स्थलाकृति – केन्द्रीय विस्फोट द्वारा निर्मित स्थलरूप

स्थलाकृति- केन्द्रीय विस्फोट द्वारा निर्मित स्थलरूप

  • ऊँचे उठे भाग
  • नीचे धंसे भाग
  • दूसरी उद्गार द्वारा निर्मित स्थलरूप
  • लावा पठार तथा लावा गुम्बद

लावा मैदानआभ्यान्तरिक स्थलाकृति

  • आन्तरिक लावा गुम्बद
  • लोपोलिथ
  • बैकोलिथ
  • सिल
  • लैकोलिथ
  • डाइक
  • फैकोलिथ
  • स्टाक

बाह्य स्थलाकृतियाँ

शंकु – जब विखण्डित पदार्थ एक शंकु के रूप में जमा होते हैं तो उसे ज्वालामुखी शंकु कहते हैं।

ये निम्न प्रकार के होते हैं-

  • राख शंकु / सिंडर शंकु – जब विखण्डित पदार्थों में राख की मात्रा अधिक तथा लावा की मात्रा कम होती है।
  • लावा शंकु – क्षारीय लावा शंकु – लावा पतला क्षेत्रीय विस्तार अधिक तथा ऊँचाई कम होती है।
  • अम्लीय लावा शंकु / पैठिक लावा शंकु – लावा गाढ़ा एवं चिपचिपा क्षेत्रीय विस्तार कम तथा ऊँचाई अधिक है।

ज्वालामुखी से संबंधित शब्दावली

कॉल्डेरा क्रेटर का विस्तृत रूप कॉल्डेरा कहलाता है। क्रेटर एवं काल्डेरा में जल के भर जाने से यह झील में परिवर्तित हो जाता है।

इंडोनेशिया की टोबा, अमेरिका की ओरोगन, राजस्थान की पुष्कर, महाराष्ट्र की लोनार आदि कॉल्डेरा झील के उदाहरण हैं।

ऐरा कॉल्डेरा जापान में एवं वेलिस कॉल्डेरा अमेरिका में स्थित हैं।

सोल्फतारा जब ज्वालामुखी से राख, लावा आदि का निकलना बंद हो जाता है एवं उसके बाद भी लंबे समय तक उससे विभिन्न प्रकार की गैसें तथा वाष्प निकलती रहती हैं तो यह अवस्था सोल्फतारा कहलाती है।

धुआँरे (गंधकीय धुआँ) का विस्तृत क्षेत्र अलास्का में कटमई ज्वालामुखी के समीप स्थित है, जिसे ‘दस हजार धुआँरे की घाटी’ कहा जाता है।

गेसर धुआँरे गर्म जल का एक ऐसा प्राकृतिक स्रोत जिससे समय-समय पर गर्म जल तथा जलवाष्प फव्वारे के रूप में निकलता रहता है गेसर कहलाता है।

अमेरिका (येलोस्टोन पार्क), आइसलैंड (ग्रेंड गेसर) एवं न्यूजीलैंड में गेसर के उदाहरण देखने को मिलते हैं।

गर्म झरना एक ऐसा झरना जिससे गर्म जल निरंतर निकलता रहता है गर्म झरना कहलाता है।

गर्म झरना मुख्यतः ज्वालामुखी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। भारत में मुंगेर, जगीर, हजारीबाग में भी ये पाए जाते हैं।

जहाँ ज्वालामुखी का नामोनिशान नहीं पाया जाता है। इसका कारण चट्टानों में रेडियो सक्रिय पदार्थ़ों की उपस्थिति है।

विश्व में सर्वाधिक ज्वालामुखी (लगभग दो-तिहाई) परि-प्रशांत पेटी में पाए जाते हैं, जिसे प्रशांत महासागर की अग्नि शृंखला भी कहा जाता है।

ये ज्वालामुखी प्लेटों के अभिसरण क्षेत्र में स्थित हैं।

चिली का एकांकागुआ मेक्सिको का पापोकैटपेटल, जापान का फ्यूजीयामा, अमेरिका का शास्ता, रेनियर एवं हुड, फिलीपींस का मेयॉन तथा माउंट ताल आदि इस पेटी के प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत हैं।

परिप्रशांत पेटी के अलावा ज्वालामुखी पर्वत मुख्यतः हिमालय को छोड़कर शेष नवीन मोड़दार पर्वतों, सागरों के मध्यवर्ती भाग एवं भ्रंश घाटियों में पाए जाते हैं।

स्ट्राम्बोली, विसुवियस, एटना, देमबन्द, कोह सुल्तान, एलबुर्ज (काकेशस), अरारात (अर्मीनिया), क्राकातोआ आदि ज्वालामुखी पर्वत मध्य महाद्वीपीय पेटी में स्थित हैं, जिसका विस्तार केनारी द्वीप के निकट से लेकर इंडोनेशिया तक है।

अफ्रीका के कीनिया एवं किलिमंजारो जैसे ज्वालामुखी पर्वत दरार घाटी में स्थित हैं।

आइसलैंड, एजोर्स, सेंट हेलेना आदि अटलांटिक महासागर के मध्य महासागरीय कटक पर स्थित हैं।

हवाई द्वीप के ज्वालामुखी प्लेट के मध्यवर्ती भाग में स्थित हैं, जिनकी उत्पत्ति का कारण गर्म स्थल (Hot Spot) हैं।

भारत में ज्वालामुखी क्रिया के प्राचीनतम प्रमाण झारखंड के डालमा क्षेत्र में पाए जाते हैं।

जुरैसिक काल में राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र एवं क्रिटेशस काल में दक्कन के पठार पर ज्वालामुखी क्रिया काफी वृहत पैमाने पर हुई। 

Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!