- जल दुर्ग (कालीसिन्ध–आहू नदी के संगम पर) परमार शासकों द्वारा निर्मित। (11वीं सदी में)
- सामेलणी (झालावाड़) में स्थित दुर्ग। अन्य नाम :- धूलरगढ़ / डोडगढ़, गर्गराटपुर
चौहान कल्पद्रुम ग्रन्थ के अनुसार खींची राजवंश संस्थापक देवनसिंह (धारू) ने 12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में डोड शासक बीजलदेव को परास्त कर इसका नाम गागरोण दुर्ग रखा।
इस दुर्ग में खुरासान से गागरोण आये सूफी संत ‘मिट्ठे साहब की दरगाह’ तथा औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलन्द दरवाजा भी स्थित है।
- इस दुर्ग में संत पीपा की छतरी है।
- इस दुर्ग में भगवान मधुसूदन का मंदिर तथा कोटा रियासत के सिक्के ढालने की टकसाल है।
इस दुर्ग में दो साके हुए
प्रथम साका :- 1423 ई. में मांडू सुल्तान होशंगशाह के आक्रमण के समय हुआ। उस समय गागरोण का शासक अचलदास खींची था।
द्वितीय साका :- 1444 ई. में महमूद खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। उस समय गागरोण का शासक पाल्हणसी था।
- महमूद खिलजी ने इस दुर्ग को जीतकर इसका नाम ‘मुस्तफाबाद’ रखा।
- अकबर ने गागरोण दुर्ग पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया।
- पृथ्वीराज ने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेलि क्रिसन रुकमणि री’ गागरोण में रहकर लिखा।
जालिमकोट
- गागरोण दुर्ग में कोटा के झाला जालिमसिंह द्वारा निर्मित विशाल परकोटा।
- रामबुर्ज एवं ध्वजबुर्ज इसकी विशाल बुर्जे हैं।
- पाषाणकालीन उपकरणों हेतु प्रसिद्ध।
- बादशाह जहाँगीर ने यह किला बूँदी के हाड़ा शासक राव रतन हाड़ा को जागीर में दे दिया।
गीध कराई
- गागरोण दुर्ग के पास स्थित ऊँची पहाड़ी।
- यह राज्य का एकमात्र दुर्ग है जो बिना नींव के एक चट्टान पर सीधा खड़ा है।