Jhalawar Mandir GK
झालरापाटन का सूर्य मंदिर
यह 10वीं सदी का भव्य पद्मनाथ/सूर्य मंदिर है जिसे सात सहेलियों का मंदिर भी कहते हैं। खजुराहो मंदिर शैली में बना यह मंदिर अपनी भव्यता और सुन्दर कारीगरी के कारण प्रसिद्ध है। कर्नल टॉड ने इसे चारभुजा मंदिर कहा है।
इस मंदिर में पृष्ठभाग में बनी सूर्य की मूर्ति घुटनों तक जूते पहने हुए है। मंदिर के गर्भगृह में काले रंग के पथर की आदमकद दिगम्बर जैन प्रतिमा है। इस पूरे मंदिर में सूर्य और विष्णु के सम्मिलित भाव की एक ही प्रतिमा मंडोवर के पीछे की मुख्य रथिका में है।
मूल रूप से 10वीं शताब्दी में बने इस मंदिर का 16वीं शताब्दी में जीर्णोद्धार हुआ था। 18वीं शताब्दी में यहाँ छतरिया बनी। सम्पूर्ण हाड़ौती क्षेत्र में इतना विशाल एवं सुन्दर उत्कीर्ण स्तम्भों वाला ऐसा मंदिर अन्यत्र नहीं है।
झालरापाटन के सूर्य मंदिर एवं शांतिनाथ जैन मंदिर, कच्छपघात शैली (जिन मंदिरों में विशालकाय शिखर, मेरू मण्डावर, स्तम्भों पर घटपल्लवों का अंकन, पंचशाखा द्वार जिनमें से एक सर्पो द्वारा वेष्टित हुआ हों, आदि हो, उन मंदिरों को कच्छपघात शैली का माना जाता है) के है।
शीतलेश्वर महादेव का मंदिर
इसका मूल नाम चन्द्रमौली मंदिर था। यह राजस्थान का पहला समयांकित मंदिर है जो 689 ई. में महामारू शैली में निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण राजा दुर्ग्गण के सामन्त वाप्पक ने विक्रम संवत 746 ई. में करवाया था। इस शैली का प्रभाव 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बने हिन्दू और जैन मंदिरों में देखा जा सकता है।
चन्द्रावती
चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित वैभवशाली मंदिरों (शीतलेश्वर महादेव, काली देवी, शिव, विष्णु और वराह मंदिर) के लिए प्रसिद्ध स्थल। इस नगर का निर्माण मालवा के राजा चन्द्रसेन द्वारा करवाया गया। यहाँ हाल ही में 11-12वीं सदी के अनेक मंदिरों के ध्वस्त अवशेष मिले हैं।
नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर
उन्हेल गाँव में स्थित मंदिर जिसमें अढ़ाई हजार साल पुरानी ग्रेनाइट सैन्डी स्टोन से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर
चाँदखेड़ी (झालावाड़) में स्थित।
बौद्धकालीन गुफाएँ
कोलवी (झालावाड़) में।