राजस्थान के प्रमुख संत

राजस्थान के प्रमुख संत

संत दादूदयाल

  • जन्म :- 1544 ई. में (वि. स. 1601 ई.) अहमदाबाद में।
  • गुरु :- श्री वृद्धानंद जी 1585 ई. में फतेहपुर सीकरी के इबादतखाने में मुगल सम्राट अकबर से भेंट की।
  • उपनाम :- राजस्थान का कबीर
  • ये आमेर के राजा मानसिंह के समकालीन थे।
  • दादूदयाल 1568 ई. में सांभर आ गए तथा जनसाधारण को उपदेश देने प्रारम्भ किये।
  • पुत्र :- गरीबदास एवं मिस्किनदास
  • दादू सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया। दादू पंथ के पाँच प्रमुख स्थानों को पंचतीर्थ (नरायणा, कल्याणपुर, सांभर, आमेर, भैराणा) कहा जाता है।
  • शिष्य :- संत रज्जबजी, सुन्दरदास जी, संतदास जी, बालिंद जी
  • दादूजी के उपदेश ‘दादूजी री वाणी’ व ‘दादूजी रा दूहा’ में संग्रहित है।
  • मृत्यु :- नरायणा में (1603 ई. में)।
  • दादूखोल :- नरायणा में भैराणा पहाड़ी पर स्थित गुफा।
  • कृतियां :- ‘पद’, ‘साखी’, ‘आत्मबोध’, ‘परिचय का अंग’ तथा ‘कायाबेलि ग्रन्थ’।
  • ‘पंथ परीक्षा’ दादू पंथ का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है।

जसनाथ जी

  • जन्म :- 1482 ई. में कतरियासर में देवउठनी ग्यारस (कार्तिक शुक्ला एकादशी) के दिन।
  • बचपन का नाम :- जसवंत।
  • पिता :- हम्मीर जी जाट
  • माता :- रुपादे
  • पत्नी :- काललदे।
  • गुरु :- गोरखनाथजी
  • प्रारम्भिक अनुयायी :- हारोजी एवं जियोजी। जसनाथी पंथ का प्रवर्तन किया। (निर्गुण पंथ)।कतरियासर में आश्विन शुक्ला सप्तमी वि. स. 1563 को जीवित समाधि ले ली।

जसनाथ जी ने ‘गोरखमालिया’ नामक स्थान पर निरन्तर 12 वर्ष तक तप किया। यह स्थान बीकानेर जिले में है। जसनाथ जी के उपदेश ‘सिंभूदड़ा’ एवं ‘कोंडा’ ग्रन्थ में संग्रहित है।

इनके अनुयायियों में जाट वर्ग के लोग प्रमुख है। ‘गोरख-छन्दो’ जसनाथ जी की अन्य रचना है।सिकन्दर लोदी के समकालीन। जसनाथ जी ने राव लूणकरण को बीकानेर राज्य की गद्दी-प्राप्ति का वरदान दिया था।

जसनाथ जी के समाधिस्थ होने के बाद उनके प्रमुख शिष्य जागोजी सम्प्रदाय की प्रमुख गद्दी पर बैठे।

जसनाथी सम्प्रदाय की उप-पीठे :- बमलू, लिखमादेसर, पुनरासर, मालासर एवं पांचला सिद्धा

जाम्भोजी

  • जन्म :- 1451 में (कृष्ण जन्माष्टमी के दिन) पीपासर (नागौर) में।
  • पिता :- लोहट जी (पंवार वंशीय राजपूत)
  • माता :– हंसा देवी।
  • जाम्भोजी को वैदिक देवता विष्णु का अवतार माना जाता है।
  • जाम्भोजी के 29 उपदेश और 120 शब्दों का संग्रह ‘जम्भ सागर’ में संग्रहित है।
  • विष्णु भक्ति पर बल। विधवा विवाह के समर्थक।
  • विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया। (1485 ई. में)
  • कार्यस्थल :- समराथल (बीकानेर)
  • मृत्यु :- मुकाम-तालवा (नोखा, बीकानेर) 1536 ई. में। मुकाम-तालवा में प्रतिवर्ष दो बार आश्विन एवं फाल्गुन माह की अमावस्या को मेला भरता है।

जाम्भोजी के ग्रन्थ :- जम्भसागर’, ‘जम्भ संहिता’, ‘गुरुवाणी’, ‘सबदवाणी’, ‘विश्नोई धर्म प्रकाश’ एवं 120 वाणियाँ। जाम्भोजी के उपदेशों पर कबीर का प्रभाव झलकता है। पर्यावरण वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध संत। 

साथरिया :- जाम्भोजी द्वारा दिये गये ज्ञानोपदेश का स्थान। जम्भ सागर इस सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है।

लालदास जी

  • जन्म :- 1540 ई. में धोलीदूब (अलवर) में।
  • पिता :- श्री चाँदमल।
  • माता :- समदा। लालदास जी मेव (मुस्लिम) जाति के लकड़हारे थे।
  • गुरु :- गद्दन चिश्ती।
  • पत्नी :- भोगरी। लालदासी सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।
  • मृत्यु :- 1648 ई. में नगला (भरतपुर) में।
  • समाधि :- शेरपुर (अलवर) में। इनके पुत्र कुतुब (मियां साहब) का मठ बांधोली में है।
  • रचनाएँ :- ‘लालदासजी की वाणी’, ‘लालदास की चेतावनी’। निर्गुण भक्ति के उपासक।

चरणदास जी

  • जन्म :- 1703 ई. में डेहरा (अलवर) में।
  • पिता :- मुरलीधर जी
  • माता :- कुंजो देवी।
  • बचपन का नाम :- रणजीत।
  • चरणदासजी ने मुनि शुकदेव से दीक्षा ली।
  • आजीवन ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत किया।
  • चरणदासी पंथ का प्रवर्तन किया।
  • प्रमुख ग्रन्थ :- ब्रह्म ज्ञान सागर, ब्रह्म चरित्र, भक्ति सागर, ज्ञान स्वरोदय। ये सदैव पीले वस्त्र पहनते थे। चरणदासजी ने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी। ये श्रीमद्‌भागवत को अपना धर्मग्रन्थ मानते थे।

1782 ई. को दिल्ली में निधन, जहाँ इनकी समाधि बनी हुई है और बसंत पंचमी को मेला भरता है।

  • शिष्य :- 52 शिष्य। रामरूप, रामसखी, सहजोबाई, दया बाई, जुगतानंद, जीवनदास आदि। मेवात (अलवर-भरतपुर) क्षेत्र के प्रसिद्ध संत।

हरिदास जी

  • जन्म :- 1452 ई. में कापड़ोद (डीडवाना, नागौर)।
  • यह संत बनने से पूर्व डाकू थे।
  • निरंजनी सम्प्रदाय के प्रवर्तक। निर्गुण भक्ति के उपासक।
  • मूल नाम :- हरिसिंह सांखला। इनके उपदेश ‘मंत्र राज प्रकाश’ तथा ‘हरिपुरुष जी की वाणी’ में संग्रहित है।
  • मृत्यु :- गाढ़ा (नागौर) में।

संत रामचरण जी

  • जन्म :- 24 फरवरी, 1720 ई. सोडा ग्राम (टोंक) में।
  • पिता :- बखताराम जी।
  • माता :- देउजी। वैश्य कुल में उत्पन्न।
  • बचपन का नाम :- रामकृष्ण।
  • गुरु :- कृपाराम। रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रवर्तक।
  • अणभैवाणी :- इस ग्रन्थ में संत रामचरण जी के उपदेश संग्रहित है। ‘राम रसाम्बुधि’ रामचरण जी का अन्य ग्रंथ है। मूर्तिपूजा एवं कर्मकाण्ड विरोधी संत।
  • मृत्यु :- 1798 में शाहपुरा (भीलवाड़ा) में। स्वामी रामचरण जी ने राम-नाम स्मरण एवं सत्संग पर बल दिया।

संत दरियाव जी

  • जन्म :- 1676 ई. में जैतारण (पाली) में।
  • पिता :- भानजी धुनिया
  • माता :- गीगा बाई।
  • 7-8 वर्ष की आयु में साधु स्वरूपानंद ने दरियाव जी की हस्तरेखा देखकर कहा कि ये एक बड़े फकीर (औलिया) होंगे।
  • गुरु :- प्रेमदास जी। ईश्वर के नाम स्मरण एवं योग-मार्ग का उपदेश दिया।
  • शिष्य :- कृष्णदास, हरिदास, सांवलदास, नानकदास, जयमल
  • मृत्यु :- 1758 ई. में रैण (नागौर) में। दरियाव जी का देवलधाम’ के नाम से जाना जाता है।

संत हरिरामदास जी

  • जन्म :- 1719 ई. में।
  • मृत्यु :- 1778 ई. में सिंहथल (बीकानेर) में
  • पिता :- भागचंद जोशी
  • माता :- रामी
  • पत्नी :- चांपा
  • गुरु :- जैमलदास जी।
  • प्रमुख कृति :- निसाणी।

 संत रामचरण के समकालीन। हरिरामदास जी ने हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव को स्वीकार नहीं किया।

संत रामदास जी

  • जन्म :- 1726 ई. को भीकमकोर (जोधपुर) में।
  • पिता :- शार्दुल जी
  • माता :- अणमी
  • गुरु :- श्री हरिरामदास जी।
  • ग्रन्थ :- 24 ग्रन्थों की रचना (गुरु ग्रन्थ महिमा, ग्रंथ घघर निशाणी, ग्रंथ भक्तमाल, ग्रंथ रामरक्षा आदि)।
  • मृत्यु :- 1798 में खेड़ापा में।

संत पीपा

  • जन्म :- 1425 ई. में गागरोण में।
  • पिता :- कड़ावा राव (खींची)
  • माता :- लक्ष्मावती।
  • बचपन का नाम :- प्रतापसिंह
  • गुरु :- संत रामानंद पीपा राजस्थान में भक्ति आंदोलन की अलख जगाने वाले प्रथम संत थे। दर्जी समुदाय के आराध्य देव।
  • पीपाजी का भव्य मंदिर :- समदड़ी (बाड़मेर)।
  • पीपाजी की गुफा :- टोडा (टोंक) में।
  • निर्गुण भक्ति के उपासक।
  • पीपाजी की छतरी :- गागरोण (झालावाड़) में। दिल्ली सुल्तान फिरोज तुगलक को परास्त किया।
  • रचित ग्रन्थ :- श्री पीपाजी की बाणी, चितावनी जोग

संत सुन्दरदास जी

  • जन्म :- 1596 ई. दौसा में।
  • वैश्य परिवार से सम्बन्धित।
  • पिता :- परमानन्द जी
  • माता :- सती
  • ग्रन्थ :- ज्ञान समुद्र, ज्ञान सवैया, सुंदर विलास, सुन्दर सार, सुन्दर ग्रन्थावली बारह अष्टक। दादूजी के परम शिष्य।
  • निधन :- 1746 में साँगानेर में। इन्होंने दादू पंथ में ‘नागा’ साधु वर्ग प्रारम्भ किया।
  • शिष्य :- दयालदास, श्यामदास, दामोदरदास, निर्मलदास, नारायणदास
  • सुन्दरदास जी ने दार्शनिक सिद्धान्तों को ज्ञानमार्गी पद्धति में पद्यबद्ध किया। संत सुन्दरदास जी ने 42 ग्रंथों की रचना की। इन्हें ‘हिन्दी साहित्य का शंकराचार्य’ कहा जाता है।

मुख्य कार्यस्थल :- दौसा, साँगानेर, नरायणा एवं फतेहपुर शेखावटी। भारतीय डाक विभाग ने इनकी स्मृति में 8 नवम्बर, 1997 को 2 रुपये का डाक टिकट जारी किया गया था।

संत रज्जब जी

16वीं सदी में साँगानेर (जयपुर) में पठान परिवार में जन्म। संत रज्जब जी जीवनपर्यन्त दूल्हे के वेश में रहे।

  • रचनाएँ :- रज्जब वाणी, सर्वंगी, अंगबधू।
  • निधन :- वि.स. 1746 में साँगानेर में।
  • भक्तमाल :- राधौदास रचित कृति जिसमें रज्जब जी के 10 शिष्यों का उल्लेख है।
  • रजबावत :- संत रज्जब जी के अनुयायी।

संत धन्नाजी

संवत 1472 में धुवन (टोंक) में जाट परिवार में जन्म। संत रामापंद के शिष्य।

  • रचनाएँ :- धन्नाजी की परची, धुन्नाजी की आरती।
  • इनके विषय में कहा जाता है कि इन्होंने हठपूर्वक भगवान की मूर्ति को भोजन कराया था। इन्होंने राम-नाम स्मरण को ही ईश्वर प्राप्ति का मुख्य साधन बताया है। धन्ना की सबसे ज्यादा लोकप्रियता पंजाब में है।

बालिन्द जी

  • संत दादूजी के शिष्य 
  • रचना :- आरिलो।

संत रैदास जी

संत रामानंद के शिष्य। चमार जाति के थे। बनारस निवासी। इन्होंने ‘निर्गुण ब्रह्म’ की भक्ति का उपदेश दिया। ईश्वर नाम स्मरण को सर्वोच्च मानते थे।

मीराबाई के गुरु। इनके उपदेश ‘रैदास की परची’ में संग्रहित है।

  • छतरी :- चित्तौड़ दुर्ग में।
  • रैदास का कुण्ड व कुटी माण्डोगढ़ में ही है।
  • संत कबीर के समकालीन। जाति प्रथा के विरोधी। साधु संगति पर बल दिया।

भक्त कवि दुर्लभ

  • वि. स. 1753 में वागड़ क्षेत्र में जन्म।
  • कृष्ण भक्ति के उपदेश दिये।
  • कार्यक्षेत्र :- डूँगरपुर – बाँसवाड़ा
  • उपनाम :- राजस्थान का नृसिंह।

संत जैमलदास जी

संत मावजी

  • वागड़ प्रदेश के संत
  • जन्म :- साबला (डूंगरपुर) में ब्राह्मण परिवार में।
  • पिता :- दालम जी। सन् 1727 में बेणेश्वर नामक स्थान पर ज्ञान प्राप्ति।
  • निष्कलंकी सम्प्रदाय के प्रवर्तक।
  • बेणेश्वर धाम की स्थापना संत मावजी ने करवाई।
  • मावजी का मंदिर एवं पीठ माही नदी तट पर साबला गाँव में ही है।
  • इन्होंने वागड़ी भाषा में श्रीमद् भागवत की कृष्ण लीलाओं की रचना की।
  • इनकी वाणी ‘चोपड़ा’ कहलाती है। चोपड़ा में स्वयं को कृष्ण का दसवां अवतार घोषित किया है।
  • साध :- संत मावजी के अनुयायी।

मावजी के अन्य मंदिर 

पुंजपुर (डूंगरपुर), बेणेश्वर व ढालावाला, शेषपुर (मेवाड़) एवं पालोदा (बाँसवाड़ा) मावजी ने जाति प्रथा समाप्तिअन्तरजातीय विवाहविधवा विवाह को बढ़ावा दिया।

लसोड़िया आन्दोलन (अछूतोद्वार हेतु) के प्रवर्तक। निष्कलंकी सम्प्रदाय में ईश्वर को जगाने हेतु ‘प्रभातिया’, भजन एवं भगवान के भाेग लगाते समय ‘आरोगणा’ भजन गाते हैं। बेणेश्वर धाम में संत मावजी का मंदिर जनकुंवरी ने बनवाया।

  • राजस्थान में ‘ऊंदरिया पंथ’ भीलों में प्रचलित है।
  • लोद्रवा जैनियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • भगत पंथ का संस्थापक :-  गुरु गोविन्द गिरि
  • दादूजी के देहान्त के पश्चात नरायणा दादू पंथ की खालसा उपशाखा का मुख्य स्थान रहा है।

Rajasthan ke pramukh sant

  • जैन विश्व भारती संस्थान :- लाडनूं
  • दादू पंथ का अधिकांश साहित्य ढूंढाड़ी बोली में लिपिबद्ध है।
  • संत पीपा के अनुसार मोक्ष का साधन भक्ति है।
  • राजस्थान का उत्तर-तोताद्रि :- गलता (जयपुर)
  • सुप्रसिद्ध ‘कायाबेलि’ ग्रन्थ की रचना दादू दयाल ने की।
  • रसिक सम्प्रदाय का प्रवर्तक :- अग्रदास जी।
  • संत मीठेशाह की दरगाह :- गागरोण दुर्ग में।
  • मलिक शाह पीर की दरगाह :- जालौर में।
  • चोटिला पीर दुलेशाह की दरगाह :- पाली।
  • खुदाबक्श बाबा की दरगाह :- सादड़ी (पाली)
  • अमीर अली शाह पीर की दरगाह :- दूदू (जयपुर)
  • पारसी धर्म के संस्थापक जरथ्रुष्ट्र थे। पारसी धर्म के अनुयायी सूर्य की पूजा करते है।
  • राजस्थान के बाॅसवाड़ा जिले में ईसाई सर्वाधिक संख्या में है।
  • उमराव कंवर अर्चना देश की पहली जैन साध्वी है, जिन पर डाक टिकट जारी किया गया है। (2011 में 5 रुपये का डाक टिकट)
  • गुण हरिरस एवं देवियाणा ग्रंथ के लेखक :- ईसरदास।
  • कुंडा पंथ के प्रणेता राव मल्लीनाथ थे। यह वाममार्गी पंथ है।
  • राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रवर्तक :- गोस्वामी हितहरिवंश
  • चतु:सम्प्रदाय :- वैष्णव भक्ति के लिए प्रसिद्ध चार सम्प्रदाय (i) श्री (ii) ब्रह्म (iii) रुद्र (iv) सनक।
  • ‘धौलागढ़ देवी’ का मंदिर :- अलवर में।
  • विश्नोई सम्प्रदाय के लोग भेड़ पशु को पालना पसन्द नहीं करते हैं।
  • पंडित गजाधर :- मीरा बाई के शिक्षक।
  • दासी मत का संबंध मीरा से है।
  • हठ योग प्रणाली के जन्मदाता :- गोरखनाथ जी।
  • मारवाड़ में निम्बार्क सम्प्रदाय को ‘नीमावत’ के नाम से जाना जाता है।
  • चरणदासी पंथ के संत रामरूपजी की गद्दी :- पानों की दरीबा (जयपुर)।
  • वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बन्धित वल्लभ घाट पुष्कर में है।
  • रामद्वारा :- रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रार्थना स्थल।
  • लालदासी सम्प्रदाय के सर्वाधिक अनुयायी मेव जाति के हैं।
  • ’84 वैष्णवों की वार्ता’ एवं ’52 वैष्णवों की वार्ता’ ग्रन्थ वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बन्धित है।
  • ‘गुरु-दीक्षा’, ‘डोली-पाहल’ एवं ‘थापन’ संस्कार का संबंध विश्नोई सम्प्रदाय से है।
  • चरणदासी सम्प्रदाय सगुण एवं निर्गुण भक्ति मार्ग का मिश्रण है।
  • चरण सम्प्रदाय का ‘बड़े रियापाड़ी वाला मंदिर’ व ‘टोली के कुएं वाला मंदिर’ राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है।

राजस्थान के संत

  • संत सुन्दरदास जी की प्रधान पीठ :- फतेहपुर में।
  • संत सुन्दरदास जी ने काशी के 80 घाट पर गोस्वामी तुलसीदास के साथ निवास किया था।
  • ‘श्रीनाथ जी’ की प्रतिमा मुगल शासक औरंगजेब के समय वृन्दावन से सिंहाड़ (नाथद्वारा) लाई गई।
  • ‘लश्करी पीठ’ का सम्बन्ध रामानन्दी सम्प्रदाय से है।
  • निरंजनी सम्प्रदाय नाथमल एवं संतमल के मध्य की कड़ी माना जाता है।
  • परमहंस :- जसनाथी सम्प्रदाय के विरक्त सन्त।
  • राजस्थान में निर्गुणी संत-सम्प्रदायों का आविर्भाव 15वीं सदी में हुआ।
  • हरड़े बानी :- संत दादूजी की वाणियों का संग्रह।
  • निम्बार्क सम्प्रदाय के साधुओं को ‘विष्णु स्वामी’ कहा जाता है।
  • ‘जो पिण्ड में है वही ब्रह्माण्ड में है।’ सिद्धान्त का विवेचन संत पीपा द्वारा किया गया।

राजपरिवार कुलदेवी

  • मेवाड़ (सिसोदिया वंश) बाणमाता
  • आमेर (कच्छवाह वंश) अन्नपूर्णा (शिलादेवी)
  • जोधपुर  (राठौड़ वंश) नागणेच्या देवी
  • जैसलमेर (भाटी वंश) स्वागिया जी
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