राजस्थान का संगीत | राजस्थान लोक संगीत
शास्त्रीय संगीत
- राजस्थान में मध्य में युग में वीर रसात्मक सिंधु राग का गायन लोकप्रिय था।
- राजस्थान में शृंगार रस राग माँड आज भी प्रचलित है जैसे मारवाड़, मेवाड़, जयपुर और जैसलमेर की माँड आदि।
- देशी व विदेशी आक्रमणों के समय जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, मेवाड़, टोंक, अलवर, भरतपुर आदि रियासतों के द्वारा संगीत को आश्रय प्रदान किया गया।
- राजस्थान के संगीत प्रिय शासकों में अलवर के महाराजा शिवदान सिंह, टोंक के नवाब इब्राहिम खां आदि प्रमुख थे।
- अकबर के शासनकाल में विकसित हुई अष्टछाप संगीत परम्परा के कारण राजसथान में शास्त्रीय संगीत की ध्रुवपद-धमार, पखावज तथा वीणावादन के शैलियों का विकास हुआ जो “हवेली संगीत‘ के रूप में विद्यमान है।
- वर्तमान राजस्थान के नाथद्वारा, जयपुर, कोटा, कांकरोली, भरतपुर, जोधपुर के मंदिरों में हवेली संगीत विद्यमान है।
राजस्थान के प्रमुख संगीत घराने
“विक्रमी संवत की पांचवी शताब्दी में ईरान के बादशाह बहराम गोर ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया, और यहां से बाहर हजार गायकों कों नौकरी के लिए ले गया। गायकों की यह लूट राजस्थान और गुजरात से ही सम्भव है, जहां से इतने संगीतज्ञ ले जाये जा सकते थे।” पंडित गौरीशंकर हीराचन्द ओझा (हिस्ट्री ऑफ पर्सिया)
घराना – भारत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा को कुछ विशेष परिवारों द्वारा संरक्षित किया जाता रहा है। वर्तमान में यह परम्पराएं अपनी विशेषताओं के कारण घरानों के रूप में जानी जाती है।
ध्रुवपद-धमार का डागर घराना
- राजस्थान में ध्रुवपद गायकी का गायन मानसिंह तोमर के समय से तथा अकबर के समय की इसकी चार वाणियों में से खण्डारी और नोहारी वाणियों का विकास राजस्थान से माना जाता है।
- आधुनिक समय के ध्रुवपद-धमार के डागर घराने का विकास बहरामखां (जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह के) के द्वारा किया गया।
- ध्रुवपद-धमार शैली का राजस्थान के उणियारा ठिकाने में भी विकास हुआ था।
ख्याल शैली
- ध्रुवपद गायन शैली की तरह राजस्थान में ख्याल शैली के भी विभिन्न घराने ग्वालियर, दिल्ली, आगरा, जयपुर, पटियाला, रंगीला, अलादिया खां व कव्वाल बच्चों का घराना आदि प्रमुख रूप से विकसित हुए।
- राजस्थान में जयपुर घराने के प्रवर्तक मनरंग माने जाते है।
- इस घराने के प्रसिद्ध गायक मुहम्मद अलीखां कोठी वाले के नाम से प्रसिद्ध थे। ये जयपुर महाराजा राम सिंह के दरबारी संगीतज्ञ थे।
- ख्याल शैली के प्रमुख गायकों में भूर्जीखां, मंजीखां, गुलुभाई जसदान, कुर्डीकर, मोंगूबाई, केसरबाई केरकर आदि प्रमुख है।
मेवाती घराना
- मेवाती घराना ख्याल गायकी का प्रमुख घराना है, जिसका प्रारम्भ राजस्थान से ही हुआ है। इसके आरम्भकर्ता घग्घे नजीरखां थे।
- घग्घे नजीरखां जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह के दरबारी गायक थे।
पटीयाला घराना
- इसे जयपुर घराने का उप घराना माना जाता है। इसके संस्थापक- अलीबख्श और फतहअली को माना जाता है।
- इन दोनो ने राजस्थान की प्रमुख गायिका गोकीबाई से संगीत शिक्षा ग्रहण की तथा पटियाला दरबार में जाकर अपनी स्वतंत्र गायकी पटियाला घराने के रूप में विकसित की।
सेनिया घराना
- यह राजस्थान में सितार का प्रसिद्ध घराना है।
- इस घराने के प्रमुख गायक अलवर व जयपुर राज्यों में रहे।
- प्रमुख गायक- सुखसेन, रहीमसेन, हिम्मतसेन, लालसेन आदि।
- जयपुर के बीनकर घराने के रजब अलीखां, सांवलखां, मुर्शरफ खां आदि प्रमुख वाद्यक हुए।
राजस्थान के प्रमुख संगीत ग्रंथ
संगीत राज
- इसकी रचना मेवाड़ के महाराणा कुम्भा द्वारा 15 वीं सदीं में की गई।
- ये पाँच कोषो- पाठ्य, गीत, वाद्य, नृत्य और रस रत्नकोष आदि में विभक्त है। इसे ‘उल्लास’ कहा गया है।
- उल्लास को पुन: ‘परीक्षण’ में बांटा गया है।
- इसमें ताल, राग, वाद्य, नृत्य, रस, स्वर आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है।
राग मंजरी
- इसकी रचना पुण्डरीक विठ्ठल ने की थी।
- ये जयपुर महाराजा मानसिंह के दरबारी थे।
राग माला
- इस ग्रंथ की रचना भी पुण्डरीक विठ्ठल ने की थी।
- इसमे राग- रागिनी व शुद्ध स्वर-सप्तक का उल्लेख किया गया है।
शृंगार हार
- रणथम्भौर के शासक हम्मीर देव ने इस ग्रंथ की रचना की थी।
- इस ग्रंथ में सर्वप्रथम मेल राग पद्वति का उल्लेख मिलता है।
पण्डित भावभट्ट के संगीत ग्रंथ
- ये बीकानेर के महाराजा अनूपसिंह के दरबारी थे।
- इनके द्वारा रचित ग्रंथों में ‘अनूप संगीत रत्नाकर’, ‘अनूप विलास’, ‘अनूप राग सागर’, ‘अनूप राग माला’, ‘भाव मंजरी’ आदि प्रमुख है।
राधागोविन्द संगीत सागर
- इसकी रचना जयपुर के महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने करवाई।
- इस ग्रंथ में बिलावल को शुद्ध स्वर सप्तक कहा गया है।
राग-रत्नाकर
- जयपुर के उणीयारा ठिकाने के राव भीमसिंह के दरबार में रहकर राधा कृष्ण ने इस ग्रंथ की रचना की।
राग कल्पद्रुम
- श्री कृष्णानन्द व्यास (मेवाड़) ने इस ग्रंथ की रचना की थी।
- यह ग्रंथ संगीत के साथ-साथ हिन्दी साहित्य के इतिहास के निर्माण के लिये भी उपयोगी माना जाता है।
रागमाला ग्रंथ
- राजस्थान में रचित ये संगीत विशेष ग्रंथ है जिनमें रागों के गायन-वादन से निर्मित भावों को कवियों द्वारा शब्दों व चित्रकारों द्वारा चित्रों के रूप में वर्णित किया गया है।
- रागमालाओं में पद्यबद्ध व सचित्र पद्यबद्ध रागमालाएँ प्रमुख है।