तारागढ़ दुर्ग अजमेर | Taragarh Fort Ajmer

तारागढ़ दुर्ग अजमेर

  • गिरि दुर्ग
  • निर्माण :-  चौहान शासक अजयपाल द्वारा
  • समय :- 7वीं सदी में।
  • स्थान :- अजमेर में तारागढ़ पर्वत की बीठली पहाड़ी पर।
  • उपनाम :- गढ़बीठली दुर्ग, अजयमेरु दुर्ग, राजपुताने की कुँजी, राजस्थान का जिब्राल्टर।

इस दुर्ग के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीर साहब की दरगाह है। यह दरगाह तारागढ़ के प्रथम गवर्नर मीर हुसैन खिंगसवार की है।

Taragarh Fort Ajmer

  • बिशप हैबर ने तारागढ़ दुर्ग को ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ की संज्ञा दी।
  • मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज पृथ्वीराज ने अपनी वीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा।
  • शीशाखान :- तारागढ़ पहाड़ी के ठीक नीचे अवस्थित प्राचीन गुफा।

हरविलास शारदा (इतिहासविद्) ने इस दुर्ग को भारत का प्रथम दुर्ग माना है।

प्रवेश द्वार :- विजय पोल, लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा, भवानी पोल, हाथी पोल, अरकोट दरवाजा। इस दुर्ग की प्राचीर में 14 बुर्जे हैं जिनमें घूँघट, गूगड़ी, फूटी बुर्ज, नक्कारची की बुर्ज, शृंगार चँवरी बुर्ज, पीपली बुर्ज, दौराई बुर्ज, फतेह बुर्ज आदि प्रमुख हैं।

  • दुर्ग के भीतर नाना साहब का झालरा, इब्राहिम का झालरा एवं गोल झालरा आदि बड़े जलाशय विद्यमान हैं।
  • घोड़े की मजार इसी दुर्ग में है।
  • रानी उमादे (रुठी रानी) जोधपुर शासक मालदेव की पत्नी थी, जिसने अंतिम दिनों में अपना जीवन इसी दुर्ग में बिताया था।
  • राव मालदेव ने अजयमेरु दुर्ग में किले के ऊपर अरहठ से पानी पहुँचाने का प्रबन्ध किया था।
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