यह राज्य की कुल जनजातियों का 0.99 प्रतिशत हैं। सहरिया जनजाति की जनसंख्या 1.11 लाख हैं। वनवासी जाति। सहरिया जनजाति की उत्पत्ति फारसी भाषा के ‘सहर’ शब्द से हुई जिसका अर्थ जंगल होता है।
सहरिया जनजाति राजस्थान
राज्य की 99.2 प्रतिशत सहरिया जनजाति बारां जिले में किशनगज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती हैं। कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक ‘Travels in Western India’ में सहरिया जनजाति को भीलों की एक शाखा माना है।
सहरिया जनजाति का सामाजिक जीवन
- भंडेरी :- आटा/अनाज रखने की कोठरी।
- धारी संस्कार :- सहरिया जनजाति का मृत्यु से जुड़ा संस्कार।
- टापरी :- मिट्टी, पत्थर, बाँस, लकड़ी और घास-फूस से निर्मित सहरियाओं के घर।
- पंचायत :- यह सहरिया समुदाय की महत्वपूर्ण संस्था है जिसके तीन स्तर (पंचताई, एकदसिया एवं चौरासिया) होते हैं। चौरासिया सबसे बड़ी पंचायत है।
- सहरिया जनजाति में पुरुष वर्ग में गोदना वर्जित है।
- सहरिया समुदाय में नारी को व्यवहारिक रूप से पूर्ण प्राथमिकता एवं स्वतंत्रता प्राप्त है।
- सहरिया समुदाय में दहेज प्रथा प्रचलित नहीं है।
Sahariya Janjati
हथाई :- सहराना के मध्य में एक छतरीनूमा गोल या चौकोर झोंपड़ी या ढालिया। यह सहरिया समाज की सामुदायिक सम्पत्ति होती है।
- गौत्र सहरिया सामाजिक संगठन का महत्वपूर्ण आधार है।
- पिता की मृत्यु के बाद ज्यैष्ठ पुत्र ही परिवार का मुखिया बनता है।
- बहुपत्नी प्रथा एवं विधवा विवाह का प्रचलन।
- फला – सहरिया जनजातियों के गाँव की सबसे छोटी इकाई।
- सहरोल – सहरिया जनजाति के गाँव
- सहराना – सहरिया जनजाति की बस्ती।
- कोतवाल – इस सहरिया जनजातियों के मुखिया को कोतवाल कहते हैं।
- इनमें साक्षरता अत्यन्त कम हैं।
सहरिया जनजाति में दीपावली के पर्व पर ‘हीड़’ गाने की परम्परा प्रचलित है। सहरिया जनजाति के स्त्री-पुरुष सामूहिक नृत्य नहीं करते हैं।
- सहरिया जनजाति का कुंभ :- सीताबाड़ी का मेला (ज्येष्ठ अमावस्या)।
- कपिलधारा का मेला कार्तिक पूर्णिमा को बारां में भरता है।
- यह जनजाति भारत सरकार द्वारा घोषित ‘आदिम जनजाति समूह’ में शामिल है। (राजस्थान की एकमात्र जनजाति)।
- सहरिया जनजाति विकास कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा वर्ष 1977-78 में प्रारम्भ किया गया।
सहरिया पुरुष खपटा (साफा) सलूका (अंगरखी) एवं पंछा (घुटनों तक पहनी जाने वाली धोती) नामक वेशभूषा पहनते हैं।
- प्रिय लोकदेवता :- तेजाजी।
- कुलदेवी :- कोड़िया देवी।
- आदिगुरु :- वाल्मिकी।
- लेंगी :- सहरिया समुदाय में मकर संक्रान्ति के अवसर पर लकड़ी के डण्डों से खेला जाने वाला खेल।
- इस समाज में भीख माँगना वर्जित है।
- सहरिया समुदाय में मृतक का श्राद्ध करने क परम्परा नहीं है।
आर्थिक जीवन
समतल भूमि के स्थान पर मुख्यत: ज्वार की खेती करते हैं। वनों से लकड़ी व वन उपज एकत्र करना भी इनका मुख्य कार्य हैं।
- सहरिया :- भारत सरकार द्वारा घोषित राजस्थान की एकमात्र आदिम जनजाति।
- मामूनी की संकल्प संस्था का सम्बन्ध सहरिया जनजाति से है।
- इस जनजाति में भीलों की तरह गोमाँस खाना वर्जित माना गया है।
- इसमें मृतक को जलाने की प्रथा प्रचलित है।
- नातरा की प्रथा प्रचलित है।
लोकामी :- सहरिया जनजाति द्वारा दिया जाने वाला मृत्यु भोज। लीला मोरिया विवाह की प्रथा से जुड़ा हुआ संस्कार है, जो सहरिया जनजाति से संबंधित है।