दरगाह एवं मस्जिद
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह
- अजमेर में।
- 1135 ई. में संजरी (फारस) में जन्मे ख्वाजा साहब की दरगाह कौमी एकता का सदाबहार चरचश्मा (केन्द्र) है।
- हजरत शेख उस्मान हारुनी के शिष्य ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के इंतकाल के 231 वर्ष बाद सन् 1464 ई. में मांडू (मालवा) सुल्तान ग्यासुद्दीन मेहमूद खिलजी के द्वारा पक्की मजार एवं उस पर गुम्बद बनवाया गया।
- मुख्य प्रवेश द्वार (निजाम द्वार) पर बुलन्द दरवाजा 1469 ई. से 1509 ई. के मध्य मांडू सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी द्वारा बनवाया गया। बुलन्द दरवाजा दरगाह की सबसे पुरानी इमारत है।
- अकबर पुत्र सलीम (जहाँगीर) के जन्म के बाद फरवरी 1570 ई. को आगरा से पैदल चलकर ख्वाजा की जियारत करने आये एवं दरगाह में 1570 ई. में अकबरी मस्जिद का निर्माण करवाया।
तबर्रुक :- दरगाह में देग में पकाकर मुफ्त में बाँटी जाने वाली सामग्री।
निजाम द्वार :- दरगाह का मुख्य प्रवेश द्वार, जिसका निर्माण हैदराबाद निजाम मीर उस्मान अली खान द्वारा करवाया गया। इसी द्वार पर अकबर द्वारा भेंट किये गये दो नगाड़े रखे हुए हैं।
देग :- यहाँ दो देग स्थित हैं। बड़ी देग बादशाह अकबर द्वारा तैयार करवाकर 1567 ई. में भेंट की गई थी। छोटी देग बादशाह जहाँगीर द्वारा तैयार करवाकर 1613 ई. में भेंट की गई थी।
- दरगाह में स्थित महफिलखाने का निर्माण सन् 1888-91 की अवधि में बशीरुद्दौला सर असमान जाह द्वारा करवाया गया था।
- शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की मुख्य मजार का निर्माण 1537 ई. में मांडू सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था।
बेगमी दालान :- मजार के भवन के मुख्य द्वार के बाहर स्थित। इसका निर्माण शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा ने करवाया था। मुख्य द्वार के चारों ओर चाँदी का कटहरा जयपुर संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा बनवाया गया था।
दरगाह में शाहजहानी मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ द्वारा 1638 ई. में करवाया गया था। अन्य नाम :-जुमा मस्जिद। जुमा मस्जिद के निर्माण में 2.40 लाख रुपये का खर्चा आया।
ख्वाजा साहब के पिता का नाम ‘हजरत ख्वाजा सैय्यद ग्यासुद्दीन’ व माता का नाम ‘बीबी साहेनूर’ था।
दरगाह के बुलन्द दरवाजे पर उर्स से एक सप्ताह पूर्व भीलवाड़ा के गौरी परिवार द्वारा झंडा चढ़ाने की रस्म बड़ी धूमधाम से पूरी की जाती है।
- मक्का के बाद यह दरगाह मुस्लिम सम्प्रदाय का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।
- इसी दरगाह में हिजरी संवत् के रज्जब माह की 1 से 6 तारीख तक उर्स का आयोजन होता है।
- अजमेर :- भारत का मक्का ( दरगाह के कारण )।
- जायरीन :- उर्स में आने वाले लोग।
- ख्वाजा साहब के बचपन का नाम ‘खुरासान’ था।
- ख्वाजा साहब पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में 1191 ई. में मोहम्मद गौरी के साथ भारत आये व अजमेर को ही अपना कार्यस्थल बनाया।
- गौरी ने ख्वाजा साहब को ‘सुल्तान-ए-हिन्द’ की उपाधि प्रदान की।
- होली बायोग्राफी :- ख्वाजा साहब की जीवनी। लेखक :- मिर्जा वहीउद्दीन बेग।
- ख्वाजा साहब ब्रज भाषा में साहित्य रचना किया करते थे।
- बीबी हाफिज जमाल (ख्वाजा साहब की पुत्री) एवं चिमनी बेगम (शाहजहाँ की बेटी) तथा भिश्ती सुल्तान (हुमायूँ को गंगा में डुबने से बचाने वाले) की कब्र भी दरगाह क्षेत्र में ही है।
शेख अलाउद्दीन खान का मकबरा
16 खम्भों पर टिका आयताकार भवन। इसमें तीन गुम्बद हैं। इसे सोला थम्बा के नाम से भी जाना जाता है। 1659 ई. में निर्मित इस मकबरे में 5 मजार हैं।
हजरत शक्कर पीर बाबा की दरगाह
- नरहड़ गाँव (झुझुनूं) में।
- नरहड़ में प्रतिवर्ष कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) को उर्स का आयोजन होता है।
- इस दरगाह में तीन दरवाजे (बुलंद दरवाजा, बसेती दरवाजा, बगली दरवाजा) है।
- इस दरगाह को साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल माना जाता है।
- नरहड़ पीर बाबा की दरगाह राजस्थान की सबसे बड़ी दरगाह है।
- हजरत शक्कर पीर बाबा को ‘बागड़ का धणी’ व ‘हाजी बाबा’ भी कहा जाता है।
- प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती इन्हीं के शिष्य थे।
- इस दरगाह में प्रवेश करने के लिए विशाल व भव्य बुलन्द दरवाजे से गुजरना होता है। दरगाह शरीफ में आयताकार चौक में मानसिक विकृति वाले लोगों के शरीर पर पवित्र पट्टी रगड़ी जाती है। कहते हैं कि ऐसा करने पर उन्हें विक्षिप्तावस्था से मुक्ति मिल जाती है।
शेख हमीमुद्दीन नागौरी की दरगाह
- नागौर में।
- ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य।
- 1192 ई. में मुहम्मद गौरी के साथ भारत आये।
- ख्वाजा साहब ने नागौरी को ‘सुल्तान-ए-तारिकीन (संन्यासियों का सुल्तान)’ की उपाधि से नवाजा था।
- 1274 ई. में इनका इंतकाल हुआ।
- इनकी मजार शफीक गिनाणी नामक तालाब के किनारे बनी हुई है। राज्य में अजमेर के बाद यहाँ दूसरा सबसे बड़ा उर्स का आयोजन होता है।
इस मस्जिद का निर्माण फैजुल्ला खाँ के पुत्र बहराम खाँ की देखरेख में बादशाह मोहम्मद अकबर शाह द्वितीय के समय हुआ।
सैय्यद फखरुद्दीन की दरगाह
- गलियाकोट (डूंगरपुर) में।
- परमार राजाओं से संबंधित एवं माही नदी तट पर स्थित गलियाकोट दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय के सैय्यद फखरुद्दीन की मस्जिद के लिए प्रसिद्ध है।
- गलियाकोट दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का प्रधान तीर्थस्थल है। इसे मजार-ए-फखरी भी कहा जाता है।
हजरत सैय्यद ख्वाजा फखरुद्दीन की दरगाह
- सरवाड़ (अजमेर) में।
- ख्वाजा फखरुद्दीन ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के बड़े पुत्र थे।
- यहाँ वर्षभर हजारों जायरीनों का तांता लगा रहता है।
- ध्यातव्य है कि कालू मीर की मजार भी सरवाड़ (अजमेर) में ही स्थित है।
हजरत दीवानशाह की दरगाह
- कपासन (चित्तौड़) में।
- प्रख्यात सूफी संत की दरगाह के बुलंद दरवाजे की गगनचुंबी मीनारें दूर से ही दिखाई देती हैं।
- बाबा दीवानशाह की यह दरगाह कौमी एकता की मिशाल कायम करती है।
अब्दुल्ला खाँ का मकबरा
- अजमेर में।
- 1710 ई. में सफेद संगमरमर से निर्मित।
- इस मकबरे के सामने अब्दुल्ला खाँ की बीबी का मकबरा निर्मित है, जो उत्कृष्ट स्थापत्य का नमूना है।
अढ़ाई दिन का झौंपड़ा
- अजमेर में।
- यह हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रारम्भ में यहाँ चौहान शासक बीसलदेव ने एक संस्कृत महाविद्यालय 1153 ई. में बनवाया था। इस संस्कृत महाविद्यालय का नाम सरस्वती कंठाभरण महाविद्यालय था।
- 1206-1210 में इस महाविद्यालय को कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा तुड़वाकर मस्जिद में तब्दील कर दिया गया था।
- यहाँ पर प्रतिवर्ष मुस्लिम फकीर पंजाब शाह का अढ़ाई दिन का उर्स लगने के कारण इसे अढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं।
संत अब्दुल्ला पीर का मकबरा
- भगवानपुरा (बाँसवाड़ा)।
- यह राजस्थान में दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का दूसरा महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
जामा मस्जिद
- भरतपुर में। महाराजा बलवंत सिंह द्वारा निर्मित।
- इस मस्जिद की इमारत का निर्माण दिल्ली की जामा मस्जिद के नक्शे पर आधारित है।
जामा मस्जिद
शाहबाद (बारां) में। इस मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेब के समय मुगल फौजदार मकबूल द्वारा करवाया गया था। ध्यातव्य है कि शाहबाद को मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बसाया था।
- मीरा साहब की दरगाह :- बूँदी में। (जैतसागर के निकट पहाड़ी पर)
- मीरान साहब की दरगाह :- अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में। संत मीरान साहब तारागढ़ के प्रथम गवर्नर थे। मूल नाम :- मीर सैय्यद हुसैन खिंगसवार इन्होंने 1202 में दुर्ग की रक्षार्थ हेतु प्राणों की आहुति दे दी।
दुर्ग में हजरत मीरान साहब के दरगाह परिसर में उनके घोड़े की मजार है जो सम्पूर्ण भारत में केवल अजमेर में ही है। कहा जाता है कि घोड़े की मजार पर चने की दाल चढ़ाने वालों की मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है।
मलिक शाह की दरगाह
- जालौर दुर्ग में।
- इस दरगाह में मलिक शाह की मजार पर नाथ पंथ के साधु भी उर्स के अवसर पर चादर चढ़ाते हैं।
- यह हिन्दू व मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए आस्था व श्रद्धा का केन्द्र है।
तोपखाना मस्जिद
- जालौर दुर्ग में।
- यह प्रारम्भ में प्रसिद्ध परमार वंशी शासक राजा भोज द्वारा बनवाई गई ‘सरस्वती कंठाभरण’ शाला थी। 1311-12 में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर विजय के बाद इस शाला को तुड़वाकर मस्जिद के रूप में बदल दिया। कालान्तर में इस मस्जिद का उपयोग तोपखाना के रूप में असला व बारुद रखने के लिए किया जाने लगा और इस प्रकार यह मस्जिद तोपखाना मस्जिद कहलाने लगी। निर्माण के आधार पर यह राज्य की सबसे प्राचीन मस्जिद है।
काकाजी की दरगाह
- प्रतापगढ़ जिले में स्थित।
- उपनाम :- कांठल का ताजमहल।
प्रतापगढ़ में स्थित अन्य दरगाह व मस्जिद
- सैय्यद मूसा शहीद दरगाह
- अल्लाह रक्खीबाई की मस्जिद
- कुमेदान शाह बाबा की दरगाह
- मदार चिल्लाह दरगाह
लैला-मजनूं की मजार :- अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर) में।
कबीरशाह की दरगाह :- करौली में। उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना।
इस दरगाह का निर्माण स्वयं कबीरशाह द्वारा अपने जीवनकाल में ही करा दिया गया था। सादिक अली ने अपने गुरु कबीरशाह को इसी में दफनाया था।
सूफी संत शेख फरीद को ‘थड़ी वाले बाबा’ कहा जाता था। राती थेड़ी नामक स्थल को वर्तमान में करणपुर के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान की अन्य प्रसिद्ध दरगाहें व मस्जिदें
- चलफिरशाह की दरगाह :- चित्तौड़ में।
- हजरत शेख अब्दुल अजीज मक्की की दरगाह :- केशोरायपाटन में।
- संत मीठेशाह की दरगाह :- गांगरोण दुर्ग में।
- पीर हाजी निजामुद्दीन की दरगाह :- फतेहपुर (सीकर) में।
- गुलाब खाँ का मकबरा :- जोधपुर में।
- नौंगजा पीर की मजार :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में।
- गैबी पीर की दरगाह :- जहाजपुर (भीलवाड़ा) में।
- जार जरीना मकबरा :- धौलपुर में।
- बाबा गफूर की मजार :- जगतमन्दिर (उदयपुर) में।
- कमरुद्दीन शाह की दरगाह :- झुंझुनूं में।
- हसामुद्दीन चिश्ती की दरगाह :- सांभर में।
- हसनपीर की दरगाह :- आंधी (जयपुर) में।
- पीर सदरुद्दीन की दरगाह :- रणथम्भौर दुर्ग में। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित।
- पीर मस्तान की दरगाह :- सोजत (पाली) में।
- हजरत शेखशाह / जमाल बाबा की दरगाह :- दौसा में।
- तनापीर की दरगाह :- मण्डौर (जोधपुर) में।
- सैय्यद पीर दुलेशाह की मजार :- केरला (पाली) में
- नलियासर मस्जिद :- सांभर में।
- अकबरी मस्जिद :- आमेर (जयपुर) में। भारमल द्वारा निर्मित।
- उषा मस्जिद :- बयाना (जयपुर) में।
- फतेहगज गुंबद मस्जिद :- अलवर में।
- ईदगाह मस्जिद :- जयपुर में।
- पठान गुलाम कलन्दर की मस्जिद :- मण्डौर (जोधपुर) में।
- इकमीनार मस्जिद :- जोधपुर में।
- अलाउद्दीन मस्जिद :- जालौर में।
- लाल मस्जिद :- अमरसर (जयपुर) में।
- जनाना मस्जिद :- अमरसर (जयपुर) में।
- सैय्यद बादशाह की दरगाह :- शिवगंज (सिरोही) में।
- अलाउद्दीन आलमशाह का मकबरा :- तिजारा (अलवर) में।
- गजरा का मकबरा :- धौलपुर में। राजा भगवंतसिंह द्वारा निर्मित।
- मौनी बाबा की मजार :- धौलपुर में।
- भट्टा पीर का उर्स गजनेर (बीकानेर) में भादवा शुक्ल पक्ष की 8-10 तक भरता है।
- नवाब रुहेल खाँ का मकबरा झुंझुनूं में है।
- नेहरु खाँ की मीनार कोटा जिले में है।
- बड़े पीर की दरगाह नागौर में है। यह सूफियों की कादरिया शाखा के जन्मदाता सैय्यद सैफुदीन अब्दुल वहाब की दरगाह है।
- मलंग सरकार (हजरत गुलाम रसूल साहब रहमतुल्ला अलैह) की मजार बीकानेर में है। मलंग सरकार को ‘तोप वाले बाबा’ भी कहा जाता है।
- गमतागाजी मीनार :- जोधपुर में है।