इस पोस्ट में हम आप को राजस्थान में ब्रिटिश संधियां के बारे में जानकारी प्रदान करगे, आश्रित पार्थक्य की नीति, 1817-18 की अधीनस्थ संधि, राजस्थान की रियासतें एवं ब्रिटिश संधियां, अंग्रेजों से संधि करने वाला राजस्थान का प्रथम राज्य, राजस्थान की ब्रिटिश संधियां, rajasthan ki british sandhiya, sahayak sandhi in rajasthan, अंग्रेजों से संधि करने वाली प्रथम रियासत,
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- 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही राजपूत राज्यों पर मुगल केन्द्रीय सत्ता का नियंत्रण ढीला पड़ गया।
- सभी राजपूत राज्य अपने राज्य का विस्तार करने तथा पड़ौसी राज्य पर राजनैतिक वर्चस्व स्थापित कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के प्रयत्न में लग गए।
- इस प्रकार के प्रयत्नों के फलस्वरूप राजपूत राज्यों में पारस्परिक संघर्ष बढ़ गये।
- शासकों ने पारस्परिक संघर्षों में सहायता प्राप्त करने के लिए बाहरी ताकतों (मराठा, अंग्रेज, होल्कर आदि) का सहारा लेने लगे।
- जब राज्यों में उत्तराधिकार संघर्ष में मराठों का हस्तक्षेप हुआ तो राजपूताना के शासकों ने मराठा के विरुद्ध ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सहायता माँगी लेकिन अंग्रेजों ने इन प्रस्तावों पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उस समय अंग्रेजों की नीति राजपूताना के लिए मराठों से युद्ध करने की नहीं थी।
- भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का आगमन 1600 ई. में हुआ था।
- 1757 ई. में प्लासी युद्ध के पश्चात ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने पहली बार भारत में (बंगाल में) राजनीतिक सत्ता प्राप्त की।
- रॉबर्ट क्लाइव सन् 1757 में बंगाल का प्रथम गवर्नर बना।
- 1764 ई. के बक्सर युद्ध के पश्चात हुई इलाहाबाद संधि ने कम्पनी को भारत में पूर्णत: राजनीतिक शक्ति प्रदान की।
- वारेन हेस्टिंग्स 1772 ई. में बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
- वारेन हेस्टिंग्स ने ‘सुरक्षा घेरे की नीति’ (पॉलिसी ऑफ रिंग फेंस) को अपनाया जिसके अनुसार कम्पनी द्वारा अपने अधिकृत प्रदेशों को शत्रुओं से सुरक्षा के लिए पड़ौसी राज्यों के साथ मैत्री संधि कर उन्हें बफर राज्यों के रूप में प्रयुक्त किया जाता था।
- लॉर्ड कार्नवालिस ने भारतीय शासकों के मामलों में ‘अहस्तक्षेप की नीति’ अपनाई। 1798 ई. में लॉर्ड वैलेजली ने देशी राज्यों के साथ ‘सहायक संधि’ की नीति अपनाई।
- इस नीति के तहत देशी राज्यों की आंतरिक सुरक्षा व विदेशी नीति का उत्तरदायित्व अंग्रेजों पर था जिसका खर्च संबंधित राज्य को उठाना पड़ता था।
- कम्पनी इस हेतु उस राज्य में एक अंग्रेज रेजीडेन्ट की नियुक्ति करती थी एवं सुरक्षा हेतु उस देशी राज्य के खर्च पर अपनी सेना रखती थी।
- भारत में प्रथम सहायक सन्धि 1798 ई. में हैदराबाद के निजाम के साथ की गई।
- अगस्त 1803 ई. में आंग्ल-मराठा के द्वितीय युद्ध में मराठों की पराजय के पश्चात मराठा पेशवा दौलतराव द्वारा 30 दिसम्बर, 1803 को अंग्रेजों के साथ सुर्जीअर्जन गाँव सन्धि कर जयपुर एवं जोधपुर राज्यों को अंग्रेजों को सौंप दिया।
- राजस्थान में सर्वप्रथम भरतपुर राज्य के महाराजा रणजीतसिंह के साथ 29 सितम्बर, 1803 को लॉर्ड वैलेजली ने सहायक संधि की।
- आपसी अविश्वास के कारण यह संधि क्रियान्वित न हो पायी। इससे रुष्ट होकर लॉर्ड लेक के नेतृत्व में अंग्रेजों ने 5 बार भयंकर आक्रमण किये लेकिन अंग्रेज भरतपुर को जीतने में असफल रहे एवं अप्रैल 1805 में नई संधि हुई जिसमें भरतपुर की पूर्व की स्थिति रखी गई, भरतपुर राज्य की सीमा एवं क्षेत्रफल में कोई परिवर्तन नहीं किया गया तथा भरतपुर को डीग क्षेत्र लौटा दिया गया।
- अलवर राज्य के साथ 14 नवम्बर, 1803 में वहाँ के शासक बख्तावरसिंह के साथ संधि की।
- इस संधि के तहत कम्पनी ने अलवर राज्य का पृथक अस्तित्व स्वीकार करके अलवर के आंतरिक प्रशासन में हस्तक्षेप न करने का वचन दिया।
- अलवर प्रथम राज्य था जिसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ विस्तृत रक्षात्मक एवं आक्रामक संधि की थी।
- अंग्रेजों द्वारा जयपुर के महाराजा जगतसिंह द्वितीय के साथ 12 दिसम्बर, 1803 को संधि की गई।
- 805 ई. में यह संधि भंग कर दी गई लेकिन मराठा सरदार एवं पिंडारियों के आतंक ने जयपुर-अंग्रेजों को पुन: संधि करने के लिए बाध्य कर दिया।
- 2 अप्रैल, 1818 को ईस्ट इण्डिया कम्पनी एवं जयपुर राज्य के मध्य पुन: संधि हुई।
- जोधपुर शासक भीमसिंह के समय जोधपुर राज्य के साथ 22 दिसम्बर, 1803 को संधि की गई।
- इस संधि की प्रमुख शर्तें एक-दूसरे की सहायता देने,
- परस्पर मित्रता बनाए रखने,
- खिराज नहीं देने एवं जोधपुर राज्य में किसी फ्रांसीसी को नौकरी नहीं देने अथवा देने से पूर्व कम्पनी से सलाह मशविरा करना आदि थी।
- 1813 ई. में लॉर्ड हेस्टिंग्स के गवर्नर जनरल बनने के बाद कम्पनी सरकार की नीति में परिवर्तन आया।
- लॉर्ड हेस्टिंग्स ने ‘घेरे की नीति’ के स्थान पर ‘अधीनस्थ पार्थक्य की नीति’ को क्रियान्वित किया।
राजस्थान की रियासतें और ब्रिटिश संधियां
1817-18 की अधीनस्थ संधि
- 1818 ई. में राजपूत राज्यों के साथ संधियाँ करने के लिए लॉर्ड हेस्टिंग्स ने दिल्ली रेजीडेन्ट चार्ल्स मेटकॉफ को कार्य सौंपा। मेटकॉफ ने राज्य के प्रतिनिधियों से बातचीत कर संधिपत्र तैयार किये।
- सन् 1811 में चार्ल्स मेटकॉफ ने राजस्थान के राजपूत शासकों का ‘एक परिसंघ’ बनाने का सुझाव दिया जो ब्रिटिश संरक्षण में कार्य करे।
- राजस्थान में अधीनस्थ पार्थक्य की नीति (1818 की संधि) को स्वीकार करने वाली पहली रियासत – करौली।
- (9 नवम्बर, 1817) अधीनस्थ पार्थक्य संधि स्वीकार करने के समय करौली का शासक – हरबक्षपालसिंह।
- अधीनस्थ पार्थक्य की संधि को स्वीकार करने वाला अंतिम राज्य – सिरोही (11 सितम्बर 1823) शासक – महाराव शिवविंह।
अधीनस्थ पार्थक्य संधि (1818) की शर्तें
- अंग्रेजी कम्पनी एवं संधिकर्त्ता राज्य के साथ सदैव मित्रता के समन्ध बने रहेंगे। एक के मित्र तथा शत्रु दोनों के मित्र और शत्रु समझे जाएँगे।
- संधिकर्त्ता राज्य की रक्षा करने का दायित्व कम्पनी का होगा।
- संधिकर्त्ता राज्य कम्पनी का आधिपत्य स्वीकार करेगा और कम्पनी सरकार के अधीन रहते हुए सदैव सहयोग प्रदान करेंगे।
- ये राज्य अन्य किसी राज्य के साथ राजनीतिक सम्बन्ध नहीं रखेंगे और न ही किसी के साथ संधि व युद्ध करेंगे। यदि किसी पड़ौसी राज्य के साथ झगड़ा हो जाएगा, तो वे उसमें कम्पनी की मध्यस्थता स्वीकार करेंगे।
- संधिकर्त्ता राज्यों के शासक व उनके उत्तराधिकारी अपने राज्य के स्वतंत्र शासक होंगे।
- कम्पनी इन राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
- जो राज्य पहले मराठों को खिराज देते थे, वे ही अब कम्पनी को खिराज देंगे।
कोटा राज्य के साथ संधि
- 26 दिसम्बर, 1817 को कोटा के मुख्य प्रशासक झाला जालिमसिंह एवं गवर्नर जनरल के विशेष प्रतिनिधि चार्ल्स मेटकॉफ के मध्य 1818 की संधि की गई। इस संधि में 11 धाराएँ थीं।
- 11वीं धारा में संधि पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों के नाम हैं
संधि की शर्तें
- कम्पनी सरकार व कोटा राज्य के मध्य पारस्परिक मित्रता एवं सद्भावना सदैव बनी रहेगी।
- एक पक्ष का मित्र एवं शत्रु दूसरे पक्ष का भी मित्र एवं शत्रु होगा।
- कम्पनी सरकार कोटा राज्य को सैनिक प्रदान करेगी एवं आवश्यकता पड़ने पर कोटा राज्य द्वारा कम्पनी सरकार को सैनिक सहायता प्रदान करेगा।
- कोटा राज्य कम्पनी सरकार की अनुमति के बिना किसी अन्य शक्ति से युद्ध एवं मैत्री संधि नहीं करेगा।
- कोटा महाराव एवं उसके उत्तराधिकारी किसी अन्य शक्ति से विवाद होने पर अंग्रेजों को मध्यस्थ बनाएंगे।
- कोटा राज्य मराठों को जो खिराज देता था, वह अब कम्पनी सरकार को देगा।
- कोटा के महाराव एवं उनके उत्तराधिकारी अपने राज्य के शासक बने रहेंगे। कम्पनी उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
- कोटा महाराव और उसके उत्तराधिकारी सदैव अंग्रेज सरकार की अधीनता में रहते हुए उसे सहयोग देते रहेंगे।
20 फरवरी, 1818 को झाला जालिमसिंह द्वारा अंग्रेजों से पूरक सन्धि कर दो नयी शर्तें जोड़ी गई।
1818 ई. में विभिन्न राज्यों के साथ सन्धियाँ
राज्य | संधि की तिथि | तत्कालीन शासक | विशेष |
करौली | 9 नवम्बर 1817 | हरबक्शपाल सिंह | संधि स्वीकार करने वाला प्रथम राज्य |
टोंक | 17 नवम्बर 1817 | अमीर खाँ पिण्डारी | अंग्रेजों ने अमीर खाँ को नवाब की उपाधि दी |
कोटा | 26 दिसम्बर 1817 | महाराव उम्मेदसिंह प्रथम | वार्षिक खिराज- 2,44,700 रुपये |
जोधपुर | 6 जनवरी 1818 | महाराजा मानसिंह | इस संधि पर महाराजा मानसिंह की तरफ से युवराज छत्रसिंह, आसोपा बिशनराम एवं व्यास अभयराम ने हस्ताक्षर किये। |
उदयपुर (मेवाड़) | 13 जनवरी 1818 | महाराणा भीमसिंह | इस संधि के तहत उदयपुर 5 वर्ष के लिए अपनी वार्षिक आय का 25% खिराज देना तय हुआ जो 5 वर्ष बाद 3/8 हो जाएगा। |
बूँदी | 10 फरवरी 1818 | महाराव विष्णु सिंह | वार्षिक खिराज – 80 हजार रुपये |
बीकानेर | 9 मार्च 1818 | महाराजा सूरतसिंह | महाराजा प्रतिनिधि काशीनाथ ओझा संधि की पुष्टि – 21 मार्च 1818 को पातरसा घाट पर |
किशनगढ़ | 26 मार्च 1818 | महाराजा कल्याणसिंह | खिराज मुक्त रियासत |
जयपुर | 2 अप्रैल 1818 | महाराजा जगतसिंह-II | इस संधि-पत्र पर ठाकुर रावल बैरिसाल नाथावत व चार्ल्स मैटकॉफ के हस्ताक्षर हुए हैं। |
प्रतापगढ़ | 5 अक्टूबर 1818 | महारावल सामंतसिंह | प्रतापगढ़ के साथ संधि कराने में अंग्रेज प्रतिनिधि जॉन मेल्कम की विशेष भूमिका रही |
डूँगरपुर | 11 दिसम्बर 1818 | महारावल जसवंतसिंह-II | – |
बाँसवाड़ा | 25 दिसम्बर 1818 | महाराजा उम्मेदसिंह | – |
जैसलमेर | 12 दिसम्बर 1818 | महारावल मूलराज द्वितीय | खिराज मुक्त राज्य |
सिरोही | 11 सितम्बर 1823 | महाराजा शिवसिंह | संधि करने वाली अंतिम रियासत |
- कोटा महाराव उम्मेदसिंह के पश्चात उसका ज्येष्ठ पुत्र एवं उसके वंशज राज्य के शासक पद पर बने रहेंगे।
- राज्य के समस्त प्रशासनिक अधिकार राजराणा झाला जालिमसिंह तथा उसके वंशजों के पास रहेंगे। पूरक संधि पत्र पर चार्ल्स मेटकॉफ महाराव उम्मेदसिंह, जालिमसिंह, महाराज शिवदानसिंह, लाला हुकमचन्द और शाह जीवनराम के हस्ताक्षर है।
- कोटा की पूरक संधि मांगरोल युद्ध (1821 ई.) का कारण बनी जिसमें अंग्रेजों ने झाला जालिमसिंह की सहायता की।
- इस युद्ध में कोटा महाराव उम्मेदसिंह की परास्त होने के बाद नाथद्वारा चले जाने पर मेवाड़ महाराणा भीमसिंह की सहायता से दोनों के मध्य नवम्बर 1821 में समझौता हुआ जिसमें महाराव ने पूरक संधि को स्वीकार कर लिया।
- पूरक संधि की धाराओं के फलस्वरूप कोटा राज्य का विभाजन हो गया एवं 1838 ई. में नवीन राज्य झालावाड़ की स्थापना हुई।
- अधीनस्थ पार्थक्य नीति के तहत संधि करने वाला प्रथम राज्य :- करौली (9 नवम्बर 1817)
- अधीनस्थ पार्थक्य नीति के तहत अंतिम संधिकर्त्ता राज्य :- सिरोही (11 सितम्बर 1823)
- टोंक रियासत का निर्माण :- नवम्बर 1817 (शासक – अमीर खाँ पिण्डारी) ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दौलतराव सिन्धिया से अजमेर इलाके को वर्ष 1818 में प्राप्त किया था।
- झालावाड़ रियासत का निर्माण :- 1838 ई. में। ( शासक – राणा मदनसिंह ) ( अंग्रेजों द्वारा निर्मित आखिरी रियासत ) झालावाड़ राजस्थान की सबसे नवीन रियासत थी।
- 1817-18 की संधियाँ कराने में चार्ल्स मेटकॉफ व कर्नल जेम्स टॉड की विशेष भूमिका रही।
- 1818 की संधि के तहत खिराज मुक्त रियासतें :- बीकानेर–जैसलमेर, करौली, किशनगढ़ एवं अलवर।
- जयपुर रियासत के प्रथम पॉलिटिकल एजेन्ट :- स्टीवर्ड (1821 में) नवम्बर 1830 में जयपुर के पॉलिटिकल एजेन्ट का पद समाप्त कर दिया गया।
- अजमेर में गवर्नर जनरल का दरबार :- 1832 ई. में अजमेर।
- AGG (एजेन्ट टू गवर्नर जनरल) कार्यालय की स्थापना :- मार्च 1832 में अजमेर में।
- वर्ष 1857 में अजमेर से माउन्ट आबू स्थानांतरित।
- राजस्थान के एजेन्ट टू गवर्नर जनरल (AGG) पहला AGG :- अब्राहम लॉकेट (मार्च 1832 – नवम्बर 1833) अंतिम AGG :- जॉन चीप ब्रूके (1870-1871) मृत्युपर्यन्त AGG :- जेम्स सदरलैण्ड (1839-1847) 1857 की क्रांति के समय AGG :- जॉर्ज सेंट पैट्रिक लॉरेन्स (मार्च 1857 – अप्रैल 1864)
- अजमेर – मेरवाड़ा के प्रथम चीफ कमिश्नर :- रिचर्ड हर्टे कीटिंग।
- अंतिम चीफ कमिश्नर :- हीरानंद रूपचंद शिवदासनी (1944-1947)
- अंतिम ब्रिटिश चीफ कमिश्नर :- जॉर्ज वॉन बेर्ले गिलन (1942-1944)
- इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इण्डिया के योजनाकार :- सर विलियम विल्सन हंटर।
- अंग्रेजी शासन के समय राजपूताना रेजीडेंसी की रियासतों को 9 समूहों में विभाजित किया गया जिनमें तीन रेजीडेन्सी एवं 6 एजेन्सी थीं।
- रेजीडेन्ट :- रेजीडेन्सी के ब्रिटिश अधिकारी।
- पॉलिटिकल एजेन्ट :- एजेन्सी का ब्रिटिशन अधिकारी।
तोपों की सलामी
- 21 तोपों की सलामी वाली रियासत :- उदयपुर।
- 19 तोपों की सलामी वाली रियासतें :- जयपुर, जोधपुर एवं बीकानेर।
- 17 तोपों की सलामी वाली रियासतें :- अलवर, भरतपुर, बूँदी, टोंक, कोटा।
- 15 तोपों की सलामी वाली रियासतें :- जैसलमेर, सिरोही, किशनगढ़, बाँसवाड़ा, डूँगरपुर, प्रतापगढ़, धौलपुर।
- 13 तोपों की सलामी वाली रियासत :- झालावाड़ (राजस्थान की सबसे नवीन रियासत)
- 9 तोपों की सलामी वाली रियासत :- शाहपुरा (राजस्थान की सबसे छोटी रियासत)
- मेवाड़ का प्रथम पॉलिटिकल एजेन्ट :- कर्नल जेम्स टॉड (1818 में)
- ‘राजपूताना रेजीडेन्सी’ का गठन :- 1818 ई. में। दिल्ली में गठित।
- राजपूताना के प्रथम रेजीडेन्ट :- ब्रिग्रेडियर जनरल डेविड ऑक्टरलोनी।
- अलवर रियासत की स्थापना :- 1803 ई. में। (जयपुर से अलग करके)
- अंग्रेजों की ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 14 नवम्बर 1803 को अलवर रियासत के साथ सन्धि की।
टोंक रियासत के साथ की गई संधि एवं उसकी शर्तें
- अमीर खाँ पिण्डारी एवं अंग्रेजों के मध्य 17 नवम्बर 1817 को हुई संधि की निम्न शर्तें थीं –
- नवाब अमीर खाँ एवं उसके उत्तराधिकारियों का उन स्थानों पर अधिकार होगा, जो होल्कर के राज्य में उसके पास थे।
- अमीर खाँ अपने पास उतनी ही सेना रखेगा, जो राज्य की आन्तरिक व्यवस्था के लिए आवश्यक हो, वह शेष सेना भंग करेगा।
- अमीर खाँ किसी राज्य पर आक्रमण नहीं करेगा। वह पिण्डारियों का सहयोग नहीं करेगा तथा उनके दमन के लिए यथाशक्ति अंग्रेजों का सहयोग करेगा।
- अमीर खाँ आवश्यकता होने पर अंग्रेजों की सैनिक सहायता करेगा। इस संधि के द्वारा अमीर खां पिण्डारी को टोंक-रामपुरा का स्वतंत्र शासक स्वीकार कर उसे ‘नवाब’ की उपाधि प्रदान की।
- प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा एवं डूँगरपुर राज्यों के साथ संधि करने का श्रेय जॉन मेल्कम को जाता है।
- धौलपुर के शासक कीरतसिंह ने 1804 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली।
जयपुर व जोधपुर राज्य के साथ नमक समझौता
- अंग्रेजी सरकार ने सन् 1869 में जयपुर व जोधपुर राज्य के साथ नमक समझौता किया जिसकी निम्न शर्तें थीं
- जयपुर व जोधपुर राज्य द्वारा अंग्रेजों को दिया गया साँभर झील का पट्टा स्थायी होगा।
- जयपुर व जोधपुर राज्य इस पट्टे को वापिस नहीं ले सकेंगे, परन्तु अंग्रेज सरकार दो वर्ष का नोटिस देकर उस पट्टे को वापिस कर सकेगी।
- अंग्रेज सरकार काे साँभर झील के पास रहने वाले लोगों के घरों की तलाशी लेने का अधिकार होगा।
- अंग्रेजी सरकार साँभर में ‘साँभर न्यायालय’ की स्थापना करेगी, जो चोरी से नमक बनाने वालों को दण्डित कर सकेंगे।
- अंग्रेज सरकार ही नमक के भाव तय करेगी।
- लॉर्ड बैंटिक का अजमेर दरबार :- 1832 ई.
- लॉर्ड मैयो का अजमेर दरबार :- 1840 ई.
- प्रिन्स ऑफ वेल्स की भारत यात्रा :- 1875 ई.
- लॉर्ड लिटन का दिल्ली दरबार :- 1877 ई.
- लॉर्ड कर्जन का दिल्ली दरबार :- 1903 ई.
- लॉर्ड मेयो के अजमेर दरबार (1870) में कोटा के महाराव को आमंत्रित नहीं किया गया तथा इस दरबार में जोधपुर राजा तख्तसिंह दरबार में शामिल होने के लिए आए लेकिन दरबार में शामिल हुए बिना ही लौट गये।
- नोबल्स स्कूल :- 1861 ई. में जयपुर में।
- वाल्टर नोबल्स स्कूल :- 1893 ई. में बीकानेर।
- एल्गिन राजपूत स्कूल :- 1896 ई. में जयपुर में।
- मेयो कॉलेज की स्थापना :- 1875 ई. में अजमेर में।
संधियों के परिणाम
- राजपूताना राज्यों का बाहरी आक्रमणों से रक्षा।
- राज्य में शान्ति का वातावरण निर्मित होने से व्यापार एवं वाणिज्य में भी प्रगति हुई।
- सामन्तों में विद्रोह की भावना पनपने लगी।
- सामन्तों की शक्ति में हृास हुआ।
- राज्या की आर्थिक स्थिति दयनीय एवं कर्ज को बढ़ावा मिला।
- अंग्रेज कम्पनी द्वारा राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप बढ़ने लगा।
- राजपूती राज्यों की स्वतंत्रता का अंत हो गया।
- प्रशासन में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला एवं रेजीडेन्ट के माध्यम से अंग्रेज सरकार को खुश करने का प्रयत्न किया जाने लगा।
- देशी राज्यों में आन्तरिक कलह एवं संघर्ष को बल मिलने लगा।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नये राज्यों एवं ठिकानों की स्थापना की गई।
- 1838 ई. में झालावाड़ की स्थापना।
- शासकों के भोग विलास एवं आमोद-प्रमोद में वृद्धि हुई।
- किसानों एवं जनसाधारण पर कर्ज का बोझ डाला गया।
- शासक वर्ग के लिए शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध करवाई गई।
- इन सन्धियों से सामन्तों के पद-मर्यादा पर प्रहार किया गया।
- राज्यों के लोगों पर अंग्रेजी विचार एवं संस्थाएँ थोपने का प्रयास किया गया और सामाजिक परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों में भी हस्तक्षेप किया गया।
- नियमित रूप से खिराज की वसूली एवं प्रशासनिक उदासीनता से राज्यों की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी।
- कम्पनी के अधिकारों में अतिशय वृद्धि एवं हस्तक्षेप की नीति में वृद्धि हुई।
शेखावटी ब्रिगेड की स्थापना
- 1835 ई. में। ब्रिगेड का मुख्यालय :- झुंझुनूं में।
- कार्य :- शेखावटी में शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखना।
- इसका खर्च जयपुर राज्य से वसूल किया गया था।
- ‘जोधपुर लीजियन’ की स्थापना :- 1835 ई. में।
- लीजियन मुख्यालय :- एरिनपुरा।
- इसका खर्च जोधपुर राज्य पर थोपा गया।
- मेवाड़ भील कोर की स्थापना :- 1841 ई. में।
- कार्य :- भोमट क्षेत्र में सुप्रबन्ध व्यवस्था बनाये रखना।
- इसका खर्च मेवाड़ राज्य से वसूल किया गया।
- मुख्यालय :- खैरवाड़ा (उदयपुर)
- अंग्रेज अधिकारी मि. ब्लैक की हत्या :- 1835 में (रूपा बढ़ारण हत्या केस का जाँच अधिकारी)
- जोधपुर राज्य के पॉलिटिकल एजेन्ट लुडलो ने 1842 ई. में नाथों को देशनिकाला का आदेश दे दिया था।
- राजस्थान के शासकों एवं सामन्त पुत्रों की शिक्षा के लिए एक पृथक कॉलेज खोलने का सुझाव कर्नल वाल्टर ने दिया था।
- 1864 ई. में मिशन ने ब्यावर में ‘लिथो प्रेस’ स्थापित किया था।
- सांभर झील से तैयार किया गया नमक :- साँभरी।
- पचपदरा में तैयार नमक :- कोसिया डीडवाना का नमक :- डीडू।
- सार्थवाह को स्थानीय भाषा में ‘बाळद’ कहा जाता था।
- राजस्थान के नमक पर अंग्रेजी एकाधिकार स्थापित करने का सुझाव भरतपुर रेजीडेण्ट वाल्टर का था।
- 19वीं सदी में साँभर झील जयपुर एवं जोधपुर राज्य के संयुक्त अधिकार में थी।