इस पोस्ट में हमने आप को राजस्थान में प्रतापगढ़ के गुहिल वंश ( pratapgarh ka itihas in hindi ) का इतिहास, प्रतापगढ़ का गुहिल वंश के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करगे।
प्रतापगढ़ के गुहिल वंश का इतिहास
- प्रतापगढ़ के शासक सूर्यवंशी क्षत्रिय थे तथा इन्हें ‘महारावत’ कहा जाता था।
- इनका संबंध गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से है।
- राणा कुंभा के भाई क्षेमसिंह ने 1437 ई. में सादड़ी पर अधिकार किया था।
- महारावत बाघसिंह मांडू सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय चित्तौड़ की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- महारावत विक्रमसिंह ने सादड़ी के स्थान पर देवलिया को अपनी राजधानी बनाया।
- महारावत तेजसिंह ने हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप की ओर से लड़ने के लिए चाचा कांधल को भेजा था।
- महारावत हरिसिंह ने मुगल शासक शाहजहाँ के समय मुगल अधीनता स्वीकार की।
प्रतापगढ़ का गुहिल वंश
- महारावत प्रतापसिंह ने 1699 ई. के आसपास डोडेरिया खेड़ा स्थान पर प्रतापगढ़ नगर की स्थापना की।
- इनके समय कल्याण कवि ने ‘प्रताप प्रशस्ति’ की रचना की।
- महारावत सालिमसिंह ने मुगल शासक शाहआलम से प्रतापगढ़ में टकसाल स्थापित कर ‘सालिमशाही’ सिक्के ढालने की अनुमति प्राप्त की।
- इनके समय मराठा मल्हार राव होल्कर ने प्रतापगढ़ पर आक्रमण किया था।
- 1818 ई. में सामंत सिंह ने मराठों के आक्रमण से अपने राज्य को सुरक्षित करने के लिए अंग्रेजाें से संधि की।
- 1857 की क्रांति के समय प्रतापगढ़ के शासक महारावत दलपत सिंह थे जिन्होंने अंग्रेजाें की सहायता की।
- 1867 ई. में महारावत उदयसिंह ने देवलिया के स्थान पर प्रतापगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। इन्होंने प्रतापगढ़ दुर्ग में उदयविलास महल बनवाये।
- इनके समय राज्य में सत्ती प्रथा तथा कन्यावध प्रथा पर रोक लगाई गई।
- महारावत रघुनाथ सिंह ने राज्य में प्रतापगढ़ कनौरा, बजरंगगढ़, सागथली एवं मगरा नामक पाँच जिले बनाये। इन्होंने अंतिम निर्णय हेतु राज्य की सर्वाेच्च अदालत ‘राज्यसभा’ को नियत किया ।
- 25 मार्च, 1948 में प्रतापगढ़ रियासत का राजस्थान संघ में विलय किया गया।