जन्म संबंधी रीति-रिवाज
गर्भाधान
नव विवाहित स्त्री के गर्भवती होने की जानकारी मिलते ही उत्सवों का आयोजन होता है। इस अवसर पर महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाये जाते हैं।
पंचमासी
यह एक प्रकार से पुंसवन संस्कार है जिसके अन्तर्गत जब गर्भवती महिला का 5 माह का गर्भधारण का समय पूरा हो जाता था, तब गर्भ की सुरक्षा हेतु देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी।
आठवां पूजन
गर्भवती स्त्री के गर्भ को जब सात मास पूर्ण हो जाते हैं तो आठवें मास में आठवां पूजन महोत्सव मनाया जाता है। इस अवसर पर देवताओं का पूजन करके उनसे मनौतियां मांगी जाती है। इस अवसर पर प्रीतिभोज का भी आयोजन किया जाता है।
आगरणी
गर्भ धारण के आठ माह पश्चात् इसका आयोजन किया जाता था। आगरणी पर गर्भवती महिला की माता महिला के लिए घाट (ओढ़नी) व मिठाई (विशेषकर घेवर) भेजती थी।
जन्म
यदि लड़के का जन्म होता है तो घर की बड़ी औरत कांसे की थाली बजाती है, परन्तु लड़की के जन्म पर सूप बजाया जाता है। जन्म के बाद परिवार की वृद्ध महिला बच्चे को जन्म-घुट्टी पिलाती है।
जामणा
पुत्र जन्म पर नाई बालक के पगल्ये (सफेद वस्त्र पर हल्दी से अंकित पद चिन्ह) लेकर उसके ननिहाल जाता है। तब उसके नाना या मामा उपहार स्वरूप वस्त्राभूषण, मिठाई लेकर आते हैं, जिसे ‘जामणा‘ कहा जाता है।
सुआ
इस संस्कार के अन्तर्गत बच्चे के जन्म के बाद सारे घर की शुद्धि की जाती थी। जब तक घर की शुद्धि नहीं हो जाती तब तक बाहर का कोई भी आदमी घर का पानी नहीं पीता था। जच्चा के घर को सुआ कहते हैं।
न्हावण / न्हाण
प्रसूता का प्रथम स्नान व उस दिन का संस्कार।
सतवाड़ौ
प्रसव के सातवें दिन का प्रसूता का स्नान या संस्कार।
आख्या
बच्चे के जन्म के आठवें दिन बहिनें आख्या करती हैं तथा सांखियाँ (मांगलिक चिह्न) 卐 भेंट करती हैं।
दसोटण
जोधपुर राजघराने में पुत्र जन्म के बाद 10वें दिन अशौच शुद्धि के अवसर पर किया जाने वाला समारोह।
सुहावड़
मारवाड़ की परम्परा अनुसार प्रसूता को सौंठ, अजवाईन, घी-खांड़ के मिश्रण के लड्डू बना कर खिलाये जाते हैं, इसे सुहावड़ कहा जाता है।
पनघट पूजन
बच्चे के जन्म के कुछ दिनों उपरान्त कुंआ पूजन की रस्म मनाई जाती है। इस प्रथा को ‘कुआँ पूजन’ या ‘जलवा पूजन‘ भी कहते हैं। इस अवसर पर घर, परिवार और मौहल्ले की स्त्रियां बच्चे की मां को लेकर देवी-देवताओं के गीत गाती हुई कुएँ पर जाती है। कुएँ पर जल पूजा भी की जाती है।
ढूँढ
बच्चे के जन्म के बाद प्रथम होली पर ननिहाल पक्ष की ओर से उपहार, कपड़े, मिठाई व फूल भेजे जाते हैं।
गोद लेना
जब किसी दम्पत्ति के कोई बच्चा नहीं होता है तो वह अपने परिवार से या अपने सम्बन्धी के बच्चे को अपना लेता है। इसे गोद लेना कहते हैं। इस रस्म का मुख्य उद्देश्य वंश को चलाना होता है। राजस्थानी परम्परा के अनुसार गोद लिये हुये बच्चे को स्वयं के बच्चे के बराबर हक मिलता है।