बाल विकास परिचय
विकास एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है,जो संसार के प्रत्येक जीव में पायी जाती है।विकास की प्रक्रिया गर्भ-धारण से मृत्यु तक किसी न किसी रूप में निरन्तर चलती रहती है मानव विकास का अध्ययन प्राकृतिक विज्ञान में भी होता है और मनोविज्ञान में भी होता है।
मानव विकास का अध्ययन मनोविज्ञान की जिस शाखा में किया जाता है, उसे बाल मनोविज्ञान कहा जाता है।परन्तु आधुनिक मनोवैज्ञानिक अवधारणा में इसे बाल-विकास कहा जाने लगा।
बाल-विकास के इतिहास का अतीत अधिक लम्बा नहीं है यूनानी दार्शनिको के अनुसार बाल्यावस्था की घटनाएँ बालक के बाद में विकास पर भी गहरा प्रभाव डालती है।
जीन-पियाजेने बाल-विकास के क्षेत्र
- The language and thought of child.
- The conception of the world.
- The Moral Judgement of child mind (1930) नामक पुस्तकों की रचना की।
भारत में बाल-मनोविज्ञान की शाखा का संचालन 1930 में हुआ।
बाल मनोविज्ञान नियामक न होकर विधायक विज्ञान है। इसमें बालक के व्यवहार के सन्दर्भ में – क्या, क्यों, कैसे का जवाब दिया जाता है।
बाल विकास परिभाषा
क्रो एवं क्रो
बाल–मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो व्यक्ति के विकास का वैज्ञानिक अध्ययन गर्भकाल किशोरावस्था तक करता है।
जेम्स ड्रेवर
बाल-मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें जन्म से परिपक्वता तक के बालक की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
आइजनेक
बाल-मनोविज्ञान का संबंध बालको में मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के विकास से है।
बाल मनोविज्ञान – बाल विकास
- अध्ययन क्षेत्र सीमित – अध्ययन क्षेत्र व्यापक।
- गर्भावस्था से किशोरावस्था तक अध्ययन-गर्भधारण से परिपक्वता तक।
- विकास की अवस्थाओं का सामान्य अध्ययन–सूक्ष्म व गहरा अध्ययन।
- क्या व कौनसे परिवर्तन होते है – परिवर्तन क्यों होता है उनकी प्रक्रिया व प्रभावों का अध्ययन।
वंशक्रम एवं वातावरण
वंशक्रम का मूल आधार (कोष) (CELL) है। CELL द्वारा ही मानव शरीर का निर्माण होता है। कोष के केंद्रक में गुणसुत्र पाये जाते है और इसी में आनुवांशिकता के संवाहक (जीन) पाये जाते है। जो संततियों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संक्रमित होते रहते है। इसी प्रक्रिया को वंशक्रम कहते है।
जेम्स ड्रेवर
शारीरिक तथा मानसिक विशेषताओं का संतानों में स्थानान्तरण ही वंशक्रम कहलाता है।
रुस बेनीडीक्ट – वंशानुक्रम माता-पिता से संतानो को प्राप्त होने वाले गुण है।
पीटरसन – व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजों की जो भी विशेषताएँ प्राप्त करता है, वंशानुक्रम कहलाता है।
बी.एन. झा – वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है।
वुडवर्थ
बालक के जन्म के समय माता पिता में उपस्थित गुणों का संतानों के स्थानान्तरण ही वंशक्रम कहलाता है।
डगलस एवं हॉलेण्ड
व्यक्ति की वे सभी शारीरिक सरंचनाएँ एवं क्रियाएँ वंशक्रम में सम्मिलित होती है। जो वह अपने माता-पिता एवं पूर्वजों से प्राप्त करता है।
प्लेटो ने अपने पुस्तक (रिपब्लिक) में लिखा कि बाल्यावस्था में दिये गये प्रशिक्षण का प्रभाव बालक की व्यवसायिक दक्षताओं पर भी पड़ता है।
बाल विकास नोट्स
17वीं शताब्दी में जॉन एमॉस कमेनियस ने 1628 में School Infancy की स्थापना की। जिसमें उन्होंने बालक की क्रियाओं पर बल दिया।
18वीं शताब्दी में कुछ दार्शनिकों जैसे-जॉन लॉक, हॉब्स तथा रूसों ने बालकों के अध्ययन पर विशेष बल दिया।
जॉन लॉक ने बालकों की रूचियों, इच्छाओं और क्षमताओं पर विशेष बल दिया था और बताया की व्यक्तित्व निर्माण में वातावरण का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
रूसो ने बालकों को महत्व देते हुए बालकेन्द्रित शिक्षा का विचार दिया अपनी पुस्तक EMILE में।
18वीं शताब्दी में पेस्टालॉजी ने (1774) में सर्वप्रथम बाल-विकास का वैज्ञानिक विवरण प्रस्तुत किया। यह Baby Biography पर आधारित था।
19वीं शताब्दी में अमेरिका में बाल अध्ययन चला, जिसके जनक स्टेनले हॉल थे, जिन्होंने CHILD STUDY SOCIETY (व) CHILD-WELL-FARE ORGANISATION नामक संस्थाओं की स्थापना की।
19वीं शताब्दी में टेने ने (1869) में INFANT CHILD DEVELOPMENT नामक पुस्तक की रचना की।
डार्विन ने BIOGRAPHICAL SKETCH OF AN INFANT नामक पुस्तक की रचना की।
1881 में प्रेयर नामक मनोवैज्ञानिक ने THE MIND OF CHILD नामक पुस्तक की रचना की।
1891 में स्टेनले हॉल ने PEDALOGICAL SEMINARY का संचालन करवाया।
जर्मनी के मनोवैज्ञानिक टाइडमेन ने 1787 में अपने बच्चो के शारीरिक व मानसिक विकास का निरीक्षण कर एक विवरण तैयार किया- जिसे Case Study कहा गया। (जीवन इतिहास विधि) कहा गया।
इंग्लैंड ने वि.सल्ली ने British Association for Child Study की स्थापना की।
गैसल नामक मनोवैज्ञानिक ने Infancy and Human growth तथा Guidance of mental growth नामक पुस्तकों की रचना की।