my gk book की पिछली पोस्ट में हमने आप को राजस्थान की कई सभ्यता के बारे विस्तार से बताया था इस पोस्ट में हम rajasthan ki prachin sabhyata राजस्थान में सभ्यता ( rajasthan ki sabhyata ) के बारे जानकरी देंगे।
Rajasthan ki prachin sabhyata
rajasthan me sabhyata
बरोर सभ्यता
- बरोर सभ्यता गंगानगर में सरस्वती नदी के तट पर इस सभ्यता के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- बरोर सभ्यता वर्ष 2003 में यहाँ उत्खनन कार्य शुरू किया गया।
- बरोर सभ्यता से प्राप्त अवशेषों के आधार पर बरोर सभ्यता को प्राक् प्रारंभिक तथा विकसित हड़प्पा काल में बांटा गया है।
- बरोर सभ्यता के मृद्भांडो में काली मिट्टी के प्रयोग के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- वर्ष 2006 में यहाँ मिट्टी के पात्र में सेलखड़ी के 8000 मनके प्राप्त हुए हैं।
- बरोर सभ्यता हड़प्पाकालीन विशेषताओं के समान जैसे सुनियोजित नगर व्यवस्था, मकान निर्माण में कच्ची इटों का प्रयोग तथा विशिष्ट मृद्भांड परम्परा आदि से युक्त है।
- बरोर सभ्यता से बटन के आकार की मुहरें प्राप्त हुई हैं।
ईसवाल सभ्यता
- ईसवाल सभ्यता लौह युगीन सभ्यता है।
- ईसवाल सभ्यता प्राचीन औद्योगिक बस्ती भी कहा जाता है।
- इस स्थल का उत्खनन कार्य राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के पुरातत्व विभाग के निर्देशन में किया गया।
- यहाँ से निरन्तर लौहा गलाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- यहाँ से प्राक् ऐतिहासिक काल से मध्यकाल तक का प्रतिनिधित्व करने वाली मानव बस्ती के प्रमाण पाँच स्तरों से प्राप्त हुए हैं।
- ईसवाल सभ्यता पर 5वीं शताब्दी ई.पू. में लोहा गलाने का उद्योग विकसित होने के प्रमाण है।
- यहाँ से प्राप्त सिक्कों को प्रांरभिक कुषाणकालीन माना जाता है।
- मौर्य, शुंग, कुषाणकाल में यहाँ लौहा गलाने का कार्य होता था।
- ईसवाल सभ्यता उत्खनन में ऊँट का दाँत एवं हडि्डयाँ मिली हैं।
- ईसवाल सभ्यता के मकान पत्थरों से बनाये जाते थे।
लाछूरा सभ्यता
- लाछूरा सभ्यता यह पुरातात्विक स्थल भीलवाड़ा जिले की आसींद तहसील में स्थित है।
- लाछूरा सभ्यता पर उत्खनन कार्य वर्ष 1998-1999 में बी. आर. मीना के निर्देशन में किया गया।
- लाछूरा सभ्यता से 700 ई. पू. से 200 ई. तक की सभ्यताओं के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- यहाँ से मानव तथा पशुओं की मृण्यमूर्तियां, तांबे की चूड़ियां, मिट्टी की मुहरें जिस पर ब्राह्मी लिपि में 4 अक्षर अंकित है, ललितासन में नारी की मृण्यमूर्ति आदि प्राप्त हुए हैं।
- लाछूरा सभ्यता से शुंगकालीन तीखे किनारे वाले प्याले प्राप्त हुए हैं।
जूनाखेड़ा सभ्यता
- जूनाखेड़ा सभ्यता इस पुरातात्विक स्थल की खोज गैरिक ने की थी।
- जूनाखेड़ा सभ्यता से उत्खनन में मिट्टी के बर्तन पर ‘शालभंजिका’ का अंकन मिला है।
- इसके अतिरिक्त यहाँ से काले ओपदार कटोरे तथा छोटे आकार के दीपक प्राप्त हुए हैं।
नलियासर सभ्यता
- नलियासर सभ्यता जयपुर स्थित इस पुरातात्विक स्थल से चौहान वंश से पूर्व की सभ्यता के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- नलियासर सभ्यता से ब्राह्मी लिपि में लिखित कुछ मुहरें प्राप्त हुई है।
- नलियासर सभ्यता से आहत मुद्राएँ, उत्तर इण्डोससेनियन सिक्के, कुषाण शासक हुविस्क, इण्डोग्रीक, यौधेयगण तथा गुप्तकालीन चाँदी के सिक्के मिले हैं।
- नलियासर सभ्यता से 105 कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं।
- इस सभ्यता का समय तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी सदी तक माना जाता है।
भीनमाल सभ्यता
- भीनमाल सभ्यता यहाँ पर उत्खनन कार्य 1953-54 में रतनचंद्र अग्रवाल के निर्देशन में किया गया।
- भीनमाल सभ्यता के मृद्पात्रों पर विदेशी प्रभाव दिखाई देता है।
- भीनमाल सभ्यताकी खुदाई से मृद्भांड तथा शक क्षत्रपों के सिक्के प्राप्त हुए है।
- भीनमाल सभ्यता से यूनानी दुहत्थी सुराही भी प्राप्त हुई है।
- यहाँ से रोमन ऐम्फोरा (सुरापात्र) भी मिला है।
- भीनमाल सभ्यता से ईसा की प्रथम शताब्दी एवं गुप्तकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- संस्कृत विद्वान महाकवि माघ एवं गुप्तकालीन विद्वान ब्रह्मगुप्त का जन्म स्थान भीनमाल सभ्यता ही माना जाता है।
- चीनी यात्री हेनसांग ने भी भीनमाल सभ्यता की यात्रा की।
कुराड़ा सभ्यता
- कुराड़ा सभ्यता नागौर में स्थित है।
- यह ताम्रयुगीन सभ्यता स्थल है।
- यहाँ से ताम्र उपकरणों के अतिरिक्त प्रणालीयुक्त अर्घ्यपात्र प्राप्त हुआ है।
किराडोत सभ्यता
- किराडोत सभ्यता जयपुर में स्थित हैं।
- किराडोत सभ्यता स्थल से ताम्रयुगीन 56 चूड़ियाँ प्राप्त हुई है।
- इसमें अलग-अलग आकार की 28 चूड़ियों की 2 सेट प्राप्त हुए हैं।
गरड़दा सभ्यता
- गरड़दा सभ्यता बूँदी में स्थित है।
- छाजा नदी के किनारे स्थित इस स्थान से पहली बर्ड राइडर रॉक पेंटिंग प्राप्त हुई है।
- यह देश में प्रथम पुरातत्व महत्त्व की पेंटिंग है।
कोटड़ा सभ्यता
- कोटड़ा सभ्यता झालावाड़ में स्थित है।
- इस स्थल का उत्खनन वर्ष 2003 में दीपक शोध संस्थान द्वारा किया गया।
- यहाँ से 7वीं से 12वीं शताब्दी मध्य के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
मलाह सभ्यता
- मलाह सभ्यता भरतपुर में स्थित है
- यह स्थल भरतपुर जिले के घना पक्षी अभयारण्य में स्थित है।
- इस स्थल से अधिक संख्या में तांबे की तलवारें एवं हार्पून प्राप्त हुए हैं।
कणसव सभ्यता
- कणसव सभ्यता कोटा में स्थित है।
- इस स्थल से मोर्य शासक धवल का 738 ई. से संबंधित लेख मिला है।
नैनवा सभ्यता
- नैनवा सभ्यता बूंदी में स्थित है।
- यहाँ पर उत्खनन कार्य श्रीकृष्ण देव के निर्देशन में सम्पन्न हुआ।
- इस स्थल से 2000 वर्ष पुरानी महिषासुरमर्दिनी की मृण मूर्ति प्राप्त हुई है।
डडीकर सभ्यता
- डडीकर सभ्यता अलवर में स्थित है
- इस स्थल से पाँच से सात हजार वर्ष पुराने शैलचित्र प्राप्त हुए हैं।
सोंथी सभ्यता
- सोंथी सभ्यता यह बीकानेर में स्थित है।
- सोंथी सभ्यता की खोज अमलानंद घोष द्वारा (1953 में) की गई।
- यह कालीबंगा प्रथम के नाम से प्रसिद्ध है।
- सोंथी सभ्यता पर हड़प्पाकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
बांका सभ्यता
- बांका सभ्यता यह भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
- यहाँ से राजस्थान की प्रथम अलंकृत गुफा मिली है।
गुरारा सभ्यता
- गुरारा सभ्यता सीकर जिले में स्थित है।
- यहाँ से हमें चाँदी के 2744 पंचमार्क सिक्के मिले हैं।
बयाना सभ्यता
- बयाना सभ्यता यह भरतपुर में स्थित है।
- इसका प्राचीन नाम श्रीपंथ है।
- यहाँ से गुप्तकालीन सिक्के एवं नील की खेती के साक्ष्य मिले हैं।
तिलवाड़ा सभ्यता
- तिलवाड़ा सभ्यता बाड़मेर जिले में लूणी नदी के किनारे स्थित पुरातात्विक स्थल है।
- तिलवाड़ा सभ्यता पर उत्खनन कार्य 1967-68 में ‘राजस्थान राज्य पुरातत्व विभाग’ द्वारा करवाया गया।
- तिलवाड़ा सभ्यता पर उत्खनन का कार्य डॉ. वी. एन. मिश्र के नेतृत्व में किया गया।
- तिलवाड़ा सभ्यता एक ताम्र पाषाणकालीन स्थल है जहाँ से 500 ई. पू. से 200 ई. तक विकसित सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं।
- तिलवाड़ा सभ्यता से उत्तर पाषाण युग के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- यहाँ पर उत्खनन से पाँच आवास स्थलों के अवशेष मिले हैं।
- तिलवाड़ा सभ्यता में एक अग्निकुण्ड मिला है जिसमें मानव अस्थि भस्म तथा मृत पशुओं के अवशेष मिले हैं।