इस पोस्ट में हम आप वैदिक संस्कृति के बारे में बतायगे जिसमे आप को वैदिक संस्कृति क्या है
वैदिक संस्कृति
वैदिक संस्कृति विकास, vaidik sanskriti, वैदिक काल का सामाजिक जीवन, आर्य के लक्षण, वैदिक शब्द का अर्थ, धर्म क्या है वेद के अनुसार, वैदिक काल शिक्षा, के बारे में विस्तार से जानकारी दी जायगी।
भारत में आर्य़ों का आगमन
आर्य समाज का इतिहास आर्य सभ्यता आर्य शब्द जाति का सूचक न होकर भाषा का सूचक है। अथर्ववेद का पृथ्वी सूक्त वैदिककालीन राष्ट्रगीत है।
वैदिक शब्द का अर्थ वेद शब्द ‘विद्’ धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है जानना या ज्ञान।भारत में आर्य़ों के आगमन की मान्य तिथि 1500 ई.पू. लगभग है।
वैदिक काल
वैदिक काल को दो भागों में विभाजित किया गया है- ऋग्वैदिक युग (1500 से 1000 ई.पू.) और उत्तरवैदिक काल (1000-600 ई.पू.)।
आर्य समाज का इतिहास क्या आर्य भारत के मूल निवासी थे ? आर्य किस प्रदेश के मूल निवासी थे यह इतिहासकारों के बीच एक विवादास्पद प्रश्न है। वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्थ कराने के कारण वेदों को श्रुति की संज्ञा दी गयी है।
ऋग्वेद
ऋग्वेद देवताओं की स्तुति से संबंधित रचनाओं का संग्रह है। ऋग्वेद में कितने मंडल है ऋग्वेद मण्डल 10 में विभक्त है। इसमें 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम (वंश मंडल) माने जाते हैं। प्रथम एवं दशम मंडल बाद में जोड़े गये हैं। इसमें कुल 1028 सूक्त हैं। इसकी भाषा पद्यात्मक है।
यजुर्वेद
यजुर्वेद का क्या अर्थ है ? यजु का अर्थ होता है यज्ञ। यजुर्वेद में यज्ञ विधियों का वर्णन किया गया है। यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक तथा गद्यात्मक दोनों है।
सामवेद
- सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिये गये मंत्रों को गाने योग्य बनाने के उद्देश्य से की गयी थी।
- सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
अथर्ववेद
- अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी।
- इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जादू, टोनों आदि की जानकारी दी गयी है।
- इसे अनार्यों की कृति मानी जाती है।
- आरण्यक ग्रंथों की रचना जंगलों में ऋषियों द्वारा की गयी थी।
- उपनिषद् प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
- ‘सत्यमेव जयते‘ मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
- वेदांग और सूत्र साहित्य वेदांगों की संख्या छः है
- शिक्षा, व्याकरण, कल्प, निरूक्त, छन्द, ज्योतिष
- सूत्र साहित्य वैदिक साहित्य का अंग न होने के बावजूद उसे समझने में सहायक है।
ऋग्वैदिक काल
- इस काल की सम्पूर्ण जानकारी हमें ऋग्वेद से मिलती है।
- ऋग्वेद में आर्य निवास के लिए सर्वत्र सप्त सैंधव शब्द का प्रयोग हुआ है।
- आर्यों का भौगोलिक विस्तार पंजाब, अफगानिस्तान, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश या यमुना नदी के पश्चिम भाग तक था।
- प्रसिद्ध दस राजाओं का युद्ध दाशराज युद्ध किस नदी के तट पर लड़ा गया दाशराज्ञ युद्ध परुष्णी (रावी) नदी के किनारे हुआ था।
ऋग्वैदिक काल की राजनीतिक दशा
- ऋग्वैदिक काल में राजतंत्र का प्रचलन था परन्तु राजा का पद दैवीय नहीं माना जाता था।
- कबीलाई सभा द्वारा राजा को चुने जाने की सूचना मिलती है।
- सभा, समिति व विदथ का ऋग्वेद में उल्लेख है।
- सभा श्रेठ जनों की संस्था थी जबकि समिति आम जन – प्रतिनिधि सभा थी जिसमें जन के समस्त लोग सम्मिलित होते थे।
- इस काल में कोई नियमित कर व्यवस्था नहीं थी।
ऋग्वैदिक काल की सामाजिक दशा
- ऋग्वैदिक समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार थी। कई परिवार मिलकर ग्राम तथा कई ग्राम मिलकर ‘विश’ एवं कई विश मिलकर जन का निर्माण करते थे।
- पितृसत्तात्मक परिवार वैदिकालीन सामाजिक जीवन का केन्द्र बिन्दु था।
- प्रारम्भ में इस काल का समाज वर्गविभेद से रहित था।
- ऋग्वेद में वर्ण शब्द कहीं – कहीं रंग तथा कहीं – कहीं व्यवसाय के रूप में प्रयुक्त हुआ है।
- ऋग्वेद के दशम मंडल के ‘पुरुष सूक्त‘ के अनुसार ब्राह्मण की उत्पत्ति मुख से, क्षत्रिय की बाहू से, वैश्य की जांघ से तथा शूद्र की पैरों से हुई बताई गयी।
- स्त्रियां सभा और समिति में भाग लेती थीं।
- विधवा विवाह, नियोग प्रथा, अंतर्जातीय विवाह, बहुपत्नीत्व, बहुपतित्व प्रथा का प्रचलन था।
- बाल विवाह, सती प्रथा तथा पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।
- ऋग्वेद काल में दास प्रथा विद्यमान थी।
ऋग्वैदिक काल की आर्थिक दशा
- ऋग्वेद काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था।
- ऋग्वेद सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
- इस काल के लोग लोहे से अपरिचित थे।
- कृषि कार्यों की जानकारी लोगों को थी।
ऋग्वैदिक काल का धार्मिक जीवन
- ऋग्वेद आर्य बहुदेववादी होते हुए भी ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे।
- इस काल में लोगों ने प्राकृतिक शक्ति का मानवीयकरण कर पूजा की।
- ऋग्वैदिक आर्यों की देवमंडली तीन भागों में विभाजित थी।
- ऋग्वेद काल में इन्द्र सबसे प्रमुख देवता था। यह युद्ध, बादल एवं वर्षा का देवता था। इसे पुंदर कहा गया है।
- बोगजकोई अभिलेख में वैदिक देवता इन्द्र, मित्र, वरुण और नासत्य का उल्लेख है।
- सोम वनस्पति का देवता था।
उत्तर वैदिक काल
जिस काल में यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, आरण्यक तथा उपनिषद् की रचना हुई उसे उत्तरवैदिक काल (1000-600 ई.पू.) कहते हैं। इस काल में आर्यों की भौगोलिक सीमा का विस्तार गंगा के पूर्व में हुआ। सप्तसैंधव प्रदेश से आगे बढ़ते हुए आर्यों ने सम्पूर्ण गंगा घाटी पर प्रभुत्व जमा लिया। परन्तु इनका विस्तार विन्धय के दक्षिण में नहीं हो पाया था।
उत्तर वैदिक काल का राजनीतिक जीवन
- कई कबीलों ने मिलकर राष्ट्रों या जनपदों का निर्माण किया।
- इस काल में राष्ट्र शब्द प्रदेश का सूचक था।
- उत्तर वैदिक काल में शासन तंत्र का आधार राजतंत्र था।
- क्षेत्रीय राज्यों के उदय होने से अब ‘राजन’ शब्द का प्रयोग किसी क्षेत्र विशेष के प्रधान के लिए किया जाने लगा।
- राजा का मुख्य कार्य सैनिक और न्याय संबंधी होते थे।
- शतपथ ब्राह्मण में 12 प्रकार के रत्निनों का विवरण दिया गया है।
- प्रशासनिक संस्थायें सभा और समिति का अस्तित्व तो था परन्तु इनके पास पहले जैसे अधिकार नहीं रह गये थे। स्त्रियों का अब सभा, समिति में प्रवेश निषिद्ध हो गया था।
- इस काल के अंत तक बलि और शुल्क के रूप में नियमित कर देना लगभग अनिवार्य हो गया था।
उत्तर वैदिक काल की सामाजिक स्थिति
- सामाजिक स्थिति संयुक्त एवं पितृसत्तात्मक परिवार की प्रथा इस काल में भी बनी रही।
- समाज वर्णव्यवस्था पर आधारित था तथा वर्ण अब जाति का रूप लेने लगा था।
- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीनों वर्णों को द्विज कहा जाता था।
- उत्तरवैदिक काल में नारियों की स्थिति में ऋग्वेदकाल की अपेक्षा गिरावट आयी।
- स्त्रियां सभा और समिति जैसी राजनीतिक संस्थाओं में भाग नहीं ले सकती थी।
- वृहदारण्यक उपनिषद् जनक की सभा में गार्गी और याज्ञवल्क्य के बीच वाद विवाद का उल्लेख करता है।
- चारों आश्रमों की व्यवस्था की जानकारी जाबालोपनिषद् से मिलती है।
- मनुस्मृति के अनुसार विवाह के आठ प्रकार थे।
- स्मृतिकारों ने 16 संस्कारों की संख्या बतायी है।
उत्तर वैदिक काल की आर्थिक स्थिति
- कृषि तथा विभिन्न शिल्पों के विकास के कारण जीवन स्थाई हो गया हालांकि पशुपालन अभी भी व्यापक पैमाने पर जारी था परन्तु अब खेती उनका मुख्य धंधा बन गया।
- अथर्ववेद के अनुसार पृथुवैन्य ने सर्वप्रथम हल और कृषि को जन्म दिया।
- लोहे का उपयोग पहले शस्त्र निर्माण तथा बाद में कृषि यंत्रों के निर्माण में किया गया।
- शतपथ ब्राह्मण में कृषि की चारों क्रियाओं – जुताई, बुवाई, कटाई एवं मड़ाई का उल्लेख हुआ है।
- गाय, बैल, घोड़ा, हाथी, भैंस, बकरी, गधा, ऊंट, सूअर आदि मुख्य पशु थे।
- कपास का उल्लेख नहीं हुआ है इसके जगह उर्णा (ऊन) शब्द का उल्लेख कई बार आया है।
- आर्य लोग तांबे के अतिरिक्त सोना, चांदी, सीसा, टिन, पीतल, रांगा आदि धातुओं से परिचित हो चुके थे।
- व्यावसायिक संगठन के लिए ऐतरेय ब्राह्मण में ‘श्रेष्ठी’ तथा वाजसनेयी संहिता में ‘गण’ एवं ‘गणपति’ शब्द का उल्लेख हुआ हैं।
- वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित था।
उत्तर वैदिक काल की धार्मिक स्थिति
- उत्तर वैदिक काल में यज्ञ अनुष्ठान एवं कर्मकांडीय गतिविधायों में वृद्धि हुई।
- लोगों को पंच महायज्ञ करने के भी धार्मिक आदेश थे-ब्रह्म यज्ञ – अध्ययन एवं अध्यापन।
- देव यज्ञ – होम कर देवताओं की स्तुति।
- पितृ यज्ञ – पितरों को तर्पण करना।
- मनुष्य यज्ञ – अतिथि सत्कार तथा मनुष्य के कल्याण की कामना
- भूत यज्ञ – जीवधारियों का पालन।
- तीन ऋण थे – देव ऋण (देवताओं तथा भौतिक शक्तियों के प्रति दायित्व), ऋषि ऋण और पितृ ऋण (पूर्वजों के प्रति दायित्व)।
- उत्तर वैदिक काल में ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव प्रमुख देवता हो गए।
- इन्द्र, अग्नि, वरुण तथा अन्य ऋग्वैदिक देवताओं का महत्व कम गया।
- उत्तरवैदिक काल के अंतिम दौर में यज्ञ, पशु बलि तथा कर्मकांड के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया हुई।
- वृहदारण्यक उपनिषद में पहली बार पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गयी।