राजस्थान के लोक देवता

राजस्थान के लोक देवता

मारवाड़ के पंच पीर

(1) गोगाजी (2) पाबूजी (3) हड़बूजी (4) रामदेव जी (5) मेहा जी।

पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया मेहा। पाँचों पीर पधारजो गोगाजी गेहा।।

गोगाजी चौहान

  • पंच पीरों में सर्वाधिक प्रमुख स्थान।
  • जन्म – संवत् 1003 में, जन्म स्थान – ददरेवा (चूरू)।
  • पिता – जेवरजी चौहान, माता – बाछल दे, पत्नी – कोलुमण्ड (फलौदी, जोधपुर) की राजकुमारी केलमदे (मेनलदे)
  • केलमदे की मृत्यु साँप के कांटने से हुई जिससे क्रोधित होकर गोगाजी ने अग्नि अनुष्ठान किया। जिसमें कई साँप जलकर भस्म हो गये फिर साँपों के मुखिया ने आकर उनके अनुष्ठान को रोककर केलमदे को जीवित करते हैं। तभी से गोगाजी नागों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
  • गोगाजी का अपने मौसेरे भाईयों अर्जन व सुर्जन के साथ जमीन जायदाद को लेकर झगड़ा था। अर्जन – सुर्जन ने मुस्लिम आक्रान्ताओं ( महमूद गजनवी ) की मदद से गोगाजी पर आक्रमण कर दिया। गोगाजी वीरतापूर्वक लड़कर शहीद हुए।
  • युद्ध करते समय गोगाजी का सिर ददरेवा (चूरू) में गिरा इसलिए इसे शीर्षमेडी (शीषमेडी) तथा धड़ नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए इसे धड़मेड़ी/ धुरमेड़ी/गोगामेड़ी भी कहते हैं।
  • बिना सिर के ही गोगाजी को युद्ध करते हुए देखकर महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहिर पीर (प्रत्यक्ष पीर) कहा।
  • उत्तर प्रदेश में गोगाजी को जहर उतारने के कारण जहर पीर/जाहर पीर भी कहते हैं।
  • गोगामेड़ी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया। गोगामेड़ी के मुख्य द्वार पर बिस्मिल्लाह लिखा है तथा इसकी आकृति मकबरेनुमा है। गोगामेड़ी का वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह की देन है। प्रतिवर्ष गोगानवमी (भाद्रपद कृष्णा नवमी) को गोगाजी की याद में गोगामेड़ी, हनुमानगढ़ में भव्य मेला भरता है।
  • गोगाजी की आराधना में श्रद्धालु सांकल नृत्य करते हैं।
  • गोगामेड़ी में एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी है।
  • प्रतीक चिहृ – सर्प
  • खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी का निवास स्थान माना जाता है।
  • गोगाजी की ध्वजा सबसे बड़ी ध्वजा मानी जाती है।
  • गोगाजी की ओल्डी‘ नाम से प्रसिद्ध गोगाजी का अन्य पूजा स्थल – साँचौर (जालौर)।
  • गोगाजी से सम्बन्धित वाद्य यंत्र – डेरू।
  • किसान वर्षा के बाद खेत जोतने से पहले हल व बैल को गोगाजी के नाम की राखी गोगा राखड़ी बांधते हैं।
  • सवारी – नीली घोड़ी
  • गोगा बाप्पा नाम से भी प्रसिद्ध है।
  • कायमखानी मुसलमान गोगाजी को अपना पूर्वज मानते है।
  • गोगाजी :- गुरु :- गोरखनाथ।

गोगाजी ने गौ-रक्षा एवं तुर्क आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। गोगामेड़ी के चारों तरफ फैला हुआ जंगल ‘वणी’ या ‘ओयण’ कहलाता है। गोगामेड़ी को मकबरे का स्वरूप फिरोजशाह तुगलक ने प्रदान किया।

पाबूजी राठौड़

  • जन्म – 1239 ई. में, जन्म स्थान – कोलुमण्ड गाँव (फलौदी, जोधपुर)।
  • पिता – धाँधल जी राठौड़, माता – कमलादे, पत्नी – फूलमदे/सुपियार दे सोढ़ी।
  • फूलमदे अमरकोट के राजा सूरजमल सोढ़ा की पुत्री थी।
  • पाबूजी की घोड़ी- केसर कालमी (यह काले रंग की घोड़ी उन्हें देवल चारणी ने दी, जो जायल, नागौर के काछेला चारण की पत्नी थी)।
  • सन् 1276 ई. में जोधपुर के देचू गाँव में देवलचारणी की गायों को जींदराव खींची से छुड़ाते हुए पाबूजी वीर गति को प्राप्त हुए, पाबूजी की पत्नी उनके वस्त्रों के साथ सती हुई। इस युद्ध में पाबूजी के भाई बूड़ोजी भी शहीद हुए।
  • पाबूजी के भतीजे व बूड़ोजी के पुत्र रूपनाथ जी ने जींदराव खींची को मारकर अपने पिता व चाचा की मृत्यु का बदला लिया। रूपनाथ जी को भी लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। राजस्थान में रूपनाथ जी के प्रमुख मंदिर कोलुमण्ड (फलौदी, जोधपुर) तथा सिम्भूदड़ा (नोखा मण्डी, बीकानेर) में है। हिमाचल प्रदेश में रूपनाथ जी को बालकनाथ नाम से भी जाना जाता है।
  • पाबूजी की फड़ नायक जाति के भील भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
  • फड़/पड़ – किसी भी महत्पूर्ण घटना या महापुरुष की जीवनी का कपड़े पर चित्रात्मक अंकन ही फड़/पड़ कहलाता है। फड़ का वाचन केवल रात्रि में होता है। फड़-वाचन के समय भोपा वाद्य यंत्र के साथ फड़ बाँचता है तथा भोपी संबंधित प्रसंग वाले चित्र को लालटेन की सहायता से दर्शकों को दिखाती है तथा साथ में नृत्य भी करती रहती है।

पाबूजी :- पाबूजी राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के वंशज थे। पाबूजी के साथी :- चाँदोजी, सावंतजी, डेमाजी, हरमल जी राइका एवं सलजी सोलंकी।

  • मारवाड़ में साण्डे (ऊँटनी) लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है।
  • पाबूजी ‘ऊँटों के देवता‘, ‘गौरक्षक देवता‘ तथा ‘प्लेग रक्षक देवता‘ के रूप में प्रसिद्ध है।
  • पाबूजी को ‘लक्ष्मण का अवतार‘ माना जाता है।
  • ऊंटों की पालक जाति राईका/रेबारी/देवासी के आराध्य देव पाबूजी हैं।
  • पाबूजी की जीवनी ‘पाबू प्रकाश‘ के रचयिता- आशिया मोड़जी
  • हरमल व चाँदा डेमा पाबूजी के रक्षक थे।
  • माघ शुक्ला दशमी तथा भाद्रपद शुक्ला दशमी को कोलुमण्ड गाँव (फलौदी, जोधपुर) में पाबूजी का प्रसिद्ध मेला भरता है।
  • पाबूजी के पवाड़े/पावड़े (गाथा गीत) प्रसिद्ध है, जो माठ वाद्य यंत्र के साथ गाये जाते हैं।
  • प्रतीक चिहृ – भाला लिए हुए अश्वारोही तथा बायीं ओर झुकी हुई पाग

राजस्थान में फड़ निर्माण

राजस्थान में फड़ निर्माण का प्रमुख केन्द्र शाहपुरा (भीलवाड़ा) है। वहाँ का जोशी परिवार फड़ चित्रकारी में सिद्धहस्त है। शांतिलाल जोशी व श्रीलाल जोशी प्रसिद्ध फड़ चित्रकार हुए हैं। यह जोशी परिवार वर्तमान में ‘द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका‘ तथा ‘कलिंग विजय के बाद अशोक‘ विषय पर फड़ बना रहा है।

  • सर्वाधिक फड़ें तथा सर्वाधिक लोकप्रिय/प्रसिद्ध फड़ पाबूजी की फड़ है।
  • रामदेवजी की फड़ कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
  • सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
  • भारत सरकार ने राजस्थान की जिस फड़ पर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी किया वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु. का डाक टिकट) है।
  • देवनारायण जी की फड़ गुर्जर जाति के कुँआरे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
  • भैंसासुर की फड़ का वाचन नहीं होता, इसकी केवल पूजा (कंजर जाति के द्वारा) होती है।
  • रामदला-कृष्णदला की फड़ (पूर्वी राजस्थान में) एकमात्र ऐसी फड़ है जिसका वाचन दिन में होता है।
  • शाहपुरा के जोशी परिवार द्वारा बनाई गई अमिताभ बच्चन की फड़ को बाँचकर मारवाड़ का भोपा रामलाल व भोपी पताशी प्रसिद्ध हुए।

हड़बूजी

  • मारवाड़ के पंच पीरों में से एक हड़बूजी के पिता का नाम-मेहाजी सांखला (भुंडेल, नागौर)।
  • हड़बूजी बाबा रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
  • गुरु – बालीनाथ
  • संकटकाल में हड़बूजी ने जोधपुर के राजा राव जोधा को तलवार भेंट की और राव जोधा ने इन्हें बैंगटी (फलौदी, जोधपुर) की जागीर प्रदान की।
  • बैंगटी में इनका प्रमुख पूजा स्थल है। यहाँ हड़बूजी की गाड़ी (छकड़ा/ऊँट गाड़ी) की पूजा होती है। इस गाड़ी में हड़बूजी विकलांग गायों के लिए दूर-दूर से घास भरकर लाते थे।
  • हड़बूजी शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।
  • हड़बूजी की सवारी सियार मानी जाती है।

रामदेवजी

  • रामसा पीर, रूणेचा रा धणी व पीरां रा पीर नाम से प्रसिद्ध।
  • रामदेव जी को कृष्ण का तथा उनके बड़े भाई बीरमदेव को बलराम का अवतार माना जाता है।
  • पिता का नाम-अजमलजी तंवर, माता-मैणादे, पत्नी-नेतलदे (नेतलदे अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढ़ा की पुत्री थी।)
  • लोकमान्यता के अनुसार रामदेवजी का जन्म उंडूकाश्मीर गाँव (शिव-तहसील, बाड़मेर) में भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को हुआ।
  • समाधि-रूणेचा (जैसलमेर) में रामसरोवर की पाल पर भाद्रपद शुक्ला दशमी को ली।
  • रामदेवजी के लिए नियत समाधि स्थल पर उनकी मुँह बोली बहिन डाली बाई ने पहले समाधि ली।
  • रामदेवजी की सगी बहिनें – लाछा बाई, सुगना बाई
  • रामसापीर उपनाम से प्रसिद्ध बाबा रामदेवजी ने अपने जीवन काल में कई परचे (चमत्कार) दिखाये। उन्होंने मक्का से पधारे पंचपीरों को भोजन कराते समय उनका कटोरा प्रस्तुत कर उन्हें चमत्कार दिखाया जिससे मक्का के उन पीरों ने कहा कि हम तो केवल पीर हैं, पर आप तो पीरों के पीर हैं।
  • प्रमुख शिष्य-हरजी भाटी, आईमाता
  • गुरु का नाम-बालीनाथ। बालीनाथजी का मन्दिर-मसूरिया, जोधपुर में।
  • सातलमेर (पोकरण) में भैरव राक्षस का वध रामदेवजी ने किया।
  • नेजा – रामदेवजी की पचरंगी ध्वजा।
  • जातरू – रामदेवजी के तीर्थ यात्री।
  • रिखियां – रामदेवजी के मेघवाल भक्त।
  • जम्मा – रामदेवजी की आराधना में श्रद्धालु लोग रिखियों से जम्मा जागरण (रात्रि कालीन सत्संग) दिलवाते हैं।
  • कुष्ठ रोग निवारक देवता।
  • हैजा रोग के निवारक देवता।
  • सवारी – लीला (हरा) घोड़ा।
  • कामड़ पंथ का प्रारम्भ किया।
  • राजस्थान में कामड़ पंथियों का प्रमुख केन्द्र पादरला गाँव (पाली) इसके अलावा पोकरण (जैसलमेर) व डीडवाना (नागौर) में भी कामड़ पंथी निवास करते हैं।
  • तेरहताली नृत्य- रामदेवजी की आराधना में कामड़ जाति की महिलाएं मंजीरे वाद्य यंत्र का प्रयोग करके प्रसिद्ध तेरहताली नृत्य करती हैं।
  • यह बैठकर किया जाने वाला एकमात्र लोकनृत्य है।
  • तेरहताली नृत्य के समय कामड़ जाति का पुरुष तन्दुरा (चौतारा) वाद्य यंत्र बजाता है। इस नृत्य को करते समय नृत्यांगना तेरह मंजीरे (नौ दाहिने पांव पर, दो कोहनी पर तथा दो हाथ में) के साथ तेरह ताल उत्पन्न करते हुए तेरह स्थितियों में नृत्य करती है।
  • यह एक व्यावसायिक/पेशेवर नृत्य है।
  • प्रसिद्ध तेरहताली नृत्यांगनाएँ – मांगीबाई, दुर्गाबाई।
  • रामदेवजी की फड़ कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
  • प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को रामदेवरा (जैसलमेर) में बाबा रामदेवजी का भव्य मेला भरता है। पश्चिमी राजस्थान का यह सबसे बड़ा मेला साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए प्रसिद्ध है।
  • रामदेवजी का प्रतीक चिहृ – पगल्यां (पत्थर पर उत्कीर्ण रामदेवजी के प्रतीक के रूप में दो पैर)।
  • रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोकदेवता थे, जो कवि थे। ‘चौबीस बाणियां‘ रामदेवजी की प्रसिद्ध रचना है।
  • रामदेवरा में स्थित रामदेवजी के मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
  • रामदेवजी के पूजा स्थल-रामदेवरा/रूणेचा (जैसलमेर), मसूरिया (जोधपुर), बिराठिया (पाली), बिठूजा (बालोतरा, बाड़मेर), सूरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़), छोटा रामदेवरा (जूनागढ़, गुजरात)

रामदेवजी :- परचा :- रामदेवजी के चमत्कार ब्यावले :- भक्तों द्वारा गाये जाने वाले भजन। बाबे री बीज :- भाद्रपद शुक्ला द्वितीया।

रामदेवजी से जुड़ी रचनाएँ

  1. रामदेवजी का ब्यावला :- पूनमचंद
  2. श्री रामदेवजी चरित :- ठाकुर रुद्रसिंह तोमर
  3. श्री रामदेव प्रकाश :- पुरोहित रामसिंह
  4. रामसापीर अवतार लीला :- ब्राह्मण गौरीदासात्मक
  5. श्री रामदेवजी री वेलि :- हरजी भाटी।

मेहाजी

  • मांगलियों के ईष्ट देव होने के कारण इन्हें मांगलिया मेहाजी कहते हैं।
  • इनके घोड़े का नाम – किरड़ काबरा
  • जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए शहीद।
  • बापिनी गाँव (ओसियां, जोधपुर) में प्रमुख पूजा स्थल।
  • कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्णा अष्टमी) को लोकदेवता मेहाजी की जन्माष्टमी मनाई जाती है।

मेहाजी :- लोक मान्यता है कि इनकी पूजा करने वाले भोपा की वंश वृद्धि नहीं होती। वे गोद लेकर पीढ़ी आगे चलाते हैं। राव चूण्डा (जोधपुर शासक) के समकालीन।

मारवाड़ के पंच पीरों के अलावा अन्य लोक देवता

तेजाजी

  • जन्म – 1074 ई., खड़नाल/खरनाल (नागौर) में, माघ शुक्ला चतुदर्शी को।
  • तेजाजी नागवंशीय जाट थे।
  • पिता का नाम-ताहड़जी जाट, माता का नाम-राजकुंवरी/रामकुंवरी, पत्नी-पेमलदे (पनेर के रायचन्द्र की पुत्री थी।)। 7 सितम्बर, 2011 को सचिन पायलट ने खरनाल (नागौर) में तेजाजी पर 5 रु. का डाक टिकट जारी किया।
  • तेजाजी ने लाछा गुर्जरी की गायों को मेर (वर्तमान आमेर) के मीणाओं से छुड़ाया।
  • सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) में जीभ पर साँप काटने से तेजाजी की मृत्यु।
  • घोड़ी का नाम-‘लीलण‘।
  • तेजाजी की मृत्यु की सूचना उनकी घोड़ी ने घर आकर दी।
  • तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते थे।
  • काला और बाला के देवता, कृषि कार्य़ों के उपकारक देवता, गौरक्षक देवता के रूप में पूजनीय।
  • अजमेर व नागौर में विशेष पूजनीय।
  • तेजाजी की याद में प्रतिवर्ष तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ला दशमी) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला भरता है जो आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है।
  • सेंदरिया, ब्यावर, भावतां, सुरसरा (अजमेर) तथा खरनाल (नागौर) में तेजाजी के प्रमुख पूजा स्थल है।
  • साँप काटने पर तेजाजी के भोपे चबूतरे (तेजाजी के थान) पर पीड़ित व्यक्ति को ले जाकर गौ मूत्र से कुल्ला करके तथा दाँतों में गोबर की राख दबाकर साँप कांटे हुए स्थान से जहर चूसना प्रारम्भ करता है।

देवनारायणजी

  • जन्म – 1243 ई., वास्तविक नाम-उदयसिंह
  • बगड़ावत परिवार में जन्म।
  • इनके अनुयायी गुर्जर जाति के लोग इन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं।
  • पिता-सवाईभोज, माता-सेढू देवी, पत्नी-पीपलदे
  • घोड़ा – लीलागर
  • देवनारायणजी के जन्म से पूर्व ही इनके पिता सवाईभोज भिनाय के शासक से संघर्ष करते हुए अपने 23 भाईयों सहित शहीद हो गये। बाद में देवनारायणजी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया व लम्बी लड़ाईयाँ लड़ी, जिसकी गाथा ‘बगड़ावत महाभारत‘ के रूप में प्रसिद्ध है।
  • देवजी की फड़-गुर्जर जाति के कुँआरे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं। इनके मन्दिर में मूर्ति की बजाय ईंटों की पूजा नीम की पत्तियों के साथ होती है।
  • 1 मंतर = 1 जंतर, जंतर वाद्य यंत्र को 100 मंतर (मंत्र) के समान माना गया है।
  • सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
  • भारत सरकार ने राजस्थान की जिस फड़ पर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी किया वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु. का डाक टिकट) है।
  • गुर्जरों का तीर्थ स्थल-सवाईभोज का मंदिर, आसीन्द (भीलवाड़ा)।
  • जोधपुरिया (टोंक) में देवजी का प्रमुख पूजा स्थल है। देवबाबा के ग्वालों के पालनहार, कष्ट निवारक देवता आदि नामों से प्रसिद्ध है।

देवनारायण जी :- गुर्जर समाज इन्हें ‘विष्णु का अवतार’ मानते है। आसीन्द में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को मेला लगता है। बगड़ावतों का गाँव :- देवमाली (अजमेर)। देवनारायण जी प्रथम लोकदेवता है जिन पर 2011 में केन्द्रीय संचार मंत्रालय द्वारा डाक टिकट जारी किया गया।

देव बाबा

  • नगला जहाज गाँव (भरतपुर) में मंदिर।
  • भाद्रपद शुक्ला पंचमी व चैत्र शुक्ला पंचमी को मेला भरता है।
  • इनकी याद में चरवाहों को भोजन करवाया जाता है।
  • देवबाबा की सवारी भैंसा होता है। इनका स्थान नीम के पेड़ के नीचे स्थित होता है।

वीर कल्लाजी राठौड

  • जन्म – विक्रम संवत् 1601 में, जन्म स्थल- मेड़ता (नागौर)।
  • पिता-राव अचलाजी, दादा-आससिंह
  • कल्लाजी मीराबाई के भतीजे थे।
  • 1567 ई. में अकबर के विरूद्ध तथा उदयसिंह के पक्ष में युद्ध करते हुए जयमल राठौड़ तथा पत्ता सिसोदिया सहित वीर कल्लाजी भी शहीद हुए। युद्ध भूमि में चतुर्भुज के रूप में वीरता दिखाए जाने के कारण इनकी ख्याति चार हाथों वाले लोकदेवता के रूप में हुई।
  • कल्लाजी के सिद्ध पीठ को ‘रनेला‘ कहते हैं।
  • कल्लाजी के गुरु भैरवनाथ थे।
  • चित्तौड़गढ़ किले के भैरवपोल के पास कल्लाजी की छतरी बनी हुई है।
  • वीर कल्लाजी चार हाथों वाले देवता (शेषनाग का अवतार) वाले लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध हुए।
  • नोट – डूंगरपुर जिले के सामलिया क्षेत्र में कल्लाजी की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति पर प्रतिदिन केसर तथा अफीम चढ़ाई जाती है।
  • कल्लाजी शेषनाग के अवतार के रूप में पूजनीय है।
  • कल्लाजी के थान पर भूत-पिशाच ग्रस्त लोगों व रोगी पशुओं का इलाज होता है।

भूरिया बाबा (बाबा गौतमेश्वर)

  • मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा की झूठी कसम नहीं खाते
  • दक्षिण राजस्थान के गौड़वाड़ क्षेत्र में इनके मन्दिर हैं।

भूरिया बाबा :- मीणा आदिवासियों के इष्टदेव। मंदिर :- चांदीला (सिरोही) अरनोद (प्रतापगढ़)

मल्लीनाथ जी

  • जन्म – 1358 ई., पिता का नाम – राव सलखा (मारवाड़ के राजा), दादा – रावतीड़ा, माता का नाम – जाणीदे।
  • खिराज नहीं देने के कारण 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीनफिरोजशाह तुगलक की संयुक्त सेना की तेरह टुकड़ियों ने मल्लीनाथ जी पर हमला कर दिया और मल्लीनाथ जी ने इन्हें हराकर अपनी पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि की।
  • प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है, जहाँ पर मल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर भी है।
  • यहाँ तिलवाड़ा के पास ही मालाजाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मन्दिर है।
  • गुरु – उगमसी भाटी (पत्नी रुपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी उगमसी भाटी के शिष्य बने)।
  • मल्लीनाथ :- 1399 में कुंडा पंथ की स्थापना की।

बाबा तल्लीनाथ

  • वास्तविक नाम – गांगदेव राठौड़
  • मारवाड़ के राजा वीरमदेव के पुत्र तथा मंडोर के राजा राव चूँडा राठौड़ के भाई थे।
  • तल्लीनाथ जी ने शेरगढ़ पर राज किया।
  • जहरीला जानवर काटने पर तल्लीनाथ की पूजा की जाती है।
  • तल्लीनाथ जी ओरण (धार्मिक मान्यता से पशुओं के चरने के लिए जो स्थान रिक्त छोड़ा जाता है) के देवता के रूप प्रसिद्ध।
  • भारत की पहली ओरण पंचायत – ढोंक गाँव (चौहटन, बाड़मेर) है, जहाँ पर वीरात्रा माता का मंदिर है।
  • जालौर के प्रसिद्ध लोकदेवता
  • जालौर जिले के पाँचोटा गाँव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है।

वीर फत्ताजी

  • जन्म – साथूँ गाँव (जालौर)।
  • गाँव पर लूटेरों के आक्रमण के समय इन्होंने भीषण युद्ध किया।
  • इनकी याद में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है।

बाबा झूंझारजी

  • जन्म – इमलोहा गाँव (सीकर)।
  • भगवान राम के जन्म दिवस रामनवमी को स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मेला भरता है।
  • बाबा झूंझारजी का स्थान सामान्यतः खेजड़ी के पेड़ के नीचे होता है।

वीर बिग्गाजी

  • जन्म – जांगल प्रदेश। रीडी गाँव (बीकानेर)
  • पिता – राव मोहन, माता – सुल्तानी देवी।
  • बीकानेर के जाखड़ समाज के कुल देवता।
  • मुस्लिम लूटेरों से गायों की रक्षा की।

डूंगजी-जवाहरजी (गरीबों के देवता)

  • सीकर जिले के लूटेरे लोकदेवता, जो धनवानों व अंग्रेजों से धन लूटकर गरीबों में बांट देते थे। 1857 की क्रांति में सक्रिय भाग लिया।

हरिराम बाबा

  • झोरड़ा (नागौर) में इनका पूजा स्थल है।
  • गुरु – भूरा।
  • इन्होंने साँप काटे हुए पीड़ित व्यक्ति को ठीक करने का मंत्र सीखा।

पनराजजी

  • जन्म – नगा गाँव (जैसलमेर)।
  • मुस्लिम लूटेरों से काठौड़ी गाँव के ब्राह्मणों की गायें छुड़ाते हुए शहीद हुए।

केसरिया कुंवरजी

  • लोकदेवता गोगाजी के पुत्र।
  • इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते हैं।

भोमियाजी

  • गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध।

मामादेव

  • वर्षा के देवता।
  • मामादेव का कोई मंदिर नहीं होता न ही कोई मूर्ति होती है।
  • गाँव के बाहर लकड़ी के तोरण के रूप में मामादेव पूजे जाते हैं।
  • इन्हें प्रसन्न करने के लिए “भैंस की कुर्बानी” दी जाती है। इनका प्रमुख मन्दिर स्यालोदड़ा (सीकर) में स्थित है। जहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला भरता है।

लोक देवता

  • आलमजी :- मालाणी प्रदेश (बाड़मेर) के लोकदेवता। ‘आलमजी का धोरा’ :- आलमजी का थान, जो घोड़ों के तीर्थस्थली के रूप में माना जाता है। मेला :- भाद्रपद शुक्ला द्वितीया।
  • इलोजी :- छेड़छाड़ के देवता के रूप में प्रसिद्ध। मारवाड़ क्षेत्र में पूजे जाते है। बाड़मेर में होली पर इलोजी की सवारी निकालने का रिवाज है।

दीवड़ा :- डूंगरपुर जिले में दीपावली के दिन से 15 दिन का पखवाड़ा पितृ पूजन के लिये होता है। इसे ‘दीवड़ा’ कहते हैं।

क्षेत्रपाल :- स्थान विशेष के देवता। इनके स्थान स्वतंत्र रूप से भी पाये जाते हैं। भैरव पूरे राजस्थान में पूजे जाने वाले क्षेत्रपाल है। क्षेत्रपाल के सर्वाधिक मंदिर राजस्थान के डूंगरपुर जिले में प्राप्त होते हैं। खेतला शब्द क्षेत्रपाल से बना है। यह मुख्य ग्राम देवता होता है तथा इसे जगदम्बा का पुत्र माना जाता है। राजस्थान में पूजे जाने वाले अन्य क्षेत्रपालों में मामाजी, झुंझारजी, वीर बापजी, खवि, सतीजी तथा बायासां आदि प्रमुख हैं।

खवि को राजस्थान में भूत, प्रेत, यक्ष, गन्धर्व और राक्षस से भी खतरनाक माना जाता है। ‘खवि’ का अर्थ होता है – कबंध अर्थात मस्तिष्क रहित धड़।

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