चित्तौड़गढ़ दुर्ग
- निर्माता :- चित्रांगद मौर्य (मौर्य राजा) (प्रसिद्ध ग्रंथ वीर विनोद के अनुसार)
- चितौड़ में गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम पर स्थित दुर्ग।
- 616 मीटर ऊँचे मेसा पठार पर निर्मित दुर्ग। (गिरि दुर्ग)
- यह दुर्ग राजस्थान के किलों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है। (क्षेत्रफल – 28 वर्ग किमी.)
- यह दिल्ली-मालवा मार्ग पर अवस्थित है।
- यह दुर्ग ‘धान्वन दुर्ग’ को छोड़कर शेष सभी 8 श्रेणियों में रखा जा सकता है।
- आकार :- व्हेल मछली के समान।
- उपनाम :- राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर, चित्रकूट, दुर्गाधिराज।
- इस दुर्ग की परिधि लगभग 13 किलोमीटर हैं।
मेवाड़ के गुहिलवंशीय शासक बप्पा रावल ने अंतिम मौर्य शासक मानमोरी को परास्त कर 734 ई. में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
इस दुर्ग में अदबद्जी का मंदिर, रानी पद्मिनी का महल, गोरा-बादल महल, कालिका माता मंदिर, सुरजकुण्ड, समिधेश्वर मंदिर, जयमल-फता (पता) हवेलियां, तुलजा माता मंदिर, कुम्भश्याम मंदिर, सतबीश देवरी जैन मंदिर, शृंगार चंवरी जैन मन्दिर एवं नवलखा भण्डार स्थित है।
दुर्ग के भीतर विजय स्तम्भ (9 मंजिला) भव्य इमारत है। इसका निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा 1440 ई. से 1448 ई. में मालवा विजय के उपलक्ष्य में करवाया। विजय स्तम्भ को ‘भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश’ कहा जाता है।
तीन साके
- पहला साका :- 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय।
- तत्कालीन शासक :- राणा रतनसिंह।
- जौहर :- पद्मिनी के नेतृत्व में।
- गौरा-बादल का सम्बन्ध चित्तौड़ के पहले साके से है।
- इस दुर्ग को जीतकर अलाउद्दीन खिलजी ने इसका नाम खिज्राबाद रखा। रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप राजा गन्धर्वसेन की पुत्री थी।
- दूसरा साका :- 1534 ई. में बहादुरशाह (गुजरात सुल्तान) के आक्रमण के समय
- तत्कालीन शासक :- विक्रमादित्य
- जौहर :- कर्मावती के नेतृत्व में।
- केसरिया :- रावत बाघसिंह के नेतृत्व में।
- बहादुरशाह ने अपने सेनापति रुमी खाँ को इस अभियान का नेतृत्व सौंपा था।
- इस युद्ध में रानी कर्मावती ने मुगल शासक हुमायूँ को राखी भेजकर मदद माँगी थी।
- तीसरा साका :- 1568 ई. में अकबर के आक्रमण के समय।
- तत्कालीन शासक :- राणा उदयसिंह
- इस युद्ध में जयमल व फता (पता) ने अदम्य वीरता का परिचय दिया।
- इस दुर्ग में 7 प्रवेश द्वार हैं :- पाडन पोल (मुख्य व पहला प्रवेश द्वार), भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल, रामपोल।
- नवलखा बुर्ज (बनवीर द्वारा निर्मित लघु दुर्ग) इसी किले में है।
इस दुर्ग में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ (7 मंजिला) का निर्माण बघेरवाला जैन जीजा द्वारा 10वीं – 11वीं सदी में करवाया गया था। (भगवान आदिनाथ का स्मारक)। राज्य का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट।
- दुर्ग में जलापूर्ति के स्रोत :- रत्नेश्वर तालाब, कुम्भसागर, गोमुख झरना, हाथीकुण्ड, भीमलत तालाब, झालीबाव तालाब।
- दुर्ग के भीतर स्थित फतह प्रकाश महल को संग्रहालय बना दिया गया।
- कल्ला राठौड़ की छतरी (4 खम्भों की छतरी) इसी दुर्ग में है।
- लाखोटा की बारी :- चित्तौड़ दुर्ग की उत्तरी खिड़की।
- दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ के वास्तुकार जैता, नापा, पोमा एवं पूंजा थे।
- जैन कीर्ति स्तम्भ के लेखक कवि अत्री एवं महेश थे। इसका निर्माण 13वीं सदी में जैन सम्प्रदाय के श्रावक ‘जीजाक’ ने करवाया था।
- दुर्ग का सबसे प्राचीन दरवाजा :- सूरजपोल।
- रावत बाघसिंह का स्मारक इसी दुर्ग में है।
- विजय स्तम्भ को कर्नल जेम्स टॉड ने ‘रोम के टार्जन’ की उपमा दी।
- दुर्ग के सम्बन्ध में प्रचलित कहावत :- गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया।