राजस्थान की साहित्यिक शब्दावली

साहित्यिक शब्दावली

कक्का क्या है

कक्का उन रचनाओं को कहते हैं, जिनमें वर्णमाला के बावन वर्ण में से प्रत्येक वर्ण से रचना का प्रारम्भ किया जाता है।

ख्यात क्या है

ख्यात संस्कृत भाषा का शब्द है। शब्दार्थ की दृष्टि से इसका आशय ख्यातियुक्त, प्रख्यात, विख्यात, कीर्ति आदि है अर्थात् ख्याति प्राप्त, प्रसिद्ध एवं लोक विश्रुत पुरुषों की जीवन घटनाओं का संग्रह ख्यात कहलाता है।

ख्यात में विशिष्ट वंश के किसी पुरुष या पुरुषों के कार्य़ों और उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। ख्यातों का नामकरण वंश, राज्य या लेखक के नाम से किया जाता रहा, जैसे-राठौड़ाँ री ख्यात, मारवाड़ राज्य री ख्यात, नैणसी री ख्यात इत्यादि

इतिहास के विषयानुसार और शैली की दृष्टि से ख्यातों को दो भागों में बाँटा जा सकता है

  • संलग्न ख्यात-ऐसी ख्यातों में क्रमानुसार इतिहास लिखा हुआ होता है, जैसे-दयालदास की ख्यात
  • बात-संग्रह – ऐसी ख्यातों में अलग-अलग छोटी या बड़ी बातों द्वारा इतिहास के तथ्य लिखे हुए मिलते हैं, जैसे-नैणसी एवं बाँकीदास की ख्यात

ख्यातों का लेखन मुगल बादशाह अकबर (1556-1605 ई.) के शासनकाल से प्रारम्भ माना जाता है, जब अबुल फजल द्वारा अकबरनामा के लेखन हेतु सामग्री एकत्र की गई, तब राजपूताना की विभिन्न रियासतों को उनके राज्य तथा वंश का ऐतिहासिक विवरण भेजने के लिए बादशाह द्वारा आदेश दिया गया था। इसी संदर्भ में लगभग प्रत्येक राज्य में ख्यातें लिखी गई।

ख्यातों का लेखन प्राचीन बहियों, समकालीन ऐतिहासिक विवरणों, बड़वा भाटों की वंशावलियों, श्रुति परम्परा से चली आ रही इतिहासपरक बातों, पट्टों-परवानों के आधार पर किया गया था। ख्यातों से समाज की राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का दिग्दर्शन होता है।

झमाल क्या है

झमाल राजस्थानी काव्य का मात्रिक छन्द है। इसमें पहले पूरा दोहा, फिर पाँचवें चरण में दोहे के अंतिम चरण की पुनरावृत्ति की जाती है।

छठे चरण में दस मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार दोहे के बाद चान्द्रायण फिर उल्लाला छन्द रखकर सिंहावलोकन रीति (धीरे-धीरे) से पढ़ा जाता है। राव इन्द्रसिंह री झमाल प्रसिद्ध है।

झूलणा क्या है

झूलणा राजस्थानी काव्य का मात्रिक छन्द है। इसमें 24 अक्षर के वर्णिक छन्द के अंत में यगण होता है।

अमरसिंह राठौड़ रा झूलणा, राजा गजसिंह रा झूलणा, राव सुरतांण-देवड़े रा झूलणा आदि प्रमुख झूलणें हैं।

टब्बा और बालावबोध क्या है

मूल रचना के स्पष्टीकरण हेतु पत्र के किनारों पर टिप्पणियाँ लिखी जाती है उन्हें टब्बा कहते हैं और विस्तृत स्पष्टीकरण को बालावबोध कहा जाता है।

दवावैत क्या है

गद्य-पद्य में लिखी गई तुकान्त रचनाएँ ‘दवावैत‘ कहलाती है। गद्य के छोटे-छोटे वाक्य खण्डों के साथ पद्य में किसी एक घटना अथवा किसी पात्र का जीवन वृत्त ‘दवावैत‘ में मिलता है। अखमाल देवड़ा री दवावैत महाराणा जनवानसिंह री दवावैत, राजा जयसिंह री दवावैत आदि प्रमुख दवावैत ग्रंथ हैं।

दूहा क्या है

राजस्थान में वीर तथा दानी पुरुषों पर असंख्य दोहे लिखे गये हैं जिनसे उनके साहस, धैर्य, त्याग, कर्त्तव्यपरायणता, दानशीलता तथा ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी मिलती हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से अखैराज सोनिगरै रा दूहा, अमरसिंघ गजसिंघोत रा दूहा, करण सगतसिंघोत रा दूहा, कान्हड़दे सोनिगरै रा दूहा आदि प्रमुख हैं।

धमाल क्या है

राजस्थान में होली के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को धमाल कहा जाता है। होली के अवसर पर गाई जाने वाली एक राग का नाम भी धमाल है।

परची क्या है

संत महात्माओं का जीवन परिचय जिस पद्यबद्ध रचना में मिलता है उसे राजस्थानी भाषा में परची कहा गया है। इनमें संतों के नाम, जाति, जन्मस्थान, माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों का नाम एवं उनकी साधनागत उपलब्धियों का वर्णन मिलता है।

संत साहित्य के इतिहास अध्ययन के लिए ये कृतियाँ उपयोगी हैं संत नामदेव की परची, कबीर की परची, संत रैदास की परची, संत पीपा की परची, संत दादू की परची, मीराबाई की परची आदि प्रमुख परची रचना हैं।

प्रकास क्या है

किसी वंश अथवा व्यक्ति विशेष की उपलब्धियों या घटना विशेष पर प्रकाश डालने वाली कृतियों को ‘प्रकास‘ कहा गया है। प्रकाश ऐतिहासिक दृष्टि से उपयोगी है।

किशोरदास का राजप्रकास, आशिया मानसिंह का महायश प्रकास, कविया करणीदास का सूरज प्रकास, रामदान लालस का भीमप्रकास, मोडा आशिया का पाबूप्रकास, किशन सिढ़ायच का उदयप्रकास, बख्तावर का केहर प्रकास, कमजी दधवाड़िया का दीप कुल प्रकास इत्यादि महत्वपूर्ण प्रकास ग्रंथ हैं।

प्रशस्ति क्या है

राजस्थान में मंदिरों, दुर्गद्वारों, कीर्तिस्तम्भों आदि पर प्रशस्तियाँ उत्कीर्ण मिलती है। इनमें राजाओं की उपलब्धियों का प्रशंसायुक्त वृत्तान्त मिलता है इसलिए इन्हें ‘प्रशस्ति‘ कहते हैं। मेवाड़ में प्रशस्तियाँ उत्कीर्ण करने की परम्परा रही है।

प्रशस्तियों में राजाओं का वंशक्रम, युद्ध अभियानों, पड़ौसी राज्यों से संबंध, उनके द्वारा निर्मित मंदिर, जलाशय, बाग-बगीचों, राजप्रासादों आदि का वर्णन मिलता है। इनसे उस समय के बौद्धिक स्तर का भी पता चलता है।

प्रशस्तियों में यद्यपि अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन मिलता है, फिर भी इतिहास निर्माण में ये उपयोगी है। नेमिनाथ मंदिर की प्रशस्ति, सुण्डा पर्वत की प्रशस्ति, राज प्रशस्ति, रायसिंह प्रशस्ति, कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति, कुम्भलगढ़ प्रशस्ति इत्यादि प्रमुख  प्रशस्तियाँ हैं जो तत्कालीन समय की राजनैतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दशा का ज्ञान कराती हैं।

बही क्या है

एक विशेष प्रकार की बनावट के रजिस्टर को बही कहते हैं, जिसमें इतिहास सम्बन्धी कई उपयोगी सामग्री दर्ज की हुई मिलती हैं। राव व बड़वे अपनी बही में आश्रयदाताओं के नाम और उनकी मुख्य उपलब्धियों का ब्यौरा लिखते थे।

इसी प्रकार ‘राणी मंगा‘ जाति के लोग कुँवरानियों व ठकुरानियों के नाम और उनकी संतति का विवरण अपनी बही में लिखते थे। यह कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता था। चित्तौड़-उदयपुर पाटनामा रही बही, पाबूदान रही बही, जोधपुर राणी मंगा रही बही इत्यादि प्रमुख बहियाँ हैं।

बात क्या है

ऐतिहासिक घटनाओं, इतिहास प्रसिद्ध पात्रों और पौराणिक आख्यानों को लेकर अनेक छोटी-छोटी बातें लिखी गई हैं। प्रारम्भ में बाते मौखिक ही रही, लेकिन बादमें याद रखने की सुविधा व राजा-महाराजाओं के पठनार्थ बातों को लिखा गया।

ये बातें तत्कालीन समाज की विभिन्न प्रवृत्तियों की जानकारी देती हैं। बातें काल्पनिक भी होती थी। कथानक, विषय, भाषा, रचना-प्रकार, शैली और उद्देश्य की दृष्टि से बातें अनेक प्रकार की मिलती हैं।

तत्कालीन समय में बातों के माध्यम से ही समाज को आवश्यक ज्ञान दिया जाता था। बातों में बाल-विवाह, बहुविवाह, पर्दा, दहेज एवं सती प्रथा का भी चित्रण मिलता है। राणा प्रताप री बात, राव मालदेव री बात, अचलदास खींची री बात, राजा उदयसिंह री बात, वीरमदे सोनगरा री बात, राव चन्द्रसेन री बात इत्यादि प्रमुख बाते हैं।

बात का एक उदाहरण इस प्रकार मिलता है- ‘पिंगल राजा सावंतसी देवड़ा नूं आदमी मेल कहायौ-अबै थै आणौ करौ।

तद सावंतसी घणों ही विचारियौ पण बात बांध कोई वैसे नहीं, कुंवरी नै ऊझणों दे मेलीजे। तद ऊठ घोड़ा, रथ, सेजवाल, खवास, पासवान, साथे हुआ सो उदैचंद खमैं नहीं।‘

बारहमासा क्या है

बारहमासा में कवि वर्ष के प्रत्येक मास की परिस्थितियों का चित्रण करते हुए नायिका का विरह वर्णन करते हैं। बारहमासा का वर्णन प्रायः आषाढ़ से प्रारम्भ होता है।

मरस्या क्या है

मरस्या से तात्पर्य ‘शोक काव्य‘ से है। राजा या किसी व्यक्ति विशेष की मृत्योपरान्त शोक व्यक्त करने के लिए ‘मरस्या‘ काव्यों की रचना की जाती थी।

इसमें उस व्यक्ति के चारित्रिक गुणों के अलावा अन्य क्रिया-कलापों का जिक्र भी किया जाता था। यह कृतियाँ समसामयिक होने के कारण उपयोगी हैं। ‘राणे जगपत रा मरस्या‘ मेवाड़ महाराणा जगतसिंह की मृत्यु पर शोक प्रकट करने के लिए लिखा गया था।

रासो क्या है

मध्यकालीन राजपूत शासकों ने विद्वानों और कवियों को राज्याश्रय प्रदान किया। उन विद्वानों ने शासकों की प्रशंसा में काव्यों की रचना की, जिनमें इतिहास विषयक सामग्री मिलती है। ऐसे काव्यों को ‘रासो‘ कहा जाता है।

मोतीलाल मेनारिया के अनुसार, “जिस काव्य ग्रन्थ में किसी राजा की कीर्ति, विजय, युद्ध, वीरता आदि का विस्तृत वर्णन हो, उसे रासो कहते हैं।“ हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार रासो नाम से अभिहित कृतियाँ दो प्रकार की हैं- पहली गीत-नृत्य परक जो राजस्थान तथा गुजरात में रची गई और दूसरी छन्द-वैविध्य परक जो पूर्वी राजस्थान में लिखी गई।

रासो ग्रन्थों में चन्द्रबरदाई का पृथ्वीराजरासो, नृपति नाल्ह का बीसलदेव रासो, कविजान का क्यामखां रासो, दौलत विजय का खुमाण रासो, गिरधर आसियाँ का सगतरासो, राव महेशदास का बिन्है रासो, कुम्भकर्ण का रतन रासो, डूंगरसी का शत्रुशाल रासो, जोधराज का हम्मीर रासो, जाचिक जीवन का प्रतापरासो, सीताराम रत्नु का जवान रासो प्रमुख हैं।

रूपक क्या है

किसी वंश अथवा व्यक्ति विशेष की उपलब्धियों के स्वरूप को दर्शाने वाली काव्य कृतियों का नाम रूपक रखा गया है। गजगुणरूपक, रूपक गोगादेजी रो, राजरूपक आदि प्रमुख रूपक काव्य हैं।

वंशावली / पीढ़ियाँवली क्या है

वंशावलियों में विभिन्न वंशां की सूचियाँ मिलती हैं। इन सूचियों में वंश के आदिपुरुष से विद्यमानपुरुष तक पीढ़ीवार वर्णन मिलता है। वंशावलियाँ और पीढ़ियाँवलियाँ अधिकतर ‘भाटों‘ द्वारा लिखी गई हैं।

प्रत्येक राजवंश तथा सामन्त परिवार भटों का यजमान होता था। राजवंश की वंशावली तैयार करना, शासकों तथा उनक परिवार के सदस्यों के कार्यकलापों का विस्तृत विवरण रखना उनका मुख्य कार्य होता था।

वंशावलियाँ और पीढ़ियाँवालियाँ शासकों, सामन्तों, महारानियों, राजकुमारों, मंत्रियों, नायकों के वंशवृक्ष के साथ-साथ मुख्य घटनाओं का वर्णन भी उपलब्ध करवाती हैं। फलतः इतिहास के व्यक्तिक्रम, घटनाक्रम और संदर्भक्रम की दृष्टि से वंशावलियाँ उपयोगी हैं। अमरकाव्य वंशावली, सूयवंश वंशावली, राणाजी री वंशावली, सिसोद वंशावली आदि महत्वपूर्ण वंशावलियाँ हैं।

वचनिका क्या है

वचनिका शब्द संस्कृत के वचन से बना है। राजस्थानी साहित्य में गद्य-पद्य मिश्रित काव्य को वचनिका की संज्ञा दी गई है। वचनिका के दो भेद होते हैं- (i) पद्यबद्ध तथा (ii) गद्यबद्ध।

पद्यबद्ध में आठ-आठ अथवा बीस-बीस मात्राओं के तुकयुक्त पद होते हैं जबकि गद्यबद्ध में मात्राओं का नियम लागू नहीं होता है।

इन कृतियों से स्थानीय योद्धाओं का वर्णन प्राप्त होता है। अचलदास खींची री वचनिका, वचनिका राठौड़ रूपसिंहजी री, वचनिका राठौड़ रतनसिंघजी महेसदासौत री आदि प्रमुख वचनिकाएँ हैं।

विगत क्या है

विगत में किसी विषय का विस्तृत विवरण होता है। इसमें इतिहास की दृष्टि से शासक, शासकीय परिवार, राज्य के प्रमुख व्यक्ति अथवा उनके राजनीतिक, सामाजिक व्यक्तित्व का वर्णन मिलता है। आर्थिक दृष्टि से विगत में उपलब्ध आंकड़े तत्कालीन आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों को जानने के लिए उपयोगी स्रोत हैं।

नैणसी की मारवाड़ रा परगनां री विगत में प्रत्येक परगने की आबादी, रेख, भूमि किस्म, फसलों का हाल, सिंचाई के साधन आदि की जानकारियाँ मिलती हैं।

विलास क्या है

विलास काव्य कृतियों में राजनीतिक घटनाओं के अलावा आमोद-प्रमोद विषयक पहलुओं का भी वर्णन मिलता है। राजविलास, बुद्धिविलास, वृत्तविलास, विजय विलास, भीम विलास इत्यादि महत्वपूर्ण विलास ग्रन्थ हैं।

वेलि क्या है

वेलि का अर्थ वेल, लता व वल्लरी है। वल्लरी संस्कृत शब्द है, जिसका अपभ्रंश रूप वेल अथवा वेलि है। ऐतिहासिक वेलि ग्रंथ ‘वेलियों‘ छन्द में लिखे हुए मिलते हैं।

इन वेलि ग्रन्थों से राजनीतिक घटनाओं के साथ-साथ सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं की जानकारी भी मिलती है। दईदास जैतावत री वेलि, रतनसी खीवावत री वेल तथा राव रतन री वेलि प्रमुख वेलि ग्रंथ हैं।

सबद क्या है

सन्त काव्य में ‘सबद‘ से तात्पर्य ‘गेय पदों से‘ है। ‘सबद‘ में प्रथम पंक्ति ‘टेक‘ अथवा स्थायी होती है, जिसको गाने में बार-बार दोहराया जाता है।

‘सबद‘ का शुद्ध रूप शब्द होता है। सभी सन्त कवियों ने शब्दों की रचनाएँ की हैं जिन्हें विभिन्न लौकिक और शास्त्रीय रागों में गाया जाता है।

साखी क्या है

साखी का मूल रूप साक्षी है। साक्षी का अर्थ ‘आँखों देखी बात का वर्णन करना‘ अर्थात् ‘गवाही देना‘ होता है। साखी परक रचनाओं में सन्त कवियों ने अपने अनुभूत ज्ञान का वर्णन किया है। साखियों में सोरठा छन्द का प्रयोग हुआ है। चौपाई, चौपई, छप्पय आदि का प्रयोग कम हुआ है। कबीर की साखियाँ प्रसिद्ध हैं।

सिलोका क्या है

संस्कृत के श्लोक शब्द का बिगड़ा रूप सिलोका है। राजस्थानी भाषा में धार्मिक, ऐतिहासिक और उपदेशात्मक सिलोके लिखे मिलते हैं। कुछ सिलोके प्रख्यात वीरों एवं कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को लेकर लिखे गए हैं।

सिलोका साधारण पढ़े-लिखे लोगों द्वारा लिखे गये हैं, इसलिए ये जनसाधारण की भावनाओं का दिग्दर्शन कराते हैं। राव अमरसिंह रा सिलोका, अजमालजी रो सिलोको, राठौड़ कुसलसिंह रो सिलोको, भाटी केहरसिंह रो सिलोको इत्यादि प्रमुख सिलोके हैं।

स्तवन क्या है

स्तुतिपरक काव्यों को स्तवन कहा जाता है। ऐसे काव्यों को स्तुति, स्तोत्र, विनती और नमस्कार भी कहते हैं। इनका संबंध तीर्थंकरों, महापुरुषों, तीर्थाें, साधुओं और महासतियों आदि से होता है।

हकीकत क्या है

हकीकत का अर्थ वास्तविकता से है। इन लघु कृतियों का उद्देश्य किसी घटना, स्थान विशेष या राजवंश के बारे में सही जानकारी का बोध कराना है। मनसब री हकीकत, बीकानेर री हकीकत, हाड़ा री हकीकत इत्यादि महत्वपूर्ण हकीकत ग्रंथ हैं।

राजस्थानी भाषा के रूप

  • डिंगल अपभ्रंश मिश्रित पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) के साहित्यिक रूप को ही डिंगल कहा जाता है। चारण साहित्य इसी श्रेणी में आता है। डिंगल साहित्य प्रधानतः वीर रसात्मक है।
  • पिंगल ब्रजभाषा एवं पूर्वी राजस्थानी के अपभ्रंश मिश्रित साहित्यिक रूप को पिंगल कहा जाता है।
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