बीज कोष की निरंतरता का सिद्धांत
बीजमेन के अनुसार शरीर का निर्माण करने वाले मूल जीवाणु कभी नष्ट नहीं होते। यह अण्डाणु एवं शुक्राणु के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानातंरित होते रहते हैं। इस प्रकार मूल जीवाणु में हस्तांतरण की विशेषता निहित होती है।
इस कारण एक व्यक्ति अपने पूर्वजों का प्रतिरूप होता है और उसमें कई पीढ़ीयों तक के पूर्वजों के गुण समाहित होते हैं।
बाल-विकास वंशक्रम के सिद्धांत अध्ययन व प्रभाव एवं वातावरण की अवधारणा
बीजमेन के अनुसार शरीर में दो कोष होते हैं
1. देहिक कोष – शरीर निर्माण
2. लैंगिंक कोष – गुण/दोषों का स्थानान्तरण
अर्जित गुणो के वितरण का सिद्धांत – इसे सिद्ध करने हेतु – कई महत्वपूर्ण अध्ययन किये गये
अर्जित गुणों के अवितरण का सिद्धांत – बीजमेन के अनुसार वातावरण से अर्जित गुणों का प्रयोग उत्पन्न होने वाली संतानों पर नहीं पड़ता।
बिजमेन ने अपने सिद्धांत का प्रयोग करने हेतु चूहे की पूँछ को काटकर प्रयोग किया।
प्रत्यागमन का सिद्धांत – मेण्डल – इसे मेण्डलवाद के नाम से भी जाना जाता है।
प्रत्यागमन से आशय – संतानों में माता-पिता से विपरीत लक्षणों का प्रकट होना ही प्रत्यागमन कहलाता है।
जैसे – लंबे माता-पिता की संतानो का बोना पैदा होना + काले के गोरी संतानों का पैदा होना।
मेण्डल के अनुसार माता-पिता में उपस्थित गुणसूत्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी के रुप में संतानों में स्थानान्तरित होते रहते हैं।
मेण्डल ने माता-पिता में दो प्रकार के सूत्र बताये है
- जागृत सूत्र – माता – पिता से संबंध
- सुप्तसूत्र – पूर्वजों से संबंध
मेण्डल ने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन करने हेतु दो प्रयोग किये
- छोटी मटर – बड़ी मटर
- सफेद चूहे – काले चूहे पर प्रयोग
मेण्डल ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध किया कि प्रथम पीढ़ी के लक्षण द्वितीय पीढ़ी में प्रकट न होकर तृतीय पीढ़ी में प्रकट होते है। जिसका अनुपात 3 : 1 होता है।
उत्पाद सूत्र की निरंतरता का सिद्धांत
गाल्टन – गाल्टन के अनुसार माता- पिता में उपस्थित सूत्र पीढ़ी दर पीढ़ी 50 : 50 के रुप संतानों में स्थानांतरित होते रहते है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।
गाल्टन ने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन करने हेतु – श्रेणी विधि का प्रयोग किया, जो सदैव घटते क्रम को प्रकट करती है।
- जपुक वंश का अध्ययन – डगलस – 1720
- डवर्ड वंश का अध्ययन – विनशिप – 1900
- कालीकाक वंश का अध्ययन – गोडार्ड
- गाल्टन का अध्ययन – गाल्टन
- जुड़वा बच्चों का अध्ययन – गाल्टन
बाल-विकास पर वंशक्रम के प्रभाव
- शारीरिक संरचना का प्रभाव
- मानसिक विकास पर प्रभाव
- सामाजिक विकास पर प्रभाव
- व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव
- क्रियाशीलता पर प्रभाव
बाल-विकास पर वंशक्रम के वातावरण
वायुमण्डल में उपस्थित भौतिक एवं अभौतिक तत्वों का वह संगठन जो मानव जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता हो-वातावरण कहलाता है।
वातावरण को पर्यावरण भी कहा जाता है। मानव विकास में जितना वंशक्रम का योगदान होता है। उतना ही वातावरण का भी होता है।
व्यवहारवादियों ने वंशक्रम की अपेक्षा वातावरण को महत्व प्रदान किया।
- रच – मानव व्यवहार में परिवर्तन करने वाली प्रक्रिया है।
- एनास्टरी – वंशक्रम के अतिरिक्त प्रभावित करने वाला प्रत्येक कारक वातावरण कहलाता है।
- रॉस – वातावरण एक बाह्य शक्ति है जो मानव जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालती है।
- वुडवर्थ – वातावरण में वे समस्त बाह्य तत्व आ जाते हैं जिन्होंने जीवन प्रारंभ करने के समय व्यक्ति को प्रभावित किया।
- इलियट – चेतन पदार्थ की किसी इकाई के प्रभावकारी उद्दीपन एवं अन्त:क्रिया के क्षेत्रों को वातावरण कहते हैं।
- वेल्ड – व्यक्ति का वातावरण इन सभी उत्तेजनाओं का योग है, जिनको वह जन्म से मृत्यु तक ग्रहण करता है।
- दीना भेड़िया पर अध्ययन – 1867
- रामू भेड़िया पर अध्ययन – 1954
- जिंक महोदय का अध्ययन – 30 लोगों पर
- केण्डोल महोदय का अध्ययन
- जोर्डन का अध्ययन
- फ्रीमेन महोदय का अध्ययन
- कुले महोदय का अध्ययन