राजस्थान के संगीतज्ञ
अल्लाह जिलाह बाई
- राजस्थान की विख्यात मांड गायिका।
- राजस्थान के बीकानेर जिले की निवासी
- 1982 में ‘पद्मश्री’ अलंकरण से सम्मानित।
- प्रमुख गीत :- केसरिया बालम आवों नी पधारो म्हारे देश……
- मरणोपरान्त राजस्थान रत्न पुरस्कार – 2012 से सम्मानित।
जगजीत सिंह
- विख्यात गजल गायक।
- श्रीगंगानगर में जन्म।
- उपनाम :- गजल किंग।
- 2003 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित।
- मरणोपरान्त राजस्थान रत्न पुरस्कार – 2012 से सम्मानित।
करणा भील
- जैसलमेर का प्रसिद्ध नड़ वादक।
- पहले किसी समय कुख्यात डाकू था।
- वह अपनी छ: फुट 8 इंच लम्बी मूछों के लिए भी विख्यात था।
गवरी बाई
- डूंगरपुर निवासी।
- कृष्ण भक्ति के कारण ‘वागड़ की मीरां’ की उपमा।
- ग्रन्थ :- ‘कीर्तनमाला’ (801 पद)।
- 1818 ई. में इन्होंने यमुना जी में जल समाधि ले ली।
बन्नो बेगम
- मांड गायिका। जयपुर निवासी।
मेहंदी हसन
- मशहूर गजल गायक। झुंझुनूं जिले से सम्बन्ध।
जमीला बानो
जोधपुर निवासी मांड गायिका।
नारायण सिंह बैगनियां
धौलपुर निवासी। राजस्थान का सबसे छोटा कलाकार (24 इंच)। प्रसिद्ध लोक संगीतज्ञ।
रुकमा मांगणियार
बाड़मेर की ‘कागी’ गायिका। यह मांगणियार जाति की पहली महिला गायिका है।
पण्डित बाबूलाल
जयपुर कथक घराने के मूर्धन्य कलाकार।
मधु भट्ट तैलंग
ध्रुपद गायिका।
- राजस्थान का राज्य गीत :- केसरिया बालम ……….।
- केसरिया बालम गीत की गायन शैली :- मांड गायन शैली।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लोकगीतों को संस्कृति का सुखद सन्देश ले जाने वाली कला की संज्ञा दी।
- महात्मा गाँधी के अनुसार ‘लोकगीत ही जनता की भाषा है, लोकगीत हमारी संस्कृति के पहरेदार है।’
- इण्डोणी, पणिहारी गीत मारवाड़ क्षेत्र में कालबेलिया स्त्रियों द्वारा पानी भरते समय गाया जाता हैं।
- गोरबन्द :- रेगिस्तानी क्षेत्र में ऊँट का शृंगार करते समय गाया जाने वाला गीत है। गोरबन्द ऊँट के गले का आभूषण है।
- हिचकी :- अलवर-मेवात क्षेत्र में कभी भी याद करने के लिए गाया जाता है।
- सूवटियां :- मेवाड़ क्षेत्र में गाया जाने वाला विरह गीत है, जिसमें भील स्त्री परदेस गये पति को संदेश भेजती है।
- हमसीढ़ों :- मेवात क्षेत्र में श्रावण/फाल्गुन मास में भील स्त्री-पुरुषों द्वारा साथ में मिलकर गाया जाने वाला युगल गीत है।
- पटेल्या, लालर, बिछियों आदि आदिवासी क्षेत्र में गाये जाने वाले लोकगीत हैं।
- घोड़ी, जला, कामण, काजलियो व ओल्यूं आदि लोकगीत विवाह से सम्बन्धित हैं।
- जच्चा :- पुत्र जन्मोत्सव पर गाया जाने वाला सामूहिक मंगल गीत। इसे ‘होलर’ भी कहा जाता है।
- मोरिया :- विवाह की प्रतीक्षा में बािलका द्वारा गाया जाने वाला गीत।
- पंखिडा :- पंखिडा का अर्थ है ‘प्रेम’। काश्तकारों द्वारा खेतों में काम करते समय अलगोजा और मंजीरा वाद्य यंत्र बजाकर गाते हैं।
- लोटिया :- स्त्रियों द्वारा चैत्र मास में त्यौहार के दौरान तालाबों और कुओं से पानी से भरे लौटे और कलश लाये जाने के दौरान गाया जाता है।
- चोक च्यानणी गीत गणेश चतुर्थी महोत्सव में गाये जाते हैं।
- ‘सद्दीक खाँ मांगणियार लोक कला एवं अनुसंधान परिषद (लोकरंग)’ की स्थापना :- 13 सितम्बर, 2002, जयपुर में।
- महाराणा कुम्भा की पुत्री ‘रमाबाई’ प्रसिद्ध संगीतज्ञ थी, जिसे ‘वागीश्वरी’ की उपमा दी गई।
- हवेली संगीत :- मंदिरों में विकसित संगीत धारा। नाथद्वारा, कांकरोली, जयपुर, कोटा, भरतपुर आदि के मंदिरों में हवेली संगीत की परम्परा आज भी जीवित है।
- ‘Indian Music’ पुस्तक के लेखक :- विलियम जेम्स (बीकानेर)।
- नवाब वाजिद अली शाह ‘ललनपिया’ के उपनाम से ठुमरियों की रचना करते थे।
- ध्रुपद सामदेव का संगीत है। ध्रुपद की चार शैलियाँ – खंडारी, नौहारी, डागुरी एवं गौबरहारी (गोहरहारी)। गोहरहारी शैली की उत्पत्ति ग्वालियर से हुई है तथा इसके प्रवर्तक तानसेन को माना जाता है।
- खण्डारवाणी का उद्भव उणियारा (राजस्थान) खंडार के शासक सम्मोखन सिंह के समय हुआ।
- नौहारवाणी :- श्रीचंद नौहर इसके प्रवर्तक थे।
- डागर घराने के प्रसिद्ध गायक :- अमीनुद्दीन खाँ, जहीरुद्दीन खाँ, फैयाजुद्दीन खाँ।
- पुण्डरीक विट्ठल जयपुर महाराजा माधोसिंह एवं मानसिंह के आश्रित कवि व संगीतज्ञ थे।
- तबला एवं सितार के आविष्कारक :- अमीर खुसरो।
- मिर्जा गालिब का पूरा नाम :- मौलाना असद अल्ला खाँ गालिब।
- तानसेन :- रीवा के राजा रामचन्द्र के दरबारी एवं अकबर के नवरत्नों में से एक। ग्वालियर में जन्म। प्रकाण्ड संगीतज्ञ।
- गन्धर्व बाइसी :- जयपुर शासक सवाई प्रतापसिंह के समय उनके दरबार में 22 प्रसिद्ध संगीतज्ञों एवं विद्वानों की मंडली।
- देवर्षि द्वारकानाथ भट्ट, ब्रजपाल भट्ट, चाँद खाँ, गणपति भारती सवाई प्रतापसिंह के दरबारी संगीतज्ञ थे।
- प्रसिद्ध संगीतज्ञ भावभट्ट महाराजा अनूपसिंह (बीकानेर) के दरबारी थे।
गायन एवं वादन के प्रमुख घराने
घराना | प्रवर्तक | विशेषताएँ |
जयपुर घराना | भूपत खाँ | ख्याल गायन शैली का घराना प्रसिद्ध संगीतज्ञ :- मुहम्मद अली खाँ कोठी, केसर बाई केरगर, मंजी खाँ, भूर्जी खाँ। |
पटियाला घराना | फतेह अली एवं अलीबख्श | जयपुर घराने के उपशाखा।‘गुलाम अली’ इसी घराने से सम्बन्धित |
बीनकार घराना | रज्जब अली खाँ | प्रसिद्ध गायक :- सादिक अली खाँ, सावल खाँ |
अतरौली घराना | अल्लादिया खाँ | जयपुर घराने की उपशाखाप्रसिद्ध संगीतज्ञ :- मानतोल खाँ (रुलाने वाले फकीर की उपमा)प्रसिद्ध गायिका :- किशोरी अमोणकर |
मेवाती घराना | नजीर खाँ | मोतीराम ज्योतिराम, पं. जसराज, पं. मणिराम इसी घराने से संबंधित है। |
डागर घराना | बहराम खाँ(महाराजा रामसिंह के दरबारी) | आदि पुरुष :- बाबा गोपालदास। |
जयपुर का सेनिया घराना | सूरतसेन | सितारियों का घराना |
किराना घराना | बन्दे अली खाँ | महाराष्ट्र में प्रचलित। गंगू बाई हंगल, रोशन आरा बेगम, पं. भीमसेन जोशी प्रसिद्ध संगीतज्ञ है। |
दिल्ली घराना | सदारंग (नियामत खाँ) | सदारंग ख्याल गायन शैली के प्रवर्तक माने जाते है। |