अधिगम का सोपानिकी सिद्धांत
रॉबर्ट गेने – कन्डीशन ऑफ लर्निंग – रॉबर्ट गेने ने अधिगम की सोपानिकी प्रक्रिया में अधिगम के आठ प्रकार बताये
मिलर का सूचना प्रौद्योगिकी सिद्धांत – मिलर
सूचना से आशय – किसी भी विषयवस्तु से संबंधित वह जानकारी जिसका किसी न किसी प्रकार का कोई न कोई अर्थ प्रकट होता हो तथा उसे प्रेषित किया जा सकता हो, सूचना कहलाती है।
मिलर के अनुसार बालक-बालिकाओं तक शिक्षक द्वारा अपने विषय वस्तु आधारित ज्ञान को पहचानने के लिए जिन साधनों का प्रयोग किया जाता है, सूचना प्रौद्योगिकी कहलाती है।
- सूचना स्त्रोत – कौन
- सूचना प्रारूप – कितना देना
- सूचना माध्यम – कैसे देना
- सूचना उद्देश्य – क्या देना
- सूचना सामग्री – क्या देना
- प्राप्तकर्त्ता
- प्रत्युत्तर
संरचनात्मकता/निर्मितवाद – जेरोम ब्रूनर
संरचनात्मक शब्द से आशय ज्ञान की संरचना से है। निर्मितवाद शब्द की उत्पत्ति मनोविज्ञान के संज्ञानात्मक क्षेत्र से मानी जाती है। जेरोम ब्रूनर के अनुसार बालकों को इस प्रकार से पढ़ाया जाये जिससे की उनकी विचार शक्ति, कल्पना शक्ति, सृजनात्मकता का विकास हो।
जेरोम ब्रूनर का मानना है कि जो भी विषयवस्तु पढ़ायी जाये उसकी मूल संरचना, प्रकृति, सिद्धांतों, उद्देश्यों से बालकों को पूर्व में ही अवगत करवा देना चाहिये।
- सीखना सरल हो जाता है।
- बालक स्वयं रूचि उत्पन्न करता है।
- ऐसा ज्ञान स्थायी होता है।
- ऐसे ज्ञान का स्थानान्तरण किया जा सकता है।
- अभिप्रेरणा
- अधिगम के सिद्धांत स्कीनर, हल, गुथरी
- अधिगम के सिद्धांत गैस्टाल्टवाद के अनुसार
- अधिगम का सोपानिकी सिद्धांत
- क्षेत्रवादी के अनुसार अधिगम के सिद्धांत
निर्मितवाद की विशेषताएँ
- निर्मितवाद एक छात्र केन्द्रित प्रक्रिया है।
- इसमें बालक स्वयं ज्ञान का सृजन करते हैं।
- इसमें नवीन ज्ञान का सृजन पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाता है।
- निर्मितवाद पूर्व ज्ञान के अनुभव पर बल देता है।
- यह छात्रों की सक्रियता पर बल देता है।
- यह अर्थपूर्ण अधिगम पर बल देता है।
- इसमें बालकों के ज्ञान की पर्याप्तता की जाँच की जाती है।
- इससे बालकों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है।
- यह बालकों की आपसी साझेदारी व अंत:क्रिया पर बल देता है।
निर्मितवाद के प्रकार
- संज्ञानात्मक निर्मितवाद – जेरोम ब्रूनर
- सामाजिक निर्मितवाद – वाग्गोत्स्की
- जिज्य निर्मितवाद – जेरोम ब्रूनर
निर्मितवाद की अवस्थाएँ
- विधि निर्माण अवस्था – 0-2 वर्ष
- प्रतिमा निर्माण अवस्था – 3-12 वर्ष
- चिह्ननिर्माण अवस्था – 12 से ऊपर