राजस्थान के सम्प्रदाय
रामस्नेही सम्प्रदाय
रामानंद के निर्गुण शिष्यों की परम्परा से विकसित निर्गुण सम्प्रदाय।
- शाहपुरा (भीलवाड़ा) :- रामचरण जी
- रेण (नागौर) :- दरियाव जी
- सिंहथल (बीकानेर) :- हरिरामदास जी
- खेड़ापा (जोधपुर) :– रामदासजी
निर्गुण-निराकार राम का नाम स्मरण ही रामस्नेही भक्त अपनी मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ अथवा एकमात्र साधन मानता है।
सद्गुरु एवं सत्संग को इस सम्प्रदाय का प्राण तत्व माना गया है। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा आदि साधना पद्धतियों का रामस्नेही सम्प्रदाय में निषेध किया गया है।
बाह्य आडम्बरों व जातिगत भेदभाव का प्रबध विरोध, गुरु की सेवा, सत्संगति एवं राम नाम स्मरण आदि इनके प्रमुख उपदेश है।
इस सम्प्रदाय में निर्गुण भक्ति तथा सगुण भक्ति की रामधुनी तथा भजन कीर्तन की परम्परा के समन्वय से निर्गुण निराकार परब्रह्म राम की उपासना की जाती है। इस सम्प्रदाय में राम दशरथ पुत्र राम न होकर कण-कण में व्याप्त निर्गुण-निराकार परब्रह्म है।
रामद्वारा – रामस्नेही सम्प्रदाय का सत्संग स्थल। शाहपुरा (भीलवाड़ा) रामस्नेही सम्प्रदाय की मुख्य पीठ है जहाँ प्रतिवर्ष फूलडोल महोत्सव मनाया जाता है।
विश्नोई सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- जाम्भोजी। (1485 ई. में) (कार्तिक कृष्णा 8)
- निर्गुण सम्प्रदाय (निराकार विष्णु (ब्रह्म) की उपासना पर बल)
- मुख्य पीठ :- मुकाम-तालवा (बीकानेर)
अनुयायी 29 नियमों का पालन करते हैं, जिसमें हरे वृक्षों के काटने पर रोक, जीवों पर दया, नशीली वस्तुओं के सेवन पर प्रतिबन्ध, प्रतिदिन सवेरे स्नान, हवन एवं आरती तथा विष्णु के भजन करना, नील का त्याग आदि शामिल है।
पर्यावरण संरक्षण हेतु प्राणों तक का बलिदान कर देने के लिए प्रसिद्ध सम्प्रदाय। यह सम्प्रदाय ईश्वर को सर्वव्यापी तथा आत्मा को अमर मानता है। इस सम्प्रदाय में मोक्ष की प्राप्ति हेतु गुरु का सान्निध्य आवश्यक माना जाता है।
- सम्प्रदाय के अन्य तीर्थ स्थल :- जाम्भा (फलौदी-जोधपुर), जागुल (बीकानेर) रामड़ावास (पीपाड़-जोधपुर)
- सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ :- जम्ब सागर (120 शब्द और 29 उपदेश)। इस सम्प्रदाय में नामकरण, विवाह, अन्त्येष्टि आदि संस्कार कराने वाले को ‘थापन’ कहते है।
जसनाथी सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- जसनाथ जी।
- प्रमुख पीठ :- कतरियासर (बीकानेर)
- मूर्तिपूजा विरोधी सम्प्रदाय।
इसमें निर्गुण भक्ति को ईश्वर-साधना का मार्ग बतलाया है। इस सम्प्रदाय के अनुयायी 36 नियमों का पालन करते हैं।
जसनाथी सम्प्रदाय का अग्नि नृत्य प्रसिद्ध है। इसमें सिद्ध भोपे ‘फतै-फतै’ उद्घोष के साथ अंगारों पर नाचते हैं। सिकन्दर लोदी जसनाथी सम्प्रदाय से काफी प्रभावित था।
जसनाथ सम्प्रदाय के अनुयायी काली ऊन का धागा गले में पहनते हैं। जसनाथी सम्प्रदाय के लोग जाल वृक्ष तथा मोर पंख को पवित्र मानते हैं। इस सम्प्रदाय में ’84 बाड़ियां’ प्रसिद्ध हैं। बाड़ियों को ‘आसंण’ (आश्रम) भी कहते है।
जसनाथी सम्प्रदाय के अन्य विरक्त संत ‘परमहंस’ कहलाते है।
- जसनाथी सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रंथ :- सिभुन्दड़ा एवं कोड़ा।
- जसनाथी सम्प्रदाय के संत :- लालनाथजी, चोखननाथ जी, सवाईदास जी।
- जसनाथी सम्प्रदाय की बाइबिल :- यशोनाथ-पुराण। (सिद्ध रामनाथ द्वारा रचित)।
सिद्ध रुस्तम जी जसनाथी सम्प्रदाय को भारत में विख्यात करने वाले एकमात्र संत थे।
लालदासी सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- लालदास जी
- प्रमुख स्थल :– शेरपूर एवं धोलीदूब गाँव (अलवर)
इस पंथ में हिन्दू-मुस्लिम एकता, ऊँच-नीच के भेदभावों की समाप्ति, दृढ़ चरित्र एवं नैतिकता की प्राप्ति, रुढ़ियों व आडम्बरों का विरोध तथा सामाजिक सदाचार पर अत्यधिक बल दिया गया है।
इस पंथ में भिक्षावृत्ति का विरोध किया गया है। इसमें पुरुषार्थी पर बल दिया गया है। मेवात प्रदेश में इस सम्प्रदाय का प्रभाव अधिक है। इस सम्प्रदाय के लोग गृहस्थी जीवन यापन कर सकते हैं।
अलखिया सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- लालगिरि। इस सम्प्रदाय के लोग जाति-पांति तथा ऊँच-नीच को नहीं मानते हैं।
- प्रमुख केन्द्र :- गलता (जयपुर)।
चरणदासी पंथ
- प्रवर्तक :- चरणदास।
- प्रमुख पीठ :– दिल्ली।
- इस पंथ में निर्गुण-निराकार ब्रह्म की सखी भाव से सगुण भक्ति की जाती है।
यह पंथ सगुण और निर्गुण भक्ति मार्ग का मिश्रण है। इस पंथ के अनुयायी ‘श्रीमद्भागवत्’ को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते है तथा राधा-कृष्ण की उपासना करते हैं।
इस पंथ के अनुयायी सदैव पीत वस्त्र धारण करते हैं। गुरु के प्रति दृढ-भक्ति और उनका देव-तुल्य सम्मान तथा पूजन भी इस पंथ की एक विशेषता है।
राजस्थान में इस सम्प्रदाय का अत्यधिक प्रसार अलवर एवं जयपुर क्षेत्र में हुआ। चरणदासी ‘नवधाभक्ति’ (राधाकृष्ण की उपासना) का समर्थन भी करते है।
इसमें गुरु के सान्निध्य को अत्यधिक महत्व, कर्मवाद को मान्यता तथा नैतिक शुद्धता व करुणा पर बल दिया गया है। चरणदासी पंथ के अनुसार करुणा के बिना ज्ञान प्राप्ति सम्भव नहीं है। चरणदासी पंथ के अनुयायी 42 नियमों का पालन करते हैं।
चरणदासी सम्प्रदाय की परम्परा दो प्रकार की हैं
- बिन्दु कुल परम्परा :- इस परम्परा की शृंखला पिता-पुत्रवत् चलती है।
- नाद कुल परम्परा :– इस परम्परा की शृंखला गुरु-शिष्यवत् चलती है।
निरंजनी सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- हरिदास जी
- प्रमुख पीठ :– गाढ़ा (डीडवाना, नागौर) पूर्ण रूप से निर्गुणी पंथ है।
यह सम्प्रदाय मूर्ति पूजा का खंडन नहीं करता है। यह वर्णाश्रम एवं जाति व्यवस्था का भी विरोध नहीं करता है।
निरंजनी अनुयायी दो प्रकार के होते हैं
- निहंग :- वैरागी जीवन व्यतीत करते हैं एवं एक गुदड़ी व एक पात्र धारण करते हैं।
- घरबारी :- गृहस्थ जीवन यापन करते हैं।
इसमें परमात्मा को अलख निरंजन, हरि निरंजन कहा गया है। इस मत का प्रभाव उड़ीसा में भी है। सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व इस सम्प्रदाय के आधार बिन्दु है।
परनामी सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- प्राणनाथ जी।
- निर्गुण विचारधारा वाला सम्प्रदाय।
- इनके आराध्यदेव श्रीकृष्ण है।
- मुख्य गद्दी :- पन्ना (MP)। जयपुर में इस सम्प्रदाय का कृष्ण मंदिर है।
- कुलजम स्वरूप :– सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रंथ जिसमें उपदेशों का संग्रह है।
दादू सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- संत दादूदयाल।
- प्रमुख पीठ :- नरायणा (जयपुर)।
- दादू पंथ निर्गुण-निराकार – निरंजन ब्रह्म को अपना आराध्य मानता है।
- दादू पंथी साधु विवाह नहीं करते तथा गृहस्थी के बच्चों को गोद लेकर अपना पंथ चलाते हैं।
- अलख दरीबा :- दादू पंथ का सत्संग।
- इस पंथ में मृत व्यक्ति के शव को जंगल में छोड़ देने की प्रथा है।
- दादू पंथी ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानते हैं।
दादू पंथी की 6 शाखाएँ
- खालसा :- मुख्य पीठ (नरायणा) से सम्बद्ध, इसके मुखिया गरीबदास थे।
- विरक्त :- रमते-फिरते दादू पंथी साधु, जो गृहस्थियों को उपदेश देते थे।
- उतरादे व स्थान धारी :– संस्थापक – बनवारीदास जी। गद्दी – रतिया (हिसार)
- खाकी :– ये शरीर पर भस्म लगाते थे तथा खाकी वस्त्र पहनते थे।
- नागा :– संस्थापक – सुन्दरदास जी। ये वैरागी होते थे, नग्न रहते हैं तथा शस्त्र धारण करते हैं।
- निहंग :– घुमन्तु साधु
दादू पंथ के 52 स्तम्भ
दादू के 52 प्रमुख शिष्य। (राधौदास के ग्रन्थ ‘भक्तमाल’ में दादूजी के 52 शिष्यों के नामों का उल्लेख है)
नवल सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- नवलदास जी
- मुख्य मंदिर :– जोधपुर
- इनके उपदेश ‘नवलेश्वर अनुभव वाणी’ में संग्रहित है।
गूदड़ सम्प्रदाय
- प्रवर्तक :- संतदास जी
- प्रमुख गद्दी :- दाॅतड़ा। (भीलवाड़ा)।
- निर्गुण भक्ति सम्प्रदाय। संतदास जी गूदड़ी से बने कपड़े पहनते थे।
- ऊंदरिया पंथ :- अतिमार्गीय पंथ। जयसमंद के भीलों में प्रचलित।
- कांचलिया पंथ :- अतिमार्गीय पंथ।
- कुण्डा पंथ :- प्रवर्तक :- रावल मल्लीनाथ जी।
- वाममार्गी पंथ। इसमें आध्यात्मिक साधना की विचित्र प्रणाली का प्रावधान किया गया है।
- निष्कलंक सम्प्रदाय :- प्रवर्तक :- संत मावजी। मावजी विष्णु के ‘कल्कि अवतार’ माने जाते है।
इस सम्प्रदाय के लोग सफेद वस्त्र धारण करते हैं। ‘प्रशातियां’ नामक भजन इस सम्प्रदाय के अनुयायी गाते हैं। मुख्य पीठ :- साबला (डूंगरपुर)
- तेरापंथी :- राजस्थान की श्वेताम्बर शाखा की स्थानकवासी उपशाखा से विकसित पंथ। प्रवर्तक :– संत भिक्षु। (भीखण्जी) 1760 ई. में स्थापना। मेवाड़ के राजनगर और केलवा में तेरापंथ का अत्यधिक प्रभाव रहा।