किशनगढ़ का इतिहास

mygkbook की पिछली पोस्ट में हमने आप को राजस्थान में बीकानेर जिले के इतिहास के बारे में जानकरी प्रदान की थी इस पोस्ट में हम आप को किशनगढ़ का इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करगे इस पोस्ट में आप किशनगढ़ में राठौड़ वंश, kishangarh ka itihas के बारे में जानकारी प्राप्त होगी

किशनगढ़ का राठौड़ वंश

  • किशनगढ़ में राठौड़ वंश की स्थापना जोधपुर शासक मोटराजा उदयसिंह के पुत्र किशनसिंह ने 1609 ई. में की। इन्होंने सेठोलाव के शासक राव दूदा को पराजित कर यहाँ अपनी स्वतंत्र जागीर की स्थापना की।
  • मुगल शासक जहाँगीर ने इन्हें महाराजा की उपाधि प्रदान की।
  • 1612 ई. में किशनसिंह ने किशनगढ़ नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
  • किशनसिंह की हत्या जोधपुर महाराजा सूरसिंह के पुत्र गजसिंह ने की।
  • किशनसिंह की छतरी अजमेर में घूघरा घाटी में स्थित है।  
  • किशनसिंह के बाद सहलमल तथा इनके बाद जगमाल सिंह किशनगढ़ के शासक बने।

    महाराजा स्वरूप सिंह

    • स्वरूपसिंह ने रूपनगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। इन्होंने बदख्शां में पठानों द्वारा किए गए विद्रोह को दबाया।
    • स्वरूपसिंह सामूगढ़ के युद्ध (1658 ई.) में औरगंजेब के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

    महाराजा मानसिंह

    • महाराजा स्वरूप सिंह के बाद मानसिंह किशनगढ़ के शासक बने।
    • इनकी बहन चारूमति का विवाह मुगल शासक औरगंजेब से तय हुआ था लेकिन मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने चारूमति से विवाह कर लिया।

    महाराजा राजसिंह

    • मानसिंह के बाद राजसिंह किशनगढ़ के शासक बने।
    • राजसिंह ने बाहुविलास तथा रसपाय नामक ग्रंथ लिखे तथा इनके काव्य गुरु महाकवि वृंद थे।
    • किशनगढ़ चित्रकला शैली के विकास में इनका विशेष योगदान रहा।

    महाराजा सावंतसिंह

    • सावंतसिंह का राज्याभिषेक दिल्ली में सम्पन्न हुआ।
    • ये किशनगढ़ के प्रसिद्ध शासक हुए जिन्होंने कृष्णभक्ति में राज-पाट त्याग दिया तथा वृंदावन चले गये।
    • इन्होंने अपना नाम नागरीदास रख दिया। इनकी प्रेयसी का नाम ‘बणी-ठणी’ था।
    • चित्रकार मोरध्वज निहालचंद ने ‘बणी-ठणी’ का चित्र बनाया जिसे भारत की मोनालिसा कहा जाता है।
    • सावंतसिंह के काल को किशनगढ़ चित्रशैली के विकास का स्वर्णकाल कहा जाता है।
    • महाराजा सावंत सिंह ने मनोरथ मंजरी, रसिक रत्नावली, बिहारी चंद्रिका तथा देहदशा आदि ग्रंथों की रचना की।
    • यहाँ के शासक सरदार सिंह के समय किशनगढ़ राज्य के दो हिस्से किए गए जिसमें रूपनगढ़ क्षेत्र सरदारसिंह को तथा किशनगढ़ क्षेत्र बहादुरसिंह को दिया गया।

    महाराजा बिड़दसिंह

    • बहादूरसिंह के निधन के बाद बिड़दसिंह किशनगढ़ के शासक बने।
    • इनके समय किशनगढ़ तथा रूपनगढ़ को पुन: एकीकृत कर एक रियासत बनाया गया।

    महाराजा कल्याणसिंह

    • कल्याणसिंह ने 1817 ई. में अंग्रेजों के साथ सहायक संधि सम्पन्न की।
    • अंग्रेजों ने किशनगढ़ से खिराज नहीं लेना स्वीकार किया।
    • कल्याणसिंह ने अपने पुत्र मौखम सिंह को राजकार्य सौंपकर स्वयं मुगल बादशाह की सेवा में दिल्ली चले गये।

    महाराजा पृथ्वीसिंह

    • महाराजा मौखम सिंह के बाद पृथ्वीसिंह शासक बने।
    • इनके समय किशनगढ़ राज्य का पहला दीवान अभयसिंह को बनाया गया।
    • 1857 के संग्राम के समय किशनगढ़ के शासक पृथ्वीसिंह थे। 

    महाराजा शार्दूलसिंह

    • महाराजा पृथ्वीसिंह के बाद उनके पुत्र शार्दुलसिंह किशनगढ़ के शासक बने।
    • इन्होंने अपने पुत्र मदनसिंह के नाम पर मदनगंज मण्डी की स्थापना की।
    • पृथ्वीसिंह के बाद मदनसिंह शासक बने जिन्होंने किशनगढ़ राज्य में फाँसी की सजा को समाप्त कर दिया।

    महाराजा सुमेरसिंह

    • सुमेरसिंह वर्ष 1939 में किशनगढ़ राज्य के शासक बने।
    • सुमेरसिंह को आधुनिक साइकिल पोलो का पिता कहा जाता था।
    • 25 मार्च,1948 को द्वितीय चरण में किशनगढ़ का विलय राजस्थान संघ में कर दिया गया।
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