राजस्थान की बावड़ी
रानीजी की बावड़ी :- यह बूँदी नगर में स्थित है जो बावड़ियों का सिरमौर है। इस अनुपम बावड़ी का निर्माण 1699 ई. में राव राजा अनिरुद्ध की रानी लाडकंवर नाथावती ने करवाया था। इस कलात्मक बावड़ी के तीन तौरणद्वार हैं।
यह बावड़ी करीब 300 फीट लम्बी व 40 फीट चौड़ी है। यह एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावड़ियों में से एक है। अलंकृत तोरण द्वारों की महराबे लगभग 30 मीटर ऊँची हैं।
- अनारकली की बावड़ी :- छत्रपुरा क्षेत्र (बूँदी) में रानी नाथावती की दासी अनारकली द्वारा निर्मित बावड़ी।
- काकीजी की बावड़ी :- इन्द्रगढ़ (बूँदी) में स्थित इस बावड़ी का निर्माण इन्द्रगढ़ के अधिपति सरदारसिंह की पत्नी महारानी आली ने करवाया था।
- भावलदेवी बावड़ी :- बूँदी में स्थित इस भव्य बावड़ी का निर्माण महाराव भावसिंह की पत्नी भावलदेवी ने करवाया था। अंग्रेजी के ‘L’ अक्षर के आकार में निर्मित इस बावड़ी की लम्बाई 155 फीट एवं चौड़ाई 22 फीट 5 इंच है।
बावड़ियों का शहर – बूँदी
- नीमराणा की बावड़ी :- नीमराणा (अलवर) में इस 9 मंजिली बावड़ी का निर्माण राजा टोडरमल ने करवाया था।
- औस्तीजी की बावड़ी :- शाहबाद (बारां) में।
- तपसी की बावड़ी :- शाहबाद (बारां) में।
- बड़गाँव की बावड़ी :- बड़गाँव (अंता, बारां) में कोटा रियासत के तत्कालीन शासक शत्रुशाल की पटरानी जादौण द्वारा निर्मित।
- चमना बावड़ी :- शाहपुरा (भीलवाड़ा) में स्थित भव्य और विशाल तिमंजिली बावड़ी जिसका निर्माण वि. स. 1800 में महाराजा उम्मेदसिंह प्रथम ने चमना नामक गणिका की इच्छा पर करवाया था।
- गुल्ला बावड़ी :- बूँदी में।
- नांदरघूस की बावड़ी :- बूँदी में।
- धाबाई जी की बावड़ी :- नानकपुरिया (बूँदी) में।
- नाग सागर कुण्ड :- बूँदी में बूँदी शासक राव राजा रामसिंह की पत्नी रानी चन्द्रभान कंवर द्वारा निर्मित बावड़ी।
- रंडी की बावड़ी :- बूँदी में।
- कालाजी की बावड़ी, गुल्ला की बावड़ी, पठान की बावड़ी :- बूँदी में।
- वीनौता की बावड़ी :- सादड़ी (चित्तौड़गढ़) में स्थित इस बावड़ी का निर्माण स्थानीय जागीरदार सूरजसिंह शक्तावत ने करवाया था।
- राजाजी की बावड़ी :- बारां में।
- सूर्यकुण्ड :- चित्तौड़गढ़ में मानमोरी द्वारा निर्मित बावड़ी।
- खातन की बावड़ी :- चित्तौड़गढ़ में।
- नौलखा बावड़ी :- डूँगरपुर में।
- निर्माणकर्ता :- प्रीमल देवी (महारावल आसकरण की पत्नी) निर्माण :- 1602 ई. में।
- बावड़ी का मुख्य शिल्पी :- लीलाधर (जयवंत का पुत्र)।
- केला बावड़ी :- डूँगरपुर में। निर्माणकर्ता :- रानी गुमानकंवरी ( महारावल जसवंतसिंह राठौड़ की पत्नी)
- डेसा गाँव की बावड़ी :- डूँगरपुर में। निर्माण :- रानी माणक दे (रावल कर्मसिंह की पत्नी) द्वारा 1936 में।
- पन्ना मीणा की बावड़ी :- आमेर (जयपुर) में। यह बावड़ी मिर्जा राजा जयसिंह के काल में 17वीं सदी में निर्मित करवाई गई।
- झिर की बावड़ी :- जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर झिर गाँव में स्थित 3 मंजिली बावड़ी का निर्माण बांसखो के सामन्त बुधसिंह कुम्भाणी ने करवाया।
मेड़तणीजी की बावड़ी (झुंझुनूं) :- झुंझुनूं के शासक शार्दुलसिंह की मृत्यु के पश्चात इनकी पत्नी बखत कंवर मेड़तणी द्वारा अपने दिवंगत पति की स्मृति में निर्मित बावड़ी। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में बनी यह बावड़ी 250 फीट लम्बी, 55 फीट चौड़ी और लगभग 100 फीट गहरी है।
लवाण की बावड़ी (डकणियों की बावड़ी) :- लवाण (झुंझुनूं) में निर्मित बावड़ी। अन्य नाम :- गढ़ बावड़ी / डकणियों (दक्षणियों) की बावड़ी एवं मराठों का कुआं। यह बावड़ी बाहर से एक कुएँ जैसी है किन्तु इसके नीचे भीतर किले जैसी संरचना है, जिसका रास्ता अत्यन्त संकड़ा है।
तुलस्यानों की बावड़ी, चेतनदास की बावड़ी :- झुंझुनूं में।
- नौ चौकी :- राजसमन्द झील का उत्तरी किनारा (पाल), जिसका निर्माण राणा राजसिंह सिसोदिया द्वारा गोमती नदी के प्रवाह को रोककर किया गया।
- पाल की लम्बाई 999 फीट और चौड़ाई 99 फीट है। प्रत्येक सीढ़ी 9 इंच चौड़ी और 9 इंच ऊँची है। इस पाल के निर्माण में उस समय 1 करोड़, 50 लाख, 7 हजार, 608 रुपये व्यय हुए थे।
आभानेरी की चाँदबावड़ी :- दौसा में। आभानेरी गुर्जर-प्रतिहार काल की कला का एक बेजोड़ नमूना है। आभानेरी का हर्षमाता मंदिर, चाँद बावड़ी, तक्षणकला और मूर्तिकला, शिल्प सौष्ठव का अनुपम उदाहरण है।
चाँद बावड़ी का निर्माण गुर्जर – प्रतिहार काल में निकुंभ क्षत्रिय ‘चाँद’ द्वारा करवाया गया था। 9वीं सदी में निर्मित बावड़ी। यह बावड़ी अपने तिलिस्म स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। यह विश्व की सबसे गहरी बावड़ी मानी जाती है। यह बावड़ी चारों तरफ से 35 मीटर चौड़ी है। यह बावड़ी ‘हर्षत माता मंदिर’ के सामने स्थित है।
- त्रिमुखा बावड़ी :- उदयपुर में महाराणा राजसिंह की पत्नी रामरसदे द्वारा निर्मित बावड़ी।
इसमें तीन और से सीढ़ियाँ बनी हैं और प्रत्येक दिशा में ये सीढ़ियाँ तीन खण्डों में विभक्त हैं। इसमें प्रत्येक खण्ड में 9 सीढ़ियाँ हैं और 9 सीढ़ियों के समाप्त होने पर एक चबूतरा बना है, इस चबूतरे पर स्तम्भयुक्त मण्डप है। इस बावड़ी का मुख्य शिल्पी नाडू गौड़ था।
- जोहड़े :- शेखावटी क्षेत्र में निर्मित कच्चे कुएँ। चूरू के जोहड़े बड़े प्रसिद्ध है जिसमें सेठना का जोहड़ा, पथराला जोहड़ा, पीथाणा जोहड़ा प्रसिद्ध है।
- मोराकुण्ड :- नादौती (सवाईमाधोपुर) में।
- बाटाडू का कुआँ :- बाड़मेर में रावल गुलाब सिंह द्वारा निर्मित। उपनाम :- रेगिस्तान का जलमहल।
- वीरूपुरी बावड़ी :- लगभग 300 वर्ष पूर्व वीरू नामक रानी द्वारा उदयपुर में निर्मित बावड़ी।
- एक चट्टान की बावड़ी :- सातवीं सदी में मण्डोर (जोधपुर) में एक चट्टान को काटकर निर्मित की गई अंग्रेजी के ‘L’ आकार की बावड़ी। स्थानीय भाषा में इस बावड़ी को ‘रावण की चंवरी’ के नाम से भी जाना जाता है।
चाँद बावड़ी (चौहान बावड़ी) :- जोधपुर में इस बावड़ी का निर्माण महाराजा जोधा की सोनगरी रानी चाँद कुंवरी ने करवाया था।
- जच्चा की बावड़ी :- हिण्डौन सिटी में।
- भोपन का कुआँ :- कैथून (कोटा) में।
- मांजी की बावड़ी :- आमेर में।
- पन्ना मीणा की बावड़ी :- आमेर (जयपुर) में।
- राजा रसालू की बावड़ी :- दौसा में।
- चूली बावड़ी :- सरजोली (जमवारामगढ़, जयपुर) में।
- चार घोड़ों की बावड़ी :- जोबनेर (जयपुर) में।
- नाजरजी की बावड़ी, तापी बावड़ी, जालप बावड़ी :- जोधपुर में।
- तुंवरजी का झालरा :- जोधपुर में महाराजा अभयसिंह की रानी तुंव जी द्वारा निर्मित।
- भीकाजी की बावड़ी :- अजमेर में।
- लाभूजी कटला की बावड़ी :- बीकानेर में।
- लाखोलाव तालाब :- मूण्डवा (नागौर) में स्थित।
- प्रतापबाव बावड़ी :- देवलिया (प्रतापगढ़) में।
- बुड्ढा जोहड़ झील :- श्रीगंगानगर में।
- प्रीतमपुरी झील :- रैवासा (सीकर) में।
- तलवाड़ा झील :- हनुमानगढ़ में।
- बुबानिया कुण्ड :- आभानेरी (दौसा) में।
- भाण्डारेज की बावड़ियाँ :- आभानेरी (दौसा) में।
- देवरा बावड़ी, नाथजी की बावड़ी, सुनार की बावड़ी, झालर बावड़ी :- बेगूं (चित्तौड़गढ़)
- पाताल तोड़ (लम्बी बावड़ी) :- धौलपुर में।
- दूध बावड़ी :- माउण्ट आबू (सिरोही) में।
- लाहिणी बावड़ी :- बसंतगढ़ (सिरोही) में स्थित बावड़ी, जिसका निर्माण परमारों की रानी लाहिणी ने करवाया था।
- मृगा बावड़ी :- सिराेही में।
- सरडा रानी की बावड़ी :- टोडा रायसिंह (टोंक) में स्थित कलात्मक बावड़ी।
- खारी बावड़ी व फुटी बावड़ी :- निवाई (टोंक) में।
- बड़ली तालाब :- उदयपुर में महाराणा राजसिंह द्वारा अपनी माँ जनादे की स्मृति में बनवाया गया तालाब। अन्य नाम :- जियान सागर। यहाँ देश का प्रथम मत्स्य अभयारण्य विकसित किया जा रहा है।
- डिग्गी तालाब :- अजमेर में।
- डाइला तालाब :- बाँसवाड़ा में।
- आठ तीवण का कुआँ (अलखसागर कुआं) :- बीकानेर में (लच्छीराम द्वारा निर्मित)
- माधोसागर, सेंथलसागर एवं कालखो सागर :- दौसा में।
- दमोह जल प्रपात :- धौलपुर में।
- पुंजेला झील :- डूँगरपुर में।
- निर्माता :- महारावल पुंजराज।
- जीर्णोद्वार :- महारावल विजयसिंह।
- चूंडावाड़ा की झील, पटेला झील :- डूँगरपुर में।
- कायलाना झील :- जोधपुर में जोधपुर प्रशासक सर प्रतापसिंह द्वारा निर्मित झील।
- गैब सागर तालाब :- डूँगरपुर में महारावल गोपालसिंह द्वारा निर्मित।
- डगसागर तालाब :- झालावाड़ में।
- प्रार्थना का जाेरा (जोहड़ा) :- चूरू में।
- नवलखाँ तालाब :- बारां।
- नवल सागर :- बूँदी में। (राजा उम्मेदसिंह द्वारा निर्मित)।
- मन्दाकिनी कुण्ड :- अचलदेव (सिरोही) में।
- मामादेव कुण्ड :- कुम्भलगढ़ (राजसमन्द) में।
- पन्नालाल शाह का तालाब :- खेतड़ी (झुंझुनूं) में।
- तालाबशाही :- धौलपुर में स्थित झील।
- मूल सागर (अमर सागर / गजरुप सागर) :- जैसलमेर में। महारावल गजसिंह द्वारा निर्मित।
राणीसर तालाब :- जाेधपुर में 1459 ई. में राव जोधा की पटरानी जसमादे द्वारा निर्मित। राणीसर तालाब में तीन बेरियाँ हैं – शंकर बेरी, जिया बेरी एवं पाट बेरी।
उद्यान
- हरसुख विकास उद्यान :- करौली में महाराव छत्रसाल द्वारा निर्मित। यह करौली में सफेद चन्दन के वृक्षों का महकने वाला उद्यान है।
- राईका बाग :- जोधपुर में महाराजा जसवंत सिंह की पत्नी जसवंत दे ने 1646 ई. में इसका निर्माण करवाया।
- नीमड़ी माता का बाग :- बाड़मेर में।
- सहेलियों की बाड़ी :- उदयपुर में राणा संग्रामसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित। पुनर्निर्माण :- महाराणा फतेहसिंह द्वारा।
- शिमला बाग (कम्पनी बाग) :- अलवर में महाराजा श्योदान सिंह द्वारा 1868 में निर्मित।
- कमल का फूल बाग :- धौलपुर में। बाबर द्वारा अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में इस बाग का उल्लेख किया गया है।
- जयनिवास उद्यान :- जयपुर में महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित राजप्रासाद।
- दौलत बाग :- अजमेर में आनासागर झील के किनारे मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा निर्मित बाग। इसे सुभाष उद्यान के नाम से जाना जाता है।