10 नस्ले उपलब्ध हैं- नाली, मगरा, पूगल, चोखला, जैसलमेरी, मारवाड़ी, सोनाड़ी, देशी या खेरी, मालपुरी तथा बागड़ी भारवाठी ‘नाल’ । सर्वाधिक – बाड़मेर, जैसलमेर। न्यूनतम- बांसवाड़ा।
नाली
- गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू जिलों में। ऊन- मध्यम श्रेणी की सबसे लम्बी ऊन (12-14 cm) अधिक ऊन के लिए प्रसिद्ध। गलीचे के लिए प्रयोग की जाती है।
पूगल
- बीकानेर, जैसलमेर व नागौर जिले में। मध्यम मोटी ऊन गलीचे के लिए प्रयुक्त होती है।
मगरा
- इसे चकरी व बीकानेरी चौकला भी कहते हैं। जिले- बीकानेर, नागौर, चूरू। ऊन- मध्यम मोटी।
जैसलमेरी
- इसकी नाक को रोमन नाक कहते हैं। प्रति भेड़ सर्वाधिक ऊन यह देती है। 3-4 kg/भेड़। इनका चेहरा गहरा भूरा होता है।
मारवाड़ी
- जोधपुर संभाग में पाई जाती है। सर्वाधिक संख्या में यही भेड़ पाई जाती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता सर्वाधिक अतः लम्बी दूरी तक चल सकती है।
- घुमक्कड़ रेवड़ों में होती है। राजस्थान में सर्वाधिक ऊन इसी भेड़ से प्राप्त होती है।
चोकला
- इसे छापर भी कहते हैं। शेखावाटी क्षेत्र में मिलती है। इस नस्ल को भारतीय मेरिनो कहा जाता है। झुंझुनू, सीकर, बीकानेर, चुरु व जयपुर।
- सर्वोत्तम ऊन यही होती है क्योंकि यह मुलायम है।
बागड़ी
- अलवर, भरतपुर। मुँह काला व शेष शरीर सफेद होता है। इसका रेशा सबसे छोटा होता है।
देशी/खेरी
- पाली, अजमेर, नागौर।
मालपुरी
- टोंक, दौसा, जयपुर, सवाई माधोपुर बूंदी, भीलवाड़ा में। इसे माँस के लिए काम लेते हैं। ऊन छोटी होती है। गलीचों के लिए उपयुक्त ‘देशी नाल’
सोनाड़ी (चनोथर)
- उदयपुर, कोटा संभाग, डूंगरपुर, चितौड़, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा। कान व पूंछ लम्बे। कान चरते समय जमीन को छूते हैं। ऊन साधारण।
- विदेशी नस्लें : रूसी मेरिनो (रूस), डोसेंट (डेनमार्ग), रेम्बुले (फ्रांस)।