इस पोस्ट में हम आप लो राजस्थान में झालावाड़ का इतिहास, jhalawar history in hindi, करौली का यादव वंश, टोंक का इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करगे।
झालावाड़, करौली, टोंक का इतिहास
- कोटा महाराव उम्मेदसिंह के समय यहाँ के प्रशासक झाला जालिमसिंह ने अंग्रेजों के साथ सम्पन्न 1817 ई. की संधि में यह शर्त जुड़वाई कि उम्मेद सिंह एवं उनके वंशज कोटा के शासक होंगे जबकि जालिमसिंह एवं उनके वंशज कोटा के प्रशासक होंगे।
- इसी शर्त के कारण कोटा महाराव तथा प्रशासकों के हितों में टकराव होने लगा। कोटा महाराव रामसिंह II के समय अंग्रेजों ने 1838 ई. में कोटा रियासत के 17 परगने लेकर झालावाड़ नामक स्वतंत्र रियासत का गठन किया तथा इसकी राजधानी झालरापाटन को बनाया।
- झालावाड़ रियासत के प्रथम स्वतंत्र शासक झाला मदनसिंह बने।
- यह राजस्थान में अंग्रेजों द्वारा स्थापित दूसरी स्वतंत्र रियासत थी। (पहली-टाेंक, 1817 ई.)
- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय झालावाड़ के शासक झाला पृथ्वीसिंह थे जिन्होंने अंग्रेजों की सहायता की।
- पृथ्वीसिंह के समय तात्या टोपे झालावाड़ आया था जिसने क्रांतिकारियों की मदद से पृथ्वीसिंह को हराकर स्वयं को झालावाड़ का शासक घोषित किया। बाद में अंग्रेजों की सहायता से पृथ्वीसिंह ने वापस सिंहासन प्राप्त किया।
झालावाड़ का इतिहास
- जालिमसिंह II के काल में कुछ समय तक अंग्रजों ने पॉलिटिकल एजेंट की कौंसिल के माध्यम से शासनकार्य किया।
- इसके पश्चात जालिमसिंह II को समस्त शासनाधिकार सौंपे गये। इनके ही समय अंग्रेजों ने झालावाड़ रियासत को दो भागों में बांट दिया तथा एक भाग को कोटा रियासत में मिला दिया गया।
- एक अन्य भाग पर फतहपुर ठाकुर के पुत्र भवानी सिंह को शासक बना दिया। यहाँ के शासक हरिश्चंद्र के समय 25 मार्च, 1948 को झालावाड़ का राजस्थान संघ में विलय कर दिया गया।
करौली का यादव वंश
- जैसलमेर के अलावा करौली में भी यादव वंश का शासन था।
- महाजनपद काल में इस रियासत का कुछ भाग मत्स्य जनपद तथा कुछ भाग सूरसेन जनपद में आता था।
- यहाँ का यादव वंश स्वयं को यदुवंशी श्रीकृष्ण का वंशज मानता है।
- 10 वीं शताब्दी में करौली में यादव वंश की स्थापना विजयपाल ने की थी। इसने विजयमंदिर गढ़ का निर्माण कर उसे अपनी राजधानी बनाया। यहाँ के शासक तिमनपाल ने तिमनगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया जिसे कुंवरपाल के समय मुहम्मद गौरी ने अपने अधीन कर लिया।
- 1348 ई. में अर्जुनपाल ने कल्याणपुर नगर बसाया। यही नगर आज करौली कहलाता है।
- मुगल शासक अकबर के समय यहाँ का शासक गोपालदास था जिसे अकबर द्वारा ‘रणजीत नक्कारा’ दिया गया।
- 1707 ई. में यहाँ के शासक धर्मपाल द्वितीय ने करौली को अपनी राजधानी बनाया।
- यहाँ के शासक गोपालदास ने करौली नगर के चारों ओर परकोटे का निर्माण करवाया। मुगल शासक मुहम्मदशाह ने इन्हें ‘माही मरातिब’ का खिताब दिया।
- मांची के युद्ध में हरबख्शपाल ने नवाब मुहम्मदशाह खाँ को पराजित किया।
- हरबख्शपाल के समय करौली राज्य ने अंग्रेजों के साथ 9 नवम्बर, 1817 को अधीनस्थ पार्थक्य की संधि सम्पन्न की। यह राजपूताने का पहली रियासत थी जिसने अंग्रेजों के साथ अधीनस्थ पार्थक्य की संधि की।
- 1857 के विद्रोह के समय यहाँ का शासक मदनपाल था जिसने कोटा महाराव को विद्रोहियों से मुक्त कराने हेतु करौली राज्य की सेना भेजी। शासक भोमपाल के समय करौली में प्रजामंडल की स्थापना हुई।
- 18 मार्च, 1948 को करौली का मत्स्य संघ में विलय हो गया। इस समय यहाँ के शासक गणेशपाल थे।
टोंक का इतिहास
- टोंक प्रारंभ में ‘टूकड़ा’ नाम से जाना जाता था।
- अकबर के शासनकाल में यह क्षेत्र मुगल साम्राज्य के अधीन था।
- मुगल शासक औरंगजेब ने यह क्षेत्र बूंदी शासक बुद्धसिंह को दिया जिस पर जयपुर के सवाई जयसिंह ने अधिकार कर लिया।
- सवाई माधोसिंह से यह क्षेत्र मल्हारराव होल्कर को प्राप्त हुआ जिस पर 1804 ई. में अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया।
- नवम्बर, 1817 ई. में अंग्रेजी सरकार तथा अमीर खाँ पिण्डारी के मध्य हुई संधि के तहत टोंक रियासत की स्थापना की गई तथा अमीर खाँ पिण्डारी को टोंक का नवाब बनाया गया।
- यह संधि चार्ल्स मेटकॉफ तथा अमीर खाँ पिण्डारी के मध्य हुई थी।
- इस रियासत में राजपूताना के तीन जिले-टोंक, अलीगढ़ (रामपुरा) व निम्बाहेड़ा तथा सेट्रंल एजेेंसी के तीन जिले- छबड़ा, पिरावा तथा सिरोंज को शामिल किया गया।
- इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा राजस्थान में एकमात्र मुस्लिम रियासत ‘टोंक’ की स्थापना की गई। अमीर खाँ पिण्डारी के संबंध में जानकारी बिसावन लाल सांदा के ग्रंथ ‘अमीरनामा’ से मिलती है।
- इसके बाद वजीर खाँ टाेंक का नवाब बना जिसके समय 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हुआ।
- टोंक के नवाब अली खाँ ने देश-विदेश के अरबी एवं फारसी भाषा के विद्वानों को बुलाकर धार्मिक-ऐतिहासिक ग्रंथों का लेखन करवाया तथा इन ग्रंथों को टाेंक के शाही निवास में रखा गया।
टोंक का इतिहास के बारे में
- राजस्थान सरकार ने वर्ष 1978 में इसे ‘अरबी फारसी शोध संस्थान’ के रूप में स्थापित किया। टोंक के नवाब ईब्राहिम अली खाँ ने टाेंक में ‘सुनहरी कोठी’ का निर्माण करवाया जो अपनी पच्चीकारी तथा मीनाकारी के लिए प्रसिद्ध है।
- इब्राहिम खाँ ने इसमें सोने की नक्काशी एवं चित्रकारी करवाई। टोंक नवाब शाहदत अली खाँ के समय सरकारी तथा गैर-सरकारी सदस्यों की ‘मजलिस-ए-आम’ का गठन किया गया। भारत की स्वतंत्रता के समय टाेंक के नवाब फारूख अली खाँ थे। 25 मार्च, 1948 को टोंक रियासत को राजस्थान संघ में विलय किया गया।