साँसी जनजाति की उत्पत्ति सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है। सांसी जनजाति राज्य के भरतपुर जिले एवं झुंझुनूं के कुछ भागों में पाई जाती हैं।
सांसी जनजाति राजस्थान
- जनसंख्या :- 86524
- यह खानाबदोश जनजाति हैं।
- इसे दो भागों में बांटा जा सकता हैं – (i) बीजा (ii) माला
सामाजिक जीवन
- ये लोग बहिर्विवाही होते हैं अर्थात् एक विवाह में ही विश्वास रखते हैं।
- इनमें विधवा विवाह का प्रचलन नहीं हैं।
- सांसी जनजाति भाखर बावजी को अपना संरक्षक देवता मानती है।
- ये लोग नीम, पीपल, बरगद आदि वृक्षों की पूजा करते हैं।
- सांसी जनजाति के लोग चोरी को विद्या मानते हैं।
कूकड़ी की रस्म :- सांसी जनजाति में प्रचलित रस्म जिसमें लड़की को विवाहोपरांत अपने चरित्र की परीक्षा देनी होती है।
- प्रमुख त्यौहार :- होली एवं दीपावली।
- यह जनजाति लोमड़ी एवं साँड का माँस खाना अत्यधिक पसन्द करती हैं।
- सांसी जनजाति में नारियल की गिरी के गोले के लेन-देन से सगाई की रस्म पूरी होती है।
इस जनजाति के विवाह में तोरण या चंवरी नहीं बनाई जाती है बल्कि केवल लकड़ी का खम्भा गाड़ कर वर-वधू उसके सात फेरे लेते हैं।
यह जनजाति अपने आपसी झगड़ों के निपटारे के लिए हरिजन जाति के व्यक्ति को मुखिया बनाती हैं।
अर्थव्यवस्था
- ये लोग घुमक्कड़ होते हैं तथा इनका कोई स्थायी व्यवसाय नहीं होता हैं। यह हस्तशिल्प व कुटीर उद्योगों में संलग्न हैं।