
  3. आंशिक क्रिया का नियम
  4. आत्मीकरण का नियम
  5. सहचर्य परिवर्तन का नियम
  • अनुभव से लाभ उठाना
  • निरन्तर प्रयास पर बल
  • अभ्यास की क्रिया पर आधारित
  • करके सीखना
  • निराशा में आशा
  • आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता
  • छोटे बालकों को सीखानें में सहायक
  • मंद बुद्धि बालकों को सीखानें में सहायक
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