राजस्थान में सूखा एवं अकाल

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सूखा एवं अकाल

  • कहावत :- तीजो कुरियों आठवों काल। (कुरियो – अर्द्ध अकाल)

अकाल के प्रकार

  1. अन्नकाल :- अन्न का अभाव।
  2. जल काल :- जल का अभाव।
  3. तृण काल :- पशुओं के लिए चारे व घास का अभाव
  4. त्रिकाल :- इस प्रकार के अकाल में अन्न चारे व पानी का भयंकर संकट उत्पन्न हो जाता है। सन् 1987 में इस प्रकार का अकाल पड़ा था।

1952 से 2016 तक निम्न वर्षों में राजस्थान में अकाल नहीं पड़ा :- 1959-60, 1973-74, 1975-76, 1976-77, 1990-91, 1994-95

स्थायी पाहुना :- अनावृष्टि जनित अकाल। सहसा मूदसा अकाल :- सन् 1842-43 का अकाल (वि.स. 1900-1901)  छप्पनिया अकाल :- सन् 1899 (वि. स. 1956)  महा अकाल :- 1987-88

वर्ष 2000-01 में धौलपुर काे छोड़कर राजस्थान के सभी जिले अकाल से प्रभावित रहे। वर्ष 2009-10 में राजस्थान के 27 जिले अकाल से प्रभावित हुए।

 राज्य में अकाल के कारण

प्राकृतिक कारण

  1. शुष्क जलवायु
  2. उच्च तापमान
  3. वर्षा की अपर्याप्तता एवं अनियमितता
  4. वनों का अभाव
  5. नियतवाही नदियों का अभाव
  6. उच्चावच के ढाल स्वरूप में परिवर्तन
  7. अनाच्छादन से बालू की मात्रा में वृद्धि एवं विस्तार

मानवीय कारण

आर्थिक कारण

  1. मरुस्थली प्रदेश की पिछड़ी अर्थव्यवस्था
  2. सीमित संसाधन
  3. जनसंख्या वृद्धि का बोझ
  4. पशुओं की संख्या में वृद्धि

अकाल के दुष्परिणाम

  • कृषि फसलों का नष्ट होना
  • उद्योगों के लिए कच्चे माल का संकट
  • श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी
  • जनता की क्रय-शक्ति में हृास
  • औद्योगिक उत्पादन में गिरावट
  • वनों का विनाश
  • बेरोजगारी
  • वस्तुओं की माँग में कमी

 सूखे एवं अकाल की समस्या से निपटने हेतु सरकारी कार्यक्रम

  1. सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम :- 1974-75 (राजस्थान के 11 जिलों के 32 खण्डों में संचालित)
  2. जलसंभर विकास योजना :- 1 अप्रैल, 1995
  3. हरियाली परियोजना :- 2003
  4. मरु विकास कार्यक्रम :- 1977-78 में शुरू। 16 जिलों के 85 खण्डों में संचालित
  5. मरुगोचर योजना :- 2003-04 राज्य के 10 जिलों में संचालित
  6. आपदा प्रबन्धन एवं सहायता विभाग :- 24 अक्टूबर, 1951 को स्थापना
  7. प्राकृतिक आपदा सहायता कोष :- वर्ष 1990-91 में स्थापित
  8. राज्य में प्राकृतिक आपदा कोष का गठन अप्रैल 1995 में दसवें वित्त आयोग की सिफारिश पर किया गया।

अकाल के प्रभाव को कम करने के उपाय

अल्पकालीन उपाय

  1. वार्षिक योजना में नियमित प्रावधान की अनिवार्य व्यवस्था की जानी चाहिए।
  2. राहत कार्यों का निर्धारण क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप तथा शीघ्र व यथा समय हो।
  3. प्रयासरत संस्थाओं व तत्संबंधी कार्यों में समुचित समन्वय हो
  4. राहत कार्यों में जनसहभागिता का सुनिश्चयन
  5. पेयजल व्यवस्था हेतु हैंडपम्प व ट्यूबवैल खुदवाना
  6. चारे की व्यवस्था करना।
  7. आबियाना (पानी पर लगने वाला कर) माफ करना

दीर्घकालीन उपाय

  1. सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना एवं उपलब्ध जल संसाधनों का दीर्घकालीन व उचित प्रबन्धन
  2. विशिष्ट योजना संगठन की स्थापना
  3. सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम, मरु विकास कार्यक्रम आदि का प्रभावी संचालन करना
  4. वृक्षारोपण कार्यक्रम
  5. अकाल राहत कार्यों का अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों के साथ प्रभावी समन्वय स्थापित करना
  6. सुलभ जल क्षेत्रों का पता लगाक उन जल संसाधन का विदोहन करना
  7. कृषि वानिकी व चारागाह भूमि विकास को प्रोत्साहन एवं मरु प्रदेशों में बालू टिब्बों के स्थिरीकरण के प्रयास करना।
  8. उपलब्ध जल संसाधनों का दीर्घकालीन प्रबन्धन आदि
  9. पर्यटन को आकर्षक बनाया जाए

आपदा प्रबन्धन

राज्य में अकाल से निपटने के लिए 24 अक्टूबर, 1951 को “आपदा प्रबन्धन एवं सहायता विभाग’ की स्थापना की गई है।

– राजस्थान राज्य आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 :- 1 अगस्त, 2007 से लागू। राजस्थान राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 14 की अनुपालना में 6 सितम्बर, 2007 को किया गया। इस प्राधिकरण का अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है।

राजस्थान राज्य आपदा प्रबंधन नीति :- 25 अक्टूबर, 2007 राज्य आपदा राहत कोष (SDRF) में केन्द्र व राज्य सरकार का अंशदान 3 : 1 हैं। फुड स्टैम्प योजना :- 15 अगस्त, 2004 से शुरू।

राजस्थान राहत कोष का गठन :- 2005-06 में। गत तीन दशकों में राजस्थान में 90% से अधिक गाँव वर्ष 2002-03 में अप्रत्याशित अकाल व सूखे से पीड़ित हुए। राज्य में वर्तमान (2013-14) में भू-उपयोग हेतु कुल प्रतिवेदित क्षेत्र में लगभग 19% भूमि बंजर भूमि हैं।

राज्य में गत 30 वर्षों में पुरानी पड़त भूमि में लगभग 18% की कमी आई है। राजस्थान विशेष आवास योजना :- 2014-15 में प्रारम्भ। इस योजना के तहत सरकार द्वारा प्रभावित परिवार को पूर्णत: क्षतिग्रस्त आवास के पुनर्निर्माण हेतु 50 हजार रुपये एवं आंशिक क्षतिग्रस्त आवास हेतु 25 हजार रुपये की सहायता दी जाती है। राजस्थान का उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्र अकाल व सूखे से सर्वाधिक प्रभावित है।

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