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राजस्थान की महिला संत
मीराबाई
- 16वीं सदी की प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवयित्री व गायिका।
- जन्म :- 1498 में वैशाख शुक्ला तृतीया (आखातीज) के दिन कुड़की (पाली) में।
- पिता :- रतन जी राठौड़ (बाजोली के जागीरदार)
- दादा :- राव दूदा
- बचपन का नाम :- पेमल
- विवाह :- 1516 में भोजराज से (राणा सांगा का ज्येष्ठ पुत्र)
- गुरु :- संत रैदास व रूप गोस्वामी।
- रचनाएँ :- पदावली, टीका राग गोविन्द, नरसी मेहता की हुंडी, रुक्मिणी मंगल, सत्यभामाजी नू रुसणो।
- मीरा बाई ने सगुण भक्ति का सरल मार्ग भजन, नृत्य एवं कृष्ण स्मरण को बताया।
- मीरा के निर्देशन में रतना खाती ने ‘नरसी जी रो मायरो’ की रचना ब्रज भाषा में की।
- उपनाम :- राजस्थान की राधा।
- मीराबाई ने अपने जीवन के अंतिम दिन गुजरात के डाकोर स्थित रणछोड़ मंदिर में गुजारे।
गवरी बाई
- डूंगरपुर के नागर कुल में जन्म।
- इन्होंने कृष्ण को पति के रूप में स्वीकार कर कृष्ण भक्ति की।
- उपनाम :- वागड़ की मीरा।
- रचना :- कीर्तनमाला।
- डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने गवरी बाई के प्रति श्रद्धास्वरूप बालमुकुन्द मन्दिर का निर्माण करवाया था।
- गवरी बाई ने अपनी भक्ति में हृदय की शुद्धता पर बल दिया।
संत रानाबाई
- जन्म :- 1504 ई. में हरनावां (नागौर) में।
- दादा :- जालम जाट
- पिता :- रामगोपाल
- संत राना बाई ने खोजी जी महाराज से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की।
- राना बाई कृष्ण भक्ति की संत थी।
- गुरु :- संत चतुरदास।
- उपनाम :- राजस्थान की दूसरी मीरा।
- राना बाई ने 1570 में फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी के दिन हरनावा में जीवित समाधि ले ली।
संत करमेती बाई
- पिता :- परशुराम कांथड़िया (खण्डेला निवासी)
- कृष्ण भक्ति की संत
- इन्होंने वृन्दावन के ब्रह्मकुण्ड में साधना की।
- मंदिर :- खण्डेला में।
संत दया बाई
- चरणदास जी की शिष्या / राधा कृष्ण भक्ति की उपासिका।
- रचित ग्रन्थ :- दयाबोध, विनय मालिका।
- समाधि :- बिठूर।
संत सहजो बाई
- राधाकृष्ण भक्ति की संत नारी।
- चरणदासी मत की प्रमुख संत।
- रचित ग्रन्थ :- सोलह तिथि, सहज प्रकाश।
संत भूरी बाई अलख
- मेवाड़ की महान महिला संत।
- इन्होंने निर्गुण-सगुण समन्वित भक्ति को स्वीकार किया।
- भूरीबाई उदयपुर की अलारख बाई तथा उस्ताद हैदराबादी के भजनों से प्रभावित थी।
संत नन्ही बाई
- खेतड़ी की सुप्रसिद्ध गायिका।
- दिल्ली घराने से सम्बन्धित तानरस खाँ की शिष्या।
संत ज्ञानमति बाई
- कार्यक्षेत्र :- गजगौर (जयपुर)
- इनकी 50 वाणियाँ प्रसिद्ध हैं।
संत रानी रुपादे
- निर्गुण भक्ति उपासिका।
- राव मल्लीनाथ की रानी।
- गुरु :- नाथजागी उगमासी।
- इन्होंने अलख को पति रूप में स्वीकार कर ईश्वर के एकत्व का उपदेश दिया था।
- देवी सन्त के रूप में रानी रुपादे तोरल जेसल में पूजी जाती है।
संत समान बाई
- कार्यक्षेत्र :- अलवर
- कृष्ण उपासिका।
संत ताज बेगम
- कृष्ण भक्ति की संत नारी।
- गुरु :- आचार्य विट्ठलनाथ।
- वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बन्धित
- कार्यक्षेत्र :- कोटा
संत करमा बाई
- कृष्णोपासिका। अलवर से सम्बद्ध।
संत कर्मठी बाई
- कृष्णोपासिका। वृन्दावन में साधना की।
- कार्यक्षेत्र :- बागड़ क्षेत्र।
संत जनसुसाली बाई
- हल्दिया अखेराम की शिष्या।
- रचित ग्रन्थ :- सन्तवाणी, गुरुदौनाव, अखैराम, लीलागान, हिण्डोरलीला की मल्हार राग, साधु महिमा, बन्धु विलास।
संत करमा बाई
- नागौर के जाट परिवार में जन्म।
- भगवान जगन्नाथ की भक्त कवियत्री।
- मान्यता है कि भगवान ने उनके हाथ से खीचड़ा खाया था। उस घटना की स्मृति में आज भी जगन्नाथपुरी में भगवान को खीचड़ा परोसा जाता है।
संत फूली बाई
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