राजस्थान-विशेष क्षेत्रीय कार्यक्रम
राजस्थान में पंचवर्षीय योजनाओं के विभिन्न कार्यक्रमों का लाभ भी उन लोगों को अधिक मिला जिनके पास स्वयं की भूमि थी इसलिए समाज के विशिष्ट वर्गों व विशिष्ट क्षेत्रों की उपेक्षा हुई। अत: इन विशिष्ट क्षेत्रों के विशिष्ट वर्गों को ऊँचा उठाने के लिए निम्नलिखित कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है।
मेवात क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (MRDP)
यह कार्यक्रम 1987-88 से राज्य के मेव बाहुल्य जिलों – अलवर जिले की 8 पंचायत समितियों (लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, तिजारा, मुण्डावर, किशनगढ़ बास, कठूमर, उमेरण एवं कोटकासिम) तथा भरतपुर जिले की चार पंचायत समितियों (नगर, डीग, कामां व पहाड़ी) में क्रियान्वित किया जा रहा है।
इस योजना में मिनीकट का वितरण, उद्यान का विकास, दवाईयों आदि के वितरण के कार्य को किया जा रहा है। शत-प्रतिशत (100%) राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित।
सीमावर्ती क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (BADP)
राज्य के 4 सीमावर्ती जिलों के 16 विकास खंडों में संसाधन विकसित कर सुरक्षा व्यवस्था को कारगर बनाने एवं सीमा क्षेत्र के दुर्गम तथा दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से शत-प्रतिशत (100%) केन्द्र प्रवर्तित कार्यक्रम 1986-87 में शुरू किया गया।
डांग क्षेत्र विकास कार्यक्रम
प्रारम्भ :- 1994-95 (2005-06 में पुन: प्रारम्भ)शत-प्रतिशत (100%) राज्य वित्त पोषित कार्यक्रम।
यह कार्यक्रम राज्य के 8 पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी जिलों (सवाईमाधोपुर, करौली, कोटा, बूँदी, बारां, धौलपुर, भरतपुर व झालावाड़) की 26 पंचायत समितियों की 394 ग्राम पंचायतों में आर्थिक, सामाजिक व अन्य आधारभूत सुविधाओं के विकास एवं अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है।
मगरा क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम
वर्ष 2005-06 में प्रारम्भ कार्यक्रम।राज्य के 5 जिलों (अजमेर, भीलवाड़ा, पाली, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़) की 16 पंचायत समितियों के 1715 गाँवों के निवासियों के आर्थिक एवं सामाजिक सुधार हेतु संचालित कार्यक्रम। 100% राज्य वित्त पोषित कार्यक्रम।
कंदरा सुधार कार्यक्रम
शुरूआत :- 1987-88 शत-प्रतिशत (100%) केन्द्र प्रवर्तित कार्यक्रम
8 प्रभावित जिलों (कोटा, बूँदी, बारां, झालावाड़, सवाईमाधोपुर, करौली, भरतपुर व धौलपुर) में संचालित।
यह योजना कंदराओं व बीहड़ों के फैलाव को रोकने तथा बीहड़ क्षेत्रों की खोई हुई उत्पादन क्षमता को वापस प्राप्त करने हेतु चलाई जा रही है।
मरुगोचर योजना
2003-04 में प्रारम्भ। राज्य के 10 मरु जिलों (बीकानेर, चूरू, बाड़मेर, जालौर, जैसलमेर, पाली, नागौर, झुंझुनूं, सीकर, जोधपुर) में संचालित।
उद्देश्य :- मरुस्थलीय जिलों में पारम्परिक जल स्रोतों की बहाली तथा प्रभावी सूखा रक्षण के अन्य उपाय करना। राजस्थान जनजाति क्षेत्र विकास विभाग की स्थापना :- 1975 में
जनजाति उप योजना
1974-75 में आरम्भ। इस योजना के मुख्य कार्यक्रम सिंचाई, विद्युत, फल-विकास, बेर-बेडिंग, डीजल पम्पिंग से सामुदायिक सिंचाई, बीज व उर्वरक वितरण, फार्म-वानिकी आदि है।
5 जिलों (बाँसवाड़ा, उदयपुर, डूंगरपुर, सिरोही, चित्तौड़गढ़) की 19 तहसीमों के 4409 गाँव शामिल।
परिवर्तित क्षेत्र – विकास – उपागम (MADA
वर्ष 1978-79 में प्रारम्भ योजना। इसमें 13 जिलों (अलवर, धौलपुर, भीलवाड़ा, बूँदी, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, झालावाड़, कोटा, पाली, सवाईमाधोपुर, सिरोही, टोंक, जयपुर) के 2939 गाँवों के 44 समूहों के जनजाति के लोग शामिल हैं।
माडा के अन्तर्गत सम्मिलित क्षेत्रों में लघु सिंचाई, सामुदायिक पम्प सेट, ग्रामीण गृह निर्माण योजना, दुकानों के लिए अनुदान, व्यावसायिक शिक्षा, सामुदायिक कुओं को गहरा करना, पेयजल, चिकित्सा जैसे विकास कार्यों को संचालित किया जा रहा है।
सहरिया विकास कार्यक्रम
1977-78 में आरम्भ बारां जिले की शाहबाद व किशनगंज समितियों के 435 गाँवों में सहरिया जनजाति के सर्वांगीण विकास हेतु संचालित कार्यक्रम।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कृषि, लघु सिंचाई, वानिकी, व्यवसायोन्मुखी प्रशिक्षण, ग्रामीण गृह निर्माण, पशुपालन, शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, पेयजल, मुफ्त कानूनी सलाह एवं प्राकृतिक आपदाओं में सहायता आदि कार्यों का संचालन किया जा रहा है।
बिखरी जनजाति के लिए विकास कार्यक्रम
1979 में प्रारम्भ संचालन :- जनजाति क्षेत्र विकास विभाग। उद्देश्य :- जनजातिय लोगों का कल्याण। जनजाति अनुसंधान संस्थान :- उदयपुर
मरु विकास कार्यक्रम (DDP)
1977-78 में शुरू उद्देश्य :- मरुस्थलीय प्रसार को रोकना। प्रभावित क्षेत्रों में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना। प्रभावित क्षेत्रों में भूमि की उत्पादकता तथा जल संसाधनों में वृद्धि करना।
यह कार्यक्रम 16 जिलों के 85 विकास खण्डों में संचालित हैं। वित्त पोषण में केन्द्र एवं राज्य का अनुपात :- 75 : 25 (पहले 100% केन्द्र प्रवर्तित थी) इस कार्यक्रम में निम्न प्रकार के कार्य किए जाते हैं
- कृषि, वानिकी का विकास
- पशुपालन व भेड़-पालन का विकास।
- पशुओं के लिए पेयजल पूर्ति की व्यवस्था।
- लघु सिंचाई।
- ग्रामीण विद्युतीकरण।
- जल संसाधनों का विकास एवं आर्द्रता संरक्षण।
- बलुई मिट्टी के टीलों के स्थिरीकरण का कार्यक्रम।
अरावली विकास कार्यक्रम
- 1974-75 में प्रारम्भ। 16 जिलों के 120 खण्ड इस योजना में शामिल। अरावली क्षेत्र वृक्षारोपण योजना 1992-93 को राज्य के 10 जिलों (अलवर, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, जयपुर, पाली, सिरोही, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बाँसवाड़ा) में संचालित योजना।
- इस परियोजना का उद्देश्य मरुस्थल प्रसार पर नियंत्रण, पर्वतीय क्षेत्रों को वृक्षाच्छादित करना, वन्य जीव अभयारण्यों में पारिस्थितिकीय पर्यावरण में सुधार करना है। यह कार्यक्रम जापान के ओवरसीज इकोनोमिक को-ऑपरेशन फंड (OECF) की सहायता से चलाया गया।
रुख-भायला कार्यक्रम
1986 में डूंगरपुर जिले से प्रारम्भ। रुख-भायला का शाब्दिक अर्थ :- वृक्ष-मित्र।
पुष्कर गैप परियोजना
पुष्कर झील को स्वच्छ एवं सुन्दर बनाने के लिए कनाडा की सहायता से 1997-98 में शुरू की गई योजना। 2004-05 में समाप्त।
अपना काम अपना गाँव योजना
1 जनवरी, 1991 को प्रारम्भ।
पुष्कर समन्वित विकास परियोजना
1992-93 से संचालित स्कीम उद्देश्य :- पुष्कर झील में घाटों का सुधार करना, झील में मिट्टी आदि की भराई रोकना, पहाड़ियों पर वृक्षारोपण करना।
अरावली-वनारोपण – प्रोजेक्ट
वर्ष 1992-93 में प्रारम्भ। 31 मार्च, 2000 को समाप्त। इस प्रोजेक्ट के तहत 1.51 लाख हैक्टेयर में वनरोपण एवं पौधों के वितरण, नमी-संरक्षण व नई नर्सरियों की स्थापना के कार्य सम्पन्न किए गए।
जनजाति क्षेत्र विकास कार्यक्रम
उद्देश्य – जनजाति क्षेत्र का विकास करना। यह योजना उदयपुर, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, सिरोही, चित्तौड़गढ़ में चलायी गई।