कुम्भलगढ़ दुर्ग
- मेवाड़ – मारवाड़ सीमा पर राजसमन्द जिले में स्थित गिरि दुर्ग।
- इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावशेषों पर शिल्पी मंडन की देखरेख में करवाया था।
- निर्माण काल :- 1448-1458 ई.।
- प्रवेश द्वार :- ओरठ पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, विजय पोल, भैरव पोल, नींबू पोल, चौगान पोल, पागड़ा पोल और गणेश पोल। (9 द्वार)
Kumbhalgarh Fort
उपनाम :- मेवाड़ की तीसरी आँख, मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी, मत्स्येन्द्र, एस्ट्रूस्कन, कुंभलमेरु, कमलमीर आदि।
- यह अरावली पर्वत की 13 ऊँची चोटियों से घिरा दुर्ग है।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग 36 किमी. लम्बे परकोटे से सुरक्षित है।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग की सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते हैं।
- कर्नल टॉड ने कुम्भलगढ़ की तुलना सुदृढ़ प्राचीरों, बुर्जो, कँगूरों के विचारों से ‘एस्ट्रूस्कन’ से की है।
इस दुर्ग में झालीबाव बावड़ी, कुम्भास्वामी, विष्णु मंदिर, मामादेव तालाब, झालीरानी की मालिया आदि अन्य प्रसिद्ध स्मारक निर्मित हैं।
‘उड़ना राजकुमार’ के नाम से प्रसिद्ध कुंवर पृथ्वीराज की छतरी इसी दुर्ग में है। (12 खम्भों की छतरी)।
कटारगढ़
कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित लघु दुर्ग। कटारगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। राणा कुम्भा के पुत्र ऊदा ने कटारगढ़ में ही कुम्भा की हत्या की। कटारगढ़ में ही झाली रानी का मालिया महल बना हुआ है। इसे ‘बादल महल’ भी कहा जाता है।
- इस दुर्ग में ही महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ था।
- इस दुर्ग की ऊँचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।
- हेमकूट, नील हिमवंत, वान्ध माधन पहाड़ियों पर निर्मित दुर्ग।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग से ही महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध की तैयारी की थी।
- इस दुर्ग में नीलकंठ महादेव का मंदिर तथा यज्ञ की प्राचीन वेदी है।