बाल विकास की अवस्थाएं कौन कौन सी है?
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बाल विकास की मूल तीन अवस्थाएँ हैं।
शैशवावस्था :- 0-2/0-5
मानव जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था शैशवावस्था मानी जाती हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस अवस्था की ग्रहणशीलता अधिक होती है।
शैशवावस्था की INFACY कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ IN-FARI से बना।
एडलर :- शैशवावस्था द्वारा जीवन का पूरा क्रम निश्चित होता है। (अर्थात् – शैशवावस्था की गति तथा लक्षण भविष्य के जीवन की ओर संकेत करते हैं।)
नोट:- शैशवावस्था जीवन की नीव होती है। सम्पूर्ण जीवन का विकास इसी के आधार पर होता है।
शैशवावस्था की आयु – 5 वर्ष तक मानी जाती है।
क्रो एवं क्रो – शैशवावस्था औसतन जन्म से पाँच वर्ष तक चलती है, जिसमें इन्द्रियाँ काम करने लगती हैं और बालक रेंगना चलना, बोलना सीखता है।
वास्तव में शैशवावस्था वह काल है, जिसमें शिशु निर्भरता से आत्म निर्भरता की ओर बढ़ता है।
हरलॉक ने शैशवावस्था का काल जन्म से दो सप्ताह बताया।
शैशवावस्था की परिभाषाऐं
- सि. फ्रायर्ड :- बालक-बालिकाओं को जो कुछ भी बनना होता है। वह 4-5 वर्ष की आयु में बन जाते हैं।
- स्ट्रेंग :- जीवन के प्रथम दो वर्षों में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है।
- ब्रिजेस :- 2 वर्ष की उम्र तक बालक में लगभग सभी संवेगों का विकास हो जाता है।
- जे. न्यूमैन :- 5 वर्ष तक की अवस्था शरीर और मस्तिष्क के लिए बड़ी ग्रहणशील रहती है।
- वेलेइनटाइन :- शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल। शैशवावस्था जीवन का महत्वपूर्ण काल।
- क्रो एवं क्रो :- 20वीं शताब्दी बालकों की शताब्दी है।
- रॉस :- शिशु कल्पना का नायक हो, अत: उसका भली प्रकार निर्देशक अपेक्षित है।
- एडलर :- शिशु के जन्म के कुछ समय बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में उसका स्थान क्या है।
- गेसल :- बालक प्रथम छ: वर्ष में 12 वर्ष से भी दुगुना सीख जाता है।
- सि. फ्रायर्ड :- शिशु में काम प्रवृति बहुत प्रबल होती है। पर वयस्कों की भाँति उसकी अभिव्यक्ति नहीं होती।
- वाटसन :- शैशवावस्था में सीखने की सीमा व तीव्रता विकास की अवस्था से बहुत अधिक होती है।
- रूसो :- बालक की आँख, हाथ, पैर उसके प्रथम शिक्षक होते हैं।
शैशवावस्था के उपनाम
- जीवन का महत्वपूर्ण काल
- सीखने का आदर्श काल
- भावी जीवन की आधारशिला
- संस्कारों के निर्माण का काल
- अतार्किक चिंतन की अवस्था
- खिलौनों की आयु (पूर्व बाल्यावस्था)
- पूर्व बाल्यावस्था
- प्रिय लगने वाली अवस्था
- पराधीनता की अवस्था
- पूर्व प्राथमिक विद्यालय की आयु
- पूर्व प्राथमिक विद्यालय की तैयारी की आयु
शैशवावस्था की विशेषताऐं
- नैतिक गुणों का अभाव
- मूल प्रत्यात्मक व्यवहार
- सामाजिक गुणों का अभाव
- तीव्र शारीरिक व मानसिक विकास
- सीखने की तीव्र गति
- संवेगों का प्रदर्शन
- कामप्रवृत्ति (सि.फ्रायर्ड के अनुसार)
- जिज्ञाषा प्रवृत्ति
- अनुकरण द्वारा सीखना
- सीमित मात्रा में कल्पना
- दूसरों पर निर्भरता
- संवेदनाओं/ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सीखना
- दोहराने की प्रवृत्ति
- खिलौनों में रूचि
- अभिप्रेरणा
- अधिगम के सिद्धांत स्कीनर, हल, गुथरी
- अधिगम के सिद्धांत गैस्टाल्टवाद के अनुसार
- अधिगम का सोपानिकी सिद्धांत
- क्षेत्रवादी के अनुसार अधिगम के सिद्धांत
बाल्यावस्था – 6-12 वर्ष
मनोवैज्ञानिकों ने इसे निर्माणकारी काल कहा है क्योंकि इस अवस्था में आदतों, व्यवहारों तथा इच्छाओं के प्रतिरूपों का निर्माण होता है तथा वह जीवनभर चलता रहता है।
ब्लेयर, जोन्स, सिम्पसन ने लिखा कि – बाल्यावस्था वह काल है जब व्यक्ति के मौलिक दृष्टकोणों, मूल्यों और विचारों को एक महत्वपूर्ण आकार मिलता है।
इस अवस्था में बालकों में – स्फूर्ति व चूस्ती अधिक होती है। इस कारण इसे स्फूर्ति की अवस्था भी कहते हैं।
सामाजिक विकास की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण अवस्था मानी जाती है।
वैदिक साहित्यों में बाल्यावस्था की ग्रहण एवं धारण की सर्वोत्तम अवस्था कहा गया है।
बाल्यावस्था की परिभाषाऐं
- सिम्पसन :- शैक्षिक दृष्टिकोण से जीवनक्रम में बाल्यावस्था से अधिक महत्वपूर्ण और कोई अवस्था नहीं है।
- कॉलब्रूश :- जीवन का अनोखा काल।
- रॉस :- छदम परिपक्वता का काल। मिथ्या परिपक्वता का काल।
- स्टेंग :- ऐसा शायद ही कोई खेल हो जिसे 10 वर्ष का बालक न खेलता हो।
- किलपेट्रिक :- बाल्यावस्था प्रतिद्वंद्वात्मक समाजीकरण की अवस्था है।
बाल्यावस्था की विशेषताऐं
- शारीरिक विकास में स्थिरता
- मानसिक क्रियाओं में वृद्धि
- जिज्ञासा की तुलना
- सामाजिक गुणों का विकास
- नैतिक गुणों का विकास
- संचयवृत्ति
- वैचारिक क्रिया की अधिकता
- बहिर्मुखी व्यक्तित्व
- रूचियों में परिवर्तन
- आत्मनिर्भरता की भावना
- सामाजिक प्रवृत्ति की प्रबलता
- चोरी करना
- झूठ बोलना
- भाषाई कौशलों का विकास
- भाषा का विकास
- हीन भावना का शिकार
- पक्षपात की भावना का विकास
- संवेगों की अस्थिरता
- खेलों में रूचि
- वस्तु संग्रहण की भावना
- गिरोह में रहने की आयु
- समलेंगी सद्भावना
- सामाजिक प्रदर्शन
- भाई-बहनों में झगड़ा
- निरउद्देश्य भ्रमण
- अदला-बदली की भावना
- मूर्त चिंतन
- मित्रों की संख्या अधिक
- परिश्रमहीनता
- रचनात्मक कार्य
किशोरावस्था
किशोरावस्था जीवन का संधिकाल कहलाता है। जहाँ बाल्यावस्था का अंत होता है तथा युवावस्था का प्रारम्भ।
ब्लेयर, जोन्स, सिम्पसन ने लिखा की – किशोरावस्था प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का वह काल है, जो बाल्यावस्था के अंत से प्रारम्भ होता है और प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भ में समाप्त होता है।
किशोरावस्था एक भावुक, संवेदनशील, कल्पनाशील एवं उन्मुक्त विचारों की अवस्था है।
क्रो एवं क्रो ने लिखा की – किशोरावस्था वर्तमान की शक्ति और भावी आशा को प्रस्तुत करता है।
इंग्लैंड की हेडो रिपोर्ट के अनुसार – ग्यारह एवं बारह वर्ष की उम्र में बालकों की नसों में एक ज्वार सा उठने लगता है, जिसे किशोरावस्था कहते हैं। यदि ज्वार की बाढ़ को समय पर ही उपयोग कर लिया जाए एवं इसकी शक्ति और धारा के साथ-साथ नयी यात्रा आरंभ कर दी जाये, तो सफलता प्राप्त की जा सकती है।
नोट :- प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में किशोरावस्था को कोमार्य के नाम से जाना जाता है। जिसका निर्माण दो शब्दों से मिलकर हुआ।
कु + मार कु → अवस्थित मार → काम
अर्थात् जिस अवस्था में काम का अव्यवस्थित स्वरूप हो उसे कोमार्य कहते हैं।
किशोरावस्था अंग्रेजी के Adolescence शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। जिसका शाब्दिक अर्थ – परिपक्वता से होता है। अर्थात् यह अवस्था परिपक्वता की ओर ले जाती है।
जरसील्ड ने लिखा की – किशोरावस्था वह समय है, जिसमें विकासशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।
1904 में स्टेनले हॉल ने Adolescence नामक पुस्तक की रचना की।
नोट :- परिपक्वता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग गेसल द्वारा किया गया।
किशोरावस्था के सिद्धान्त
त्वरित विकास सिद्धान्त – स्टेनले हॉल – स्टेनले हॉल के अनुसार किशोरावस्था में जो भी परिवर्तन होते हैं, वह तत्काल/अचानक होते हैं।
क्रमिक विकास का सिद्धान्त – थॉर्नडाइक – थॉर्नडाइक के अनुसार किशोरावस्था में जो भी परिवर्तन होते हैं, वह तत्काल न होकर क्रमिक रूप से होते हैं।
किशोरावस्था की परिभाषाऐं
- स्टेनले हॉल :- किशोरावस्था संघर्ष, तनाव, तूफान की अवस्था है।
- रॉस/जोन्स :- किशोरावस्था शैशवावस्था की पुनरावृत्ति है।
- एरिक्सन :- किशोरावस्था में बालक स्वयं के व्यक्तित्व की स्पष्टीकरण चाहता है।
- किलपेट्रीक :- किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।
- कॉलसनिक :- किशोरावस्था में किशोर प्रौढ़ व्यक्ति को अपने मार्ग की बाधा समझते हैं।
- स्टेनले हॉल :- किशोरावस्था एक नवीन जन्म है जिसमें बालक नवीन विशेषताऐं प्रकट करता है।
- रॉस :- किशोरावस्था में किशोर समाज के आदर्शों का पालन पोषण करते हैं।
किशोरावस्था के उपनाम
- जीवन का कठिन काल
- संघर्ष, तनाव, तूफान का काल
- शैशवावस्था की पुनरावृत्ति
- तार्किक चिंतन की अवस्था
- जीवन का स्वर्णकाल
- जीवन की बसंतऋतु
- संक्रमण की दशा
- TEEN AGE
- देवदूत अवस्था
किशोरावस्था की विशेषताएँ
- द्रूत शारीरिक व मानसिक विकास
- भावात्मक विकास
- आध्यात्मिक विकास
- विरोधी मानसिकता
- पीढ़ियों में अंतर के कारण विचारों में अंतर
- दिवास्वप्न की अधिकता
- आत्मचेतना
- आत्मसम्प्रत्य का ज्ञान
- भविष्य की चिंता
- व्यवसाय चयन की समस्या
- समायोजन की समस्या
- संवेगात्मक व भावात्मक समस्या
- पलायन
- नशीले पदार्थों का सेवन
- अपनों से बिछुड़ने का गम
- वित्तीय समस्या
- देशभक्ति की भावना
- सामाजिक कार्यों में रूचि
- वीर पूजा की भावना
- प्रतियोगी भावना
- नेतृत्व के गुणों का विकास
- उत्तराधिकार की भावना
- विषमलेंगी सद्भावना