बाड़मेर के मंदिर | Barmer Mandir GK

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किराडू

बाड़मेर में हाथमा गाँव के पास किराडू में ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के पाँच मंदिर विद्यमान हैं, जिसमें चार मंदिर भगवान शिव को एवं एक मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यहाँ के मंदिरों में सबसे सुन्दर एवं अलंकृत मंदिर ‘सोमेश्वर मंदिर’ है।

इस मंदिर में अलंकृत मूर्तियाँ सागर मंथन, रामायण एवं महाभारत से संबंधित दृश्य एवं श्रीकृष्ण की लीलाओं का जीवंत बखान करती हैं। सोमेश्वर मंदिर नागर शैली के मंदिर की परम्परा में शिव मंदिरों की श्रेणी में महामारू गुर्जर शैली की एक उच्च कोटि की बानगी है। यहाँ मिथुन मूर्तियों की भव्यता के कारण इसे ‘राजस्थान का खजुराहो’ भी कहा जाता है।

विरात्रा माता का मंदिर

चौहटन से लगभग 10 किमी. दूर लाख एवं मुद्गल के वृक्षों के बीच रमणीय पहाड़ों की एक घाटी में स्थित भोपा जनजाति की कुलदेवी का मंदिर। यह 400 वर्ष पुराना बताया गया है। विरात्रा माता का मंदिर तो साधारण है परन्तु प्रतिमा सुंदर एवं चमत्कारी है।

जगदम्बे मां की एक नहीं अनेक प्रतिमाएँ मंदिर में विराजमान है। कांच के एक समचौरस बने लकड़ी की छोटी-सी अलमारी में चाँदी की बनी प्रतिमा पर सोने का लेप अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक लगता है। यहाँ चैत्र, भाद्रपद व माघ माह में शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को मेले लगते हैं।

मल्लीनाथ का मंदिर

यह बालोतरा से लगभग 10 किमी. दूर लूनी की तलहटी में स्थित है। यहाँ राव मल्लीनाथ ने चिरसमाधि ली थी।

समाधि स्थल पर भक्तजनों द्वारा निर्मित मल्लीनाथ का मंदिर और उनकी चरण पादुकाएँ दर्शनीय है। यहाँ चैत्र बदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी तक पशुमेला लगता है जिसे मल्लीनाथ का मेला या तिलवाड़ा पशु मेला के नाम से जाना जाता है।

वीर योद्धा रावल मल्लीनाथ की स्मृति में आयोजित इस पशु मेले में थारपारकर, कांकरेज आदि नस्ल के बैलों की अधिक बिक्री होती है।

नागणेची माता का मंदिर

पचपदरा के समीप नागाणा ग्राम में स्थित इस मंदिर में विद्यमान लकड़ी की प्राचीन मूर्ति दर्शनीय है।

पार्श्वनाथ जैन मंदिर

बाड़मेर शहर में स्थित श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर दर्शनीय है। 12वीं सदी में बने इस मंदिर में शिल्पकला, कांच व चित्रकला के आकार व रूप दर्शनीय है।

नाकोड़ा

बालोतरा से 9 किमी. दूर भाकरियाँ (झाकरियाँ) नामक पहाड़ी पर स्थित जैन मतावलम्बियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल। यह मेवा नगर/वीरानीपुर के नाम से भी जाना जाता है।

इस स्थल पर भैरव जी (1511 में आचार्य कीर्ति रत्न सूरि द्वारा स्थापित) तथा पार्श्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यहाँ प्रतिवर्ष तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जन्मोत्सव के दिन पौष कृष्णा दशमी को विशाल मेला भरता है। यहाँ आदिनाथ व शांतिनाथ मंदिर भी दर्शनीय है।

देवका

शिव तहसील से लगभग 12 किमी. दूर 12वीं – 13वीं सदी के शिलालेखों से युक्त इस स्थान पर एक वैष्णव मंदिर है।

कपालेश्वर महादेव का मंदिर

बाड़मेर जिले के चौहटन की विशाल पहाड़ी के बीच स्थित कपालेश्वर महादेव का मंदिर 13वीं शताब्दी में निर्मित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास का अंतिम समय छिपकर यहीं बिताया था। यहाँ से 2 किमी. दूर बिशन पगलिया नामक पवित्र स्थान है जहाँ भगवान विष्णु के चरण चिह्न पूजे जाते हैं।

यहीं स्थित पहाड़ों पर 14वीं सदी के एक दुर्ग के अवशेष मौजूद है जिसे हापाकोट कहते हैं। इसका निर्माण जालोर के सोनगरा राजा कान्हड़देव के भाई सालमसिंह के पुत्रा हापा ने करवाया।

गरीबनाथ का मंदिर

इसकी स्थापना वि.सं. 900 कोमनाथ ने की। इसका पुराना नाम शिवपुरी या शिवबाड़ी होना पाया जाता है।

हल्देश्वर महादेव मंदिर

पीपलूद गाँव (बाड़मेर) के समीप छप्पन की पहाड़ियों में स्थित मंदिर। पीपलूद को राजस्थान का लघु माउंट आबू कहा जाता है।

ब्रह्माजी का मंदिर

आसोतरा (बाड़मेर) में स्थित मंदिर। इस मंदिर में 1984 ई. में खेतारामजी महाराज द्वारा ब्रह्माजी की मूर्ति स्थापित करवाई गई। यह मंदिर पुष्कर के बाद राजस्थान में दूसरा ब्रह्माजी का मंदिर है।

आलमजी का मंदिर

धोरीमन्ना (बाड़मेर) में स्थित मंदिर जहाँ प्रतिवर्ष माघ कृष्णा द्वितीया एवं भादवा शुक्ला द्वितीया को विशाल मेला लगता है। यह स्थल ‘घोड़ों के तीर्थ स्थल’ के रूप में भी जाना जाता है।

रणछोड़राय जी का खेड़ मंदिर

प्रमुख वैष्णव तीर्थ का पवित्र धाम श्री रणछोड़राय जी के मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1230 में हुआ था। मजबूत परकोटे से घिरे इस मंदिर में प्रतिवर्ष राधाष्टमी, माघ पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा एवं श्रावण पूर्णिमा को भव्य मेलों का आयोजन होता हैं।

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