कोटा का इतिहास | kota history

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कोटा राज्य का इतिहास

  • कोटा राज्य का इतिहास प्रारंभ में कोटा बूंदी रियासत का ही हिस्सा था तथा यहाँ हाड़ा चौहानों का शासन था।
  • जब खुर्रम ने जहाँगीर के विरूद्ध विद्रोह किया था तब खुर्रम को कैद करके बूंदी के रतनसिंह तथा इनके पुत्र माधाेिसंह की देखरेख में रखा गया।
  • माधोसिंह ने खुर्रम के साथ अच्छा व्यवहार किया तथा उसे शाही दरबार में उपस्थित करने से पूर्व ही गुप्त रूप से भगा दिया।
  • जब खुर्रम ( शाहजहाँ ) मुगल शासक बना तो इसने माधाेसिंह के द्वारा दी गई सहायता के बदले माधोसिंह को पृथक रूप से कोटा का शासक बना दिया।
  • माधोसिंह ने मुगल सेना की ओर से कई युद्ध किए तथा शाहजहाँ के काल में मुगलों को अपनी सेवाएँ प्रदान की।

महाराव मुकुंद सिंह

  • माधाेसिंह के बाद उनका पुत्र मुकुंद सिंह कोटा का शासक बना। इन्होंने मुकुंदरा का किला तथा अपनी पासवान अबली मीणी के लिए अबली-मीणी का महल बनावाया।
  • शाहजहाँ के पुत्रों के मध्य हुए उत्तराधिकार के धरमत के युद्ध (1658 ई.) में औरगंजेब के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

महाराव जगतसिंह

  • महाराव मुकुंदसिंह के बाद जगतसिंह कोटा के शासक बने। इन्हें औरंगजेब द्वारा खजुआ के युद्ध में शूजा के विरूद्ध लड़ने के लिए भेजा गया।
  • इन्हें औरंगजेब द्वारा दक्षिण भारत में बुरहानपुर तथा औरंगाबाद में नियुक्त किया गया।
  • जगतसिंह के बाद कोटा के शासक किशोरसिंह बने जिनके समय बघेरवाल जैन व्यापारी ने चाँदखेड़ी में आदिनाथ भगवान के जैन मंदिर का निर्माण करवाया।

महाराव रामसिंह

  • किशोरसिंह के बाद उनके बड़े पुत्र बिशनसिंह कोटा के शासक बने लेकिन औरंगजेब ने रामसिंह को कोटा का शासक नियुक्त किया।
  • बिशनसिंह तथा रामसिंह के मध्य आवां के निकट युद्ध हुआ जिसमें रामसिंह की विजय हुई।
  • औरंगजेब के समय इन्हें दक्षिण में नियुक्त किया गया।
  • औरंगजेब के पुत्रों में हुए उत्तराधिकारी युद्ध में रामसिंह ने आजम का साथ दिया तथा जाजव के युद्ध (धौलपुर) में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • इनके समय कोटा शहर के परकोटे का निर्माण प्रारंभ हुआ।

महाराव भीमसिंह

  • राव रामसिंह के बाद भीमसिंह कोटा के शासक बने।
  • उत्तराधिकार युद्ध मेें रामसिंह ने आजम का साथ दिया था जिस कारण नाराज बहादुरशाह ने बूंदी शासक बुद्धसिंह को कोटा को बूंदी राज्य में शामिल करने की अनुमति दी।
  • बुद्धसिंह ने कोटा पर आक्रमण किया परन्तु पराजित हुआ।
  • कोटा शासक भीमसिंह ने 1713 ई. में बूंदी पर आक्रमण कर इस पर अधिकार कर लिया।
  • 1715 ई. में उदयसिंह ने बूंदी का क्षेत्र पुन: प्राप्त किया।  
  • 1719 ई. में भीमसिंह ने पुन: बूंदी को अपने अधीन कर लिया। इन्होंने अपने नाम कृष्णदास तथा कोटा का नाम नदंगाँव रखा।
  • मुगल शासक फर्रूखशियर ने भीमसिंह को गागरोन का किला सौंपा।

महाराव दुर्जनशाल

  • इनके समय में जयपुर की सेना ने मराठों की सहायता से कोटा पर आक्रमण किया तथा बाद में 1748 ई. में इनके मध्य संधि हुई।

महाराव शत्रुशाल

  • इनके समय कोटा में झाला जालिम सिंह का प्रभुत्व बढ़ने लगा।
  • 1760 ई. में शत्रुसाल ने जयपुर शासक सवाई माधोसिंह को पराजित किया।
  • शत्रुसाल के समय कोटा मराठों की शक्ति का केन्द्र बन गया था।

महाराव गुमानसिंह

  • गुमानसिंह ने झाला जालिमसिंह को अपने राज्य से निष्कासित कर दिया था जिस कारण वह उदयपुर राज्य में चला गया।
  • गुमानसिंह ने कुछ समय बाद पुन: जालिमसिंह को अपना दीवान बनाया।

महाराव उम्मेदसिंह

  • उम्मेदसिंह के समय समस्त शासन कार्य झाला जालिमसिंह द्वारा किया जाने लगा था।
  • जालिम सिंह ने अमीर खाँ पिण्डारी को शेरगढ़ दुर्ग में रहने के लिए सुरक्षित स्थान दिया।
  • जालिम सिंह ने कोटा राज्य को मराठों तथा पिण्डारियों के आक्रमण से सुरक्षित रखा।
  • 1817 ई. में कोटा राज्य ने अंग्रेजों से सहायक संधि सम्पन्न की।
  • इस संधि में झाला जालिम सिंह ने यह शर्त जुड़वा दी कि उम्मेदसिंह व उनके वंशज कोटा के शासक होंगे तथा जालिमसिंह व उनके वंशज राज्य के प्रशासक होंगे।

किशोरसिंह II

  • उम्मेद सिंह के बाद किशोरसिंह II कोटा के शासक बने लेकिन राज्य की वास्तविक शक्ति जालिमसिंह के पास रही।
  • किशोरसिंह II राज्य शासन की वास्तविक शक्तियां अपने अधीन लेना चाहते थे जबकि जालिम सिंह इसके लिए तैयार नहीं थे।
  • 1821 में महाराव किशोरसिंह तथा झाला जालिमसिंह के मध्य मांगरोल नामक स्थान पर युद्ध हुआ।
  • मेवाड़ महाराणा भीमसिंह ने इनके बीच समझौता करवाया जिसके अनुसार महाराव के निजी कार्यों में जालिम सिंह हस्तक्षेप नहीं करेंगे तथा जालिम सिंह के राजकार्य में महाराव हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  • इनके समय जालिमसिंह ने अपने पुत्र माधोसिंह को काेटा का प्रशासक नियुक्त कर दिया।

रामसिंह II

  • रामसिंह II के समय 1833 ई. में इनके प्रशासक माधाेसिंह का देहांत हो जाने पर इनके पुत्र झाला मदनसिंह कोटा के फौजदार बने।
  • रामसिंह II तथा इनके फौजदार मदनसिंह में आपसी मतभेद होने पर कंपनी सरकार ने मदनसिंह के लिए 1838 ई. में पृथक रियासत ‘झालावाड़’ का गठन किया।
  • झालावाड़ की राजधानी झालारपाटन तथा झाला मदनसिंह को यहाँ का स्वतंत्र शासक बनाया गया।
  • झालावाड़ राजस्थान में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई आखिरी रियासत थी।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय कोटा के शासक रामसिंह II थे।

झाला जालिमसिंह (1769-1823 ई.)

  • झाला जालिम सिंह राव उम्मेदसिंह के समय कोटा का प्रशासक एवं फौजदार था।
  • इसने अपनी कुटनीति से मराठों तथा पिण्डारियों के आक्रमण से काेटा को बचाये रखा।
  • 1817 में इसने अंग्रेजों से सहायक संधि सम्पन्न की तथा इस संधि में यह शर्त जुड़वाई कि उम्मेदसिंह तथा इनके वंशज कोटा के शासक होंगे जबकि जालिमसिंह तथा इनके वंशज कोटा के प्रशासक होंगे।
  • 1762 से 1768 ई. तक जालिमसिंह उदयपुर की सेवा में रहे।
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