हमारी पिछली पोस्ट में हम ने आप को मेवाड़ का गुहिल वंश का इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान की थी इस पोस्ट में हम आप को राजस्थान के dungarpur ka itihas के बारे जानकरी प्रदान करगे।
वागड़ का गुहिल वंश | dungarpur palace
- डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा के सम्पूर्ण भू-भाग को वागड़ कहा जाता है।
- यहाँ प्रारंभ में परमारों तथा उनके बाद गुजरात के सोलंकियाें का शासन रहा।
- शासक क्षेमसिंह के पुत्र सामंतसिंह ने 1178 ई. के लगभग वागड़ के शासक चौरासीमल को पराजित कर यहाँ गुहिल वंश की स्थापना की।
- इसने वद्रपटक (बड़ाैदा) को राजधानी बनाया।
- साेलंकी शासक भीमसिंह द्वितीय ने सामंतसिंह को पराजित कर वागड़ पर अधिकार कर लिया।
- 1221 ई. के लगभग सामंतसिंह के वंशज जयंतसिंह ने सोलंकियों को पराजित किया तथा पुन: गुहिल वंश का शासन स्थापित किया।
- वीरसिंह ने डूंगरिया भील को पराजित कर डूंगरिया गाँव पर अधिकार कर लिया।
- वीरसिंह के पौत्र डूंगरसिंह ने डूंगरपुर शहर बसाया तथा इसे वागड़ राज्य की राजधानी बनाया। इनके वंशज प्रतापसिंह ने ‘प्रतापपुर’ कस्बा बसाया।
गोपीनाथ
- प्रतापसिंह के बाद उनका पुत्र गोपीनाथ 1424 ई. के आसपास वागड़ का शासक बना।
- इसने गुजरात शासक अहमदशाह द्वारा तोड़े गए ‘सोमनाथ मंदिर’ का जीर्णोद्वार करवाया। गोपीनाथ ने डूंगरपुर में गैबसागर झील का निर्माण करवाया।
सोमदास
- गोपीनाथ के बाद सोमदास (सोभदास) वागड़ का शासक बना।
- इसके समय मांडु सुल्तान महमूद खिलजी तथा मालवा सुल्तान ग्यासुदीन ने वागड़ पर आक्रमण कर इसे क्षति पहुँचाई।
- सोमदास के बाद गंगदास शासक बना जिसकी उपाधि ‘रायरायां महारावल ‘ मिलती है।
उदयसिंह
- उदयसिंह ने 1527 ई. के खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।
- उदयसिंह के दो पुत्र-पृथ्वीराज तथा जगमाल थे।
- उदयसिंह ने अपने जीवनकाल में ही वागड़ को दो भागों में विभाजित कर दिया।
- उदयसिंह की मृत्यु के बाद वागड़ के पश्चिमी भाग ‘डूंगरपुर‘ का शासक पृथ्वीराज तथा वागड़ के पूर्वी भाग ‘बांसवाड़ा’ का शासक जगमाल बना।
- डूंगरपुर के गुहिल महारावल पृथ्वीराज ने डूंगरपुर में गुहिल वंश के स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
- जब अकबर की सेना ने महाराणा प्रताप के विरूद्ध उदयपुर पर आक्रमण किया तब महारावल आसकरण ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की।
- आसकरण ने सोम तथा माही के संगम पर ‘बेणेश्वर शिवालय’ का निर्माण करवाया।
- महारावल सहसमल के समय की राजमाता प्रेमलदेवी ने डूंगरपुर में नौलखा बावड़ी का निर्माण करवाया।
- महारावल सहसमल के समय सूरपुर में माधवराय के विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
- महारावल पूंजा ने मुगल शासक शाहजहाँ से अच्छे संबंध स्थापित किये।
- शाहजहाँ ने इन्हें ‘माही मरातिब’ का सम्मान प्रदान किया।
- पूंजा ने पुंजपुर गाँव बसाया तथा पुंजेला झील का निर्माण करवाया।
- इन्होंने डूंगरपुर में नौलेखा बाग बनवाया तथा गैबसागर की पाल पर ‘गोवर्धन नाथ’ के विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
- महारावल रामसिंह ने मुगलों की गिरती शक्ति को देखकर पेशवा बाजीराव से संधि कर अपने राज्य काे सुरक्षित किया तथा उन्हें खिराज देना स्वीकार किया। इन्होंने ‘रामगढ़’ नामक गाँव बसाया तथा डूंगरपुर मे रामपोल दरवाजा बनवाया।
- रामसिंह ने अपने चौथे पुत्र शिवराज को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
- महारावल शिवसिंह ने व्यापारियों के लिए 55 रुपये का नया शिवसाही सेर जारी किया।
- इनके समय नये तरीके से पगड़ी बांधने का ‘शिवसाही पगड़ी’ रिवाज शुरू हुआ। इन्होंने रंगसागर तालाब तथा इनकी रानी ने फूलेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया।
- महारावल फतेहसिंह एक अयोग्य शासक था।
- इनके समय राजमाता शुभकुंवरी ने राजकार्य संभाला।
- राजमाता ने डूंगरपुर में मुरली मनोहर मंदिर का निर्माण करवाया।
dungarpur ka itihas
- महारावल जसवंत सिंह II के समय सिंध के खुदादाद खाँ ने डूंगरपुर पर आक्रमण किया था। इन्होंने 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ सहायक संधि सम्पन्न की।
- इनके समय पण्डित नारायण को डूंगरपुर का प्रशासक बनाया गया।
- महारावल जसवंतसिंह II की रानी गुमानकुंवरी ने डूंगरपुर में केला बावड़ी का निर्माण करवाया।
- अंग्रेज सरकार ने राज्य की अव्यवस्था को देखते हुए प्रतापगढ़ के महारावल सावंत सिंह के पौत्र दलपतसिंह को शासन के समस्त अधिकार सौंपे।
- ये प्रतापगढ़ के भी शासक बने तथा प्रतापगढ़ में रहकर डूंगरपुर का भी राजकार्य संभालने लगे।
history of dungarpur rajasthan
- महारावल उदयसिंह II की अल्पवयस्कता के कारण मुंशी सफदर हुसैन खाँ को इनका संरक्षक बनाया गया। इन्होंने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों की सहायता की।
- खैरवाड़ा छावनी में विद्रोह रोकने के लिए कप्तान ब्रुक की सहायता की।
- महारावल ने कन्यावध पर पाबंदी लगाई।
- महारावल ने डूंगरपुर में जनगणना का कार्य आरंभ करवाया।
- कवि किशन ने ‘उदय प्रकाश’ नामक ग्रंथ की रचना की।
- महारावल विजयसिंह ने ‘विजय पलटन’ नामक सेना तैयार की तथा जनता को कम ब्याज पर धन उपलब्ध कराने हेतु ‘राम-लक्ष्मण बैंक’ खोला। इन्होंने ‘एडवर्ड समुद्र’ तालाब तथा ‘विजय राजराजेश्वर’ नामक मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया।
- महारावल लक्ष्मणसिंह ने विजय राजराजेश्वर मंदिर का निर्माण पूर्ण करवाया।
- 25 मार्च, 1948 को इनके समय डूंगरपुर का राजस्थान संघ में विलय किया गया।