अजमेर के चौहान वंश

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    अजमेर के चौहान वंश का इतिहास

    वासुदेव

    • शाकम्भरी के चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव को माना जाता है जिसने 551 ई. के आसपास राज्य स्थापित किया। 
    • बिजौलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण वासुदेव द्वारा करवाया गया।
    • अजयपाल ने सातवीं शताब्दी में सांभर कस्बा बसाया तथा तारागढ़ पहाड़ी पर अजयमेरु दुर्ग का निर्माण करवाया।
    • पुष्कर में वाकपति राज प्रथम के समय का अभिलेख मिला है जिसमें इसके वंशज सिंहराज द्वारा प्रतिहारों तथा तोमरों  को पराजित करने का उल्लेख मिलता है।
    • सिंहराज के भाई लक्ष्मण ने नाडोल में चौहान वंश की स्थापना की।

    विग्रहराज द्वितीय

    • विग्रहराज द्वितीय प्रारम्भिक चौहान शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली शासक माना जाता है।
    • विग्रहराज द्वितीय ने प्रतिहारों से अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की तथा चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया।
    • इसने भड़ौच तक अपना राज्य विस्तार करते हुए वहाँ अपनी कुलदेवी आशापुरा देवी के मन्दिर का निर्माण करवाया।
    • विग्रहराज द्वितीय का उत्तराधिकारी दुर्लभराज द्वितीय हुआ जिसे शक्राई अभिलेख में महाराजाधिराज कहा गया है।

    अजयराज

    • प्रमुख चौहान शासक अजयराज यह पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र था।
    • इसने 1113 ई. मे अजयमेरू (अजमेर) नगर बसाया।
    • इसी नगर को राजधानी बनाया एवं इसमें तारागढ़ नामक दुर्ग बनाया।
    • इसने दिगम्बरों व श्वेताम्बरों के मध्य शास्त्रार्थ की अध्यक्षता की थी।
    • अजयराज ने सोने व चाँदी के सिक्के चलाये जिनमें से कुछ सिक्कों पर इसकी रानी सोमलवती का नाम भी मिलता है। 
    • डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार अजयराज के शासनकाल को ही चौहानों का साम्राज्य निर्माण काल कहा जा सकता है।

    अर्णोराज

    • तुर्क आक्रमणकारियों को बुरी तरह हराया अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाया।
    • इसने चौलुक्य जयसिंह की पुत्री कांचन देवी से विवाह किया था।
    • अर्णोराज शैव मतावलम्बी था।
    • गुजरात के चालुक्य शासक कुमारपाल तथा अर्णोराज के मध्य संघर्ष हुआ।
    • प्रबंध चिन्तामणि के अनुसार अर्णोराज ने गुजरात के सामन्तों में फूट डाली तथा कुमारपाल को असमंजस की स्थिति में डाल दिया।
    • कुमारपाल ने अर्णोराज को माउण्ट आबु के निकट युद्ध में पराजित किया।
    • अर्णोराज ने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
    • इसके समय के प्रमुख विद्वानों में देवबोध तथा धर्मघोष का नाम मिलता है।
    • अर्णोराज की हत्या उनके पुत्र जगदेव के द्वारा कर दी गई।

    विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव/कवि बांधव) (1158-1163 ई.)

    • विग्रहराज चतुर्थ, जिसे बीसलदेव भी कहा जाता है शाकम्भरीअजमेर का महान् चौहान शासक था।
    • उसका शासनकाल सपादलक्ष का स्वर्णयुग माना जाता है।
    • इसने ढिल्लिका (दिल्ली) के तोमर शासक को हराकर अपने अधीन सामन्त बना लिया।
    • उसने संस्कृत भाषा मे ‘हरिकेली’ नामक नाटक की रचना की।
    • हरिकेली नामक नाटक की विषय वस्तु में अर्जुन व शिव के मध्य युद्ध का वर्णन है।
    • नरपति नाल्ह द्वारा रचित ग्रंथ ‘बीसलदेव रासो’ में रानी राजमती के कहने पर बीसलदेव द्वारा उड़ीसा के राजा से हीरे लाने का प्रसंग का सौन्दर्यात्मक वर्णन किया है।
    • यह एक श्रेष्ठ शृंगार काव्य है।
    • समकालीन लोग इसे ‘कवि बान्धव’ नाम से पुकारते थे।
    • सोमदेव बीसलदेव का दरबारी कवि था, जिसने ‘ललित विग्रहराज’ ग्रंथ की रचना की।
    • उसने अजमेर मे संस्कृत विद्यालय की स्थापना की जिसे बाद मे कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़कर कर ‘ढाई दिन का झोपड़ा‘ बनवा दिया।
    • उसने बीसलपुर नामक कस्बे व झील का निर्माण करवाया। इसने एकादशी के दिन पशु वध पर प्रतिबंध लगाया।

    पृथ्वीराज तृतीय (राय पिथौरा) (1177-1192 ई.) | prithviraj chauhan

    • चौहान वंश का अन्तिम शक्तिशाली शासक पृथ्वीराज तृतीय था जिसका जन्म 1166 ई. में हुआ।
    • इसके पिता का नाम सोमेश्वर तथा माता का नाम कर्पूरीदेवी था।
    • कर्पूरीदेवी दिल्ली शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री थी।
    • अपने पिता की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज तृतीय अजमेर के शासक बने।
    • इस समय उसका सुयोग्य प्रधानमंत्री कदम्बवास/कैमास था।
    • पृथ्वीराज तृतीय ने अपनी योग्यता व वीरता से शासन के समस्त अधिकार अपने हाथ में लिये तथा अपने आस-पास के शत्रुओं को समाप्त करते हुए ‘दलपुंगल (विश्व विजेता)’ की उपाधि धारण की।

    पृथ्वीराज तृतीय के प्रमुख सैनिक अभियान

    • पृथ्वीराज के शासन संभालने के बाद उसके चाचा अपरगांग्य ने शासन प्राप्ति हेतु विद्रोह किया जिसे परास्त कर उसकी हत्या कर दी गई।
    • शासन प्राप्ति के लिए पृथ्वीराज के चचेरे भाई नागार्जुन ने विद्रोह किया अत: पृथ्वीराज ने अपने मंत्री कैमास की सहायता से नागार्जुन को पराजित कर गुडापुरा तथा उसके आस-पास के क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिये।

    भण्डानकों का दमन

    • भरतपुर-मथुरा क्षेत्र के आस-पास में रहने वाले भण्डानकों ने विद्रोह किया।
    • 1182 ई. में पृथ्वीराज ने इनके विद्रोह का दमन किया जिसका उल्लेख जिनपति सूरि ने किया है।

    महोबा के चन्देलों पर विजय

    • 1182 ई. में महोबा के चन्देल शासक परमार्दिदेव को पृथ्वीराज ने युद्ध में पराजित किया।
    • इस युद्ध में परमार्दिदेव के विश्वस्त सेनानायक आल्हा व ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए।
    • पृथ्वीराज ने महोबा का क्षेत्र अपने राज्य में मिला लिया तथा पन्जुनराय को महोबा का अधिकारी बनाया।

    चालुक्यों पर विजय

    • 1884 ई. के आसपास पृथ्वीराज तृतीय तथा गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय के प्रधानमंत्री जगदेव प्रतिहार के मध्य युद्ध हुआ जिसके बाद दोनों में संधि हो गई।

    तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.)

    • पृथ्वीराज तृतीय के समय मुहम्मद गौरी गजनी का गवर्नर था।
    • तराइन का प्रथम युद्ध पृथ्वीराज तृतीय तथा मुहम्मद गौरी के मध्य 1191 ई. में हुआ जिसमें मुहम्मद गौरी पराजित हुआ।
    • इस युद्ध में दिल्ली के गोविन्द राज ने मुहम्मद गौरी को घायल कर दिया जिसके बाद गौरी युद्ध के मैदान को छोड़कर गजनी की ओर चला गया।
    • पृथ्वीराज ने इस विजय के बाद भागती हुई गौरी की सेना का पीछा नहीं किया तथा गौरी को जाने दिया जो की इतिहास में उसकी सबसे बड़ी भूल मानी जाती है।     

    तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.)

    • तराइन का द्वितीय युद्ध पृथ्वीराज तृतीय तथा मुहम्मद गौरी के मध्य 1192 ई. में हुआ जिसमें पृथ्वीराज तृतीय पराजित हुआ।
    • इस युद्ध में पृथ्वीराज के साथ मेवाड़ शासक समरसिंह तथा दिल्ली के गोविन्दराज थे।
    • हसन निजामी ने अपनी पुस्तक में गौरी द्वारा पृथ्वीराज के पास संधि हेतु दूत भिजवाने तथा अपनी अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव भेजने का उल्लेख किया है।
    • इस युद्ध के बाद अजमेर तथा दिल्ली पर गौरी का अधिकार हो गया।
    • गौरी ने अजमेर का शासन कर के बदले पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को सौंप दिया।
    • तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक घटना है जिसके बाद भारत में स्थाई मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हुई।
    • मुहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक बना।
    • तराइन के दोनों युद्धों का उल्लेख पृथ्वीराज रासो, तबकात-ए-नासिरी तथा ताजुल मासिर में मिलता है।
    • पृथ्वीराज तृतीय को भारत का अन्तिम हिन्दू सम्राट तथा रायपिथोरा के नाम से जाना जाता है।
    • पृथ्वीराज के दरबार में चन्द्रबरदाई, जनार्दन, जयानक, वागीश्वर, विद्यापति गौड़ तथा पृथ्वीभट्‌ट जैसे विद्वानों को आश्रय प्राप्त था।
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