विस्तार – दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर जिले की सीमलवाड़ा पंचायत समिति तथा बांसवाड़ा जिले में गुजरात सीमा पर डामोर जनजाति मुख्यतया पाई जाती हैं।
डामोर जनजाति | Damor Janjati
यह जनजाति मूल रूप से गुजरात की है। राज्य की कुल आदिवासी जनसंख्या में इनका भाग 0.63 प्रतिशत हैं। जनसंख्या – 91.5 हजार। इन्हें डामरिया भी कहा जाता हैं।
डामोर जनजाति का आर्थिक जीवन
- इन लोगों का मुख्य पेशा खेती, पशुपालन व आखेट हैं।
- ये मक्का, चावल आदि फसलों की खेती करते हैं।
- आर्थिक दृष्टि से यह जनजाति पिछड़ी हुई हैं।
डामोर जनजाति का सामाजिक जीवन
- यह जनजाति स्वयं को राजपूत मानती हैं।
- एकाकी परिवार का प्रचलन।
- परिवार का मुखिया पिता होता है।
- इनके झगड़ों का फैसला पंचायत द्वारा होता हैं।
- फलां – डामोर जनजाति के गाँवों की सबसे छोटी इकाई।
- मुखी :- डामोर समुदाय की पंचायत का मुखिया।
- इनमें बहुपत्नी विवाह पद्धति का प्रचलन हैं।
- नतरा – डामोर जनजाति की स्त्रियां अपनी पति की मृत्यु के बाद इस प्रथा का पालन करती हैं।
- छेला बावजी का मेला – डामोर जनजाति के लिए गुजरात के पंचमहल में आयोजित किया जाता हैं।
- ग्यारस की रेवाड़ी का मेला – डूंगरपुर में सितम्बर में महीने में आयोजित किया जाता हैं।
- डामोर :- इस जनजाति के लोग शराबप्रिय एवं माँसाहारी हैं।
- पुरुष भी स्त्रियों की भाँति गहने पहनने के शौकीन हैं।
- डामोर के 95% लोग खेती करते हैं।
- नातेदारी प्रथा, तलाक एवं विधवा विवाह का प्रचलन। विवाह का मुख्य आधार वधू मूल्य होता है।
- डामोर लोग अंधविश्वासी होने के अलावा जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते हैं।
- डामोर जनजाति में गुप्त विवाह निषेध है।
- दीपावली के अवसर पर इस जनजाति में पशुधन की पूजा लक्ष्मी के रूप में की जाती है।
- इस जनजाति में बच्चों के मुंडन की प्रथा प्रचलित हैं।
- चाडिया :- डामोर जनजाति में होली के अवसर पर आयोजित किया जाने वाला कार्यक्रम।
- मुख्य मेला :- बेणेश्वर मेला (डूंगरपुर)