भारत में किसान आंदोलन
नील विद्रोह का वर्णन ’दीनबन्धु‘ मित्र ने अपनी पुस्तक नीलदर्पण में किया है। इस आन्दोलन की शुरुआत दिगम्बर व विष्णु विश्वास ने की। 1858 ई. से 1860 ई. तक चला यह आन्दोलन अंग्रेज भूमिपतियों के विरुद्ध किया गया।
बंगाल में नील कृषकों की हड़ताल
कम्पनी के कुछ अवकाश प्राप्त अधिकारी बंगाल तथा बिहार के जमींदारों से भूमि प्राप्त कर नील की खेती करवाते थे। वे किसानों पर अत्याचार करते थे। अप्रैल, 1860 मे पाबना और नादिया जिलों के समस्त कृषकों ने भारतीय इतिहास की प्रथम कृषक हड़ताल की।
चम्पारन सत्याग्रह
उत्तर भारत के चम्पारन (बिहार) जिले यूरोपीय नील उत्पादक बिहारी नील कृषकों का शोषण करते थे। गाँधी जी ने वर्ष 1917 में बाबू राजेन्द्र प्रसाद की सहायता से कृषकों को अहिंसात्मक असहयोग करने की प्रेरणा दी और सत्याग्रह किया।
खेड़ा (केरा) आन्दोलन
यह आन्दोलन मुख्यतः बम्बई सरकार के विरुद्ध था। वर्ष 1918 में सूखे के कारण फसलें नष्ट हो गई, जिससे कृषक कर देने में असमर्थ थे। परन्तु सरकार बिना किसी छूट से भू-कर पूरा वसूलना चाहती थी। फलस्वरुप किसानों ने गाँधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह किया, जो जून, 1918 तक चलता रहा।
बंगाल का तेभागा आन्दोलन, दक्कन का तेलगांना आन्दोलन पश्चिमी भारत में वर्ली विद्रोह आदि।