इस पोस्ट में हम आप को राजस्थान के हाड़ा वंश का इतिहास, बूंदी के हाड़ा वंश का इतिहास, हाड़ा राजपूतों की उत्पत्ति, हाड़ौती के चौहान,bundi history in hindi, बूंदी के हाड़ा चौहान वंश, हाड़ौती के चौहान वंश, के बारे में जानकारी प्रदान करगे।
bundi history in hindi
- हाड़ौती में बूंदी, कोटा, झालावाड़ एवं बारां क्षेत्र शामिल है।
- प्राचीनकाल में इस क्षेत्र पर मीणाओं का शासन था।
- बूंदी का यह नाम बूंदा मीणा के नाम पर रखा गया।
देवसिंह
- 1241 ई. के आसपास हाड़ा चौहान देवा (देवसिंह) ने मीणा शासक जैता को पराजित कर यहाँ चौहान वंश की स्थापना की।
- देवसिंह प्रारंभ में मेवाड़ स्थित बम्बावदा का सामंत था।
- देवसिंह ने गंगेश्वरी देवी का मंदिर तथा अमरथूण में एक बावड़ी का निर्माण करवाया।
- इसने अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र समरसिंह को शासक बना दिया।
राव समरसिंह
- समरसिंह ने अपने राज्य का विस्तार करते हुए कोटिया भीलों को पराजित कर कोटा को अपने अधीन किया।
- 1274 ई. में बूंदी राज्य के अंतर्गत ही कोटा बूंदी राज्य दूसरी राजधानी बना।
- अलाउद्दीन खिलजी की सेना के बम्बावदा आक्रमण के समय समरसिंह युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।
राव नापूजी
- समरसिंह के बाद नापूजी बूंदी का शासक बना।
- इसके समय मेवाड़ महाराणा क्षेत्रसिंह ने राव नापूजी के अधीन कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
- 1304 ई. में नापूजी अलाउद्दीन खिलजी के विरूद्ध युद्ध करते हुए मारा गया।
- नापूजी के बाद हल्लू बूंदी का शासक बना जो शासनकार्य अपने पुत्र वीरसिंह को सौंपकर बनारस चला गया।
राव वीरसिंह
- यह एक अयोग्य शासक था।
- इसके समय मेवाड़ महाराणा लाखा ने बूंदी के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
- गुजरात शासक अहमदशाह ने भी इससे कर वसूल किया।
- 1459 ई. में मांडू शासक महमूद खिलजी के आक्रमण के समय वीर सिंह मारा गया तथा इसके दो पुत्रों को बंदी बनाकर मांडू ले जाकर उनका धर्म परिवर्तन करा दिया गया।
- 1503 ई. के लगभग राव नारायण दास बूंदी के शासक बने तथा इन्होंने मेवाड़ के राणा सांगा से अच्छे संबंध स्थापित कर पुन: अपने खोये हुए क्षेत्र प्राप्त किए।
- नारायणदास ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था।
राव सूर्जन सिंह
- राव सूर्जन सिंह प्रतापी शासक था जिसने कोटा को पठानों के अधिकार से मुक्त करवाकर पुन: बूंदी राज्य में मिलाया।
- राव सूर्जन ने रणथंभौर दुर्ग पर अधिकार किया।
- 1569 ई. में अकबर ने रणथंभौर दुर्ग पर आक्रमण किया।
- 1569 ई. में कच्छवाहा शासक भगवन्तदास की मध्यस्थता से राव सूर्जन सिंह तथा अकबर के मध्य संधि हुई तथा राव सूर्जन ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
- अकबर ने इन्हें मनरूढ तथा गढ़ कटंगा की जागीर सौंपी जहाँ इन्होंने गोंड जाति के विद्रोह का दमन किया।
- अकबर ने इन्हें रावराजा की उपाधि तथा 5000 का मनसब प्रदान किया।
- अकबर ने इन्हें बनारस का परगना भी दिया जहाँ रहते हुए इनका 1585 ई. में देहांत हो गया।
- कवि चन्द्रशेखर ने ‘सूर्जन चरित्र’ नामक ग्रंथ की रचना की।
राव भोज (1585-1607 ई.)
- राव सूर्जन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राव भोज बूंदी का शासक बना।
- राव भोज ने गुजरात के युद्धों तथा अहमदनगर के घेरे में अकबर के साथ भाग लिया।
राव रतनसिंह (1607-1621 ई.)
- राव भोज के बाद राव रतन बूंदी के शासक बने।
- राव रतन को जहांगीर ने ‘सरबुन्दराय’ तथा ‘रामराजा’ की उपाधियाँ प्रदान की।
- जब खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर के विरूद्ध विद्राेह किया था तब राव रतनसिंह ने खुर्रम को बुरहानपुर में कैद किया था।
राव शत्रुशाल (1621-1658 ई.)
- यह राव रतनसिंह का पौत्र था।
- शाहजहाँ ने इन्हें ‘राव’ उपाधि से सम्मानित किया तथा बूंदी एवं खटकड़ की जागीर दी।
- शाहजहाँ ने इन्हें दक्षिण में नियुक्त किया जहाँ इन्होंने दौलताबाद किले को जीतने में अपनी वीरता दिखाई।
- शाहजहाँ के पुत्रों के बीच हुए उत्तराधिकारी युद्ध में शत्रुशाल औरंगजेब के विरूद्ध लड़ा तथा 1658 में अपने कई संबंधियों के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ।
राव भावसिंह (1658-1681 ई.)
- भावसिंह के विरूद्ध औरंगजेब ने आत्माराम गौड़ तथा वरसिंह के नेतृत्व में सेना भेजी जिसे खातोली नामक गाँव के पास भावसिंह ने पराजित किया।
- 1658 ई. में औरंगजेब ने भावसिंह को आगरा बुलाया तथा डंका, झण्डा तथा बूंदी की जागीर देकर सम्मानित किया।
- 1660 ई. के चाकण के घेरे के समय वह शाही सेना में मिर्जाराजा जयसिंह के साथ था।
- इसके बाद राव अनिरूद्धसिंह (1681-1695 ई.) शासक बने।
महाराव बुद्धसिंह (1695-1739 ई.)
- राव अनिरूद्धसिंह का ज्येष्ठ पुत्र बुद्धसिंह 1695 ई. में बूंदी का शासक बना।
- औरगंजेब के पुत्रों के बीच हुए उत्तराधिकार युद्ध में उन्होंने मुअज्जम का साथ दिया जो बाद में बहादुरशाह जफर के नाम से मुगल शासक बना।
- बुद्धसिंह ने नेहतरंग नामक ग्रंथ लिखा।
- बुद्धसिंह के जयपुर शासक जयसिंह के विरूद्ध अभियान पर न जाने के कारण मुगल शासक फर्रूखशियर ने बूंदी का नाम फर्रूखाबाद रखा तथा इसे कोटा शासक के अधीन कर दिया।
- 1715 ई. में बुद्धसिंह ने पुन: बूंदी का क्षेत्र प्राप्त किया।
बूंदी के हाड़ा चौहान
- 1733 ई. में जयपुर शासक जयसिंह ने बूंदी को अपने अधीन करने हेतु बुद्धसिंह के पुत्र भवानीसिंह की हत्या करवा दी तब बुद्धसिंह वहाँ से भाग निकला।
- जयसिंह ने करवर के जागीरदार सालिमसिंह के पुत्र दलेलसिंह को बूंदी का शासक नियुक्त कर दिया।
- राजस्थान में मराठों का प्रवेश सर्वप्रथम बूंदी राज्य में हुआ जब 1734 ई. में बुद्ध सिंह की कच्छवाही रानी आनंद कुंवरी ने अपने पुत्र उम्मेदसिंह को शासक बनाने के लिए मराठा सरदार मल्हराव होल्कर तथा राणोजी को आमंत्रित किया।
- होल्कर ने बूंदी पर आक्रमण कर राज्यभार उम्मेदसिंह को सौंपा। लेकिन इसके वापस लौटते ही जयसिंह ने बूंदी पर अधिकार कर दलेलसिंह को शासक बना दिया।
- 1748 ई. में बगरू के युद्ध में मराठा, कोटा, जोधपुर तथा उदयपुर की संयुक्त सेना ने जयपुर के ईश्वरी सिंह को पराजित किया तथा उम्मेदसिंह को बूंदी राज्य प्राप्त हुआ।
- 1818 ई. में बूंदी के शासक विष्णुसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से सहायक संधि सम्पन्न की।
- 25 मार्च, 1948 को बूंदी का राजस्थान में विलय हो गया।
हमारे प्यारे से एेतिहासिक गाँव करवर के बारे में कुछ अतिमहत्वपूर्ण जानकारी आपके साथ साझा कर रहा हुँ-
करवर राज्य के संस्थापक, बुन्दी नरेश राव रतन सिंह(1607-1631) के पौत्र और राव राजा शत्रुशाल(1631-1658) व महाराजा इन्द्रसाल(इन्द्रगढ़ के संस्थापक)के छोटे भाई मोहकम सिंह थे जिन्होंने करवर के पूर्व सरदारों को परास्त कर यहां अपना अधिपत्य स्थापित किया। सन् 1658 के सामूगढ़ के युद्ध में उनके साथ उनके पुत्र गुमान, जोरावर व उदय सिंह भी मारे गये थे। मोहकम सिंह के अन्य पुत्र शक्ति सिंह के युद्ध में अपनी आहुति देने से प्रश्न औरंगजेब ने उनके पुत्र दुर्जन साल हाड़ा को सन् 1695 में सोलंकी नरेश रघुनाथ सिंह को हरवा कर दुर्जन साल को आतंरदा सौंप दिया। मोहकम सिंह के बाद करवर की गद्दी पर उनका छोटी उम्र का पुत्र कनक सिंह बैठा (इन्हीं के नाम पर करवर के बडगुजरों के कुलदेवता की राड़ी के नीचे बसी मीणाओं की छोटी सी बस्ती का नाम कनकपुरा पड़ा)। बाद में कनक सिंह बूंदी सेना के सेनापति भी बने। इनके बाद वीर और साहसी राजपुरुष जोगी राम ने करवर संभाला। इनके कचौड़ी खेड़ा युद्ध में शहीद होने के बाद करवर की गद्दी पर युद्ध प्रेमी सालम सिंह बैठे। जयपुर नरेश ने बूंदी पर अधिकार कर वहां की सत्ता सालिम सिंह को संभलवा दी। सालम सिंह ने अपने बड़े पुत्र प्रताप के मना करने पर बूंदी का राज्य अपने छोटे पुत्र दलेल सिंह को सौंप दिया। सवाई जयसिंह जयपुर की पुत्री से दलेल सिंह (करवर) का विवाह हो जाने के कई वर्षों तक दलेल सिंह ने संपूर्ण बूंदी राज्य पर शासन किया। *20 वर्षों तक करवर के सालम सिंह के पुत्र दलेल सिंह ने बूंदी राज्य पर शासन किया।उसके बाद करवर राज्य का उत्तराधिकारी कृष्ण सिंह हुआ। जो कि बूंदी नरेश राव उम्मेद सिंह के दोबारा बूंदी पर काबिज होते ही करौली होता हुआ जयपुर भाग गया। तब करवर के खालसा हो जाने के बाद वहां के ठिकाने का भी पटाक्षेप हो गया। करवर दुर्ग इंद्रगढ़ नरेश देव सिंह और उनके संपूर्ण परिवार के बूंदी नरेश राव उमेद सिंह द्वारा कत्ल कर देने का गवाह है।।
आशा है कि आपको मेरे द्वारा विभिन्न स्त्रोतों से जुटायी गयी ये जानकारी पसन्द आयी होगी और रुचिकर लगी होगी।।
📝 केशव राठौर Rss
हमारे प्यारे से एेतिहासिक गाँव करवर के बारे में कुछ अतिमहत्वपूर्ण जानकारी आपके साथ साझा कर रहा हुँ-
करवर राज्य के संस्थापक, बुन्दी नरेश राव रतन सिंह(1607-1631) के पौत्र और राव राजा शत्रुशाल(1631-1658) व महाराजा इन्द्रसाल(इन्द्रगढ़ के संस्थापक)के छोटे भाई मोहकम सिंह थे जिन्होंने करवर के पूर्व सरदारों को परास्त कर यहां अपना अधिपत्य स्थापित किया। सन् 1658 के सामूगढ़ के युद्ध में उनके साथ उनके पुत्र गुमान, जोरावर व उदय सिंह भी मारे गये थे। मोहकम सिंह के अन्य पुत्र शक्ति सिंह के युद्ध में अपनी आहुति देने से प्रश्न औरंगजेब ने उनके पुत्र दुर्जन साल हाड़ा को सन् 1695 में सोलंकी नरेश रघुनाथ सिंह को हरवा कर दुर्जन साल को आतंरदा सौंप दिया। मोहकम सिंह के बाद करवर की गद्दी पर उनका छोटी उम्र का पुत्र कनक सिंह बैठा (इन्हीं के नाम पर करवर के बडगुजरों के कुलदेवता की राड़ी के नीचे बसी मीणाओं की छोटी सी बस्ती का नाम कनकपुरा पड़ा)। बाद में कनक सिंह बूंदी सेना के सेनापति भी बने। इनके बाद वीर और साहसी राजपुरुष जोगी राम ने करवर संभाला। इनके कचौड़ी खेड़ा युद्ध में शहीद होने के बाद करवर की गद्दी पर युद्ध प्रेमी सालम सिंह बैठे। जयपुर नरेश ने बूंदी पर अधिकार कर वहां की सत्ता सालिम सिंह को संभलवा दी। सालम सिंह ने अपने बड़े पुत्र प्रताप के मना करने पर बूंदी का राज्य अपने छोटे पुत्र दलेल सिंह को सौंप दिया। सवाई जयसिंह जयपुर की पुत्री से दलेल सिंह (करवर) का विवाह हो जाने के कई वर्षों तक दलेल सिंह ने संपूर्ण बूंदी राज्य पर शासन किया। *20 वर्षों तक करवर के सालम सिंह के पुत्र दलेल सिंह ने बूंदी राज्य पर शासन किया।उसके बाद करवर राज्य का उत्तराधिकारी कृष्ण सिंह हुआ। जो कि बूंदी नरेश राव उम्मेद सिंह के दोबारा बूंदी पर काबिज होते ही करौली होता हुआ जयपुर भाग गया। तब करवर के खालसा हो जाने के बाद वहां के ठिकाने का भी पटाक्षेप हो गया। करवर दुर्ग इंद्रगढ़ नरेश देव सिंह और उनके संपूर्ण परिवार के बूंदी नरेश राव उमेद सिंह द्वारा कत्ल कर देने का गवाह है।।
आशा है कि आपको मेरे द्वारा विभिन्न स्त्रोतों से जुटायी गयी ये जानकारी पसन्द आयी होगी और रुचिकर लगी होगी।।
📝 केशव राठौर (karwar)