इस पोस्ट में हम आप को भारत में सांस्कृतिक आन्दोलन ( bharat me sanskritik andolan )के बारे में विस्तार से बतायगे। इस में आप को सूफी आन्दोलन ( bhakti andolan ), भक्ति आन्दोलन ( sufi andolan ) के बारे में जानकारी प्रदान करगे।
- भक्ति एवं सूफी 10वीं शताब्दी के बाद परम्परागत रूढ़िवादी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए इस्लाम तथा हिन्दू धर्म में दो महत्वपूर्ण रहस्यवादी आन्दोलनों- सूफी एवं भक्ति आन्दोलन का उदय हुआ।
- इन आन्दोलनों ने व्यापक आध्यात्मिकता एवं अद्वैतवाद पर बल दिया, साथ ही निरर्थक कर्मकांड, आडम्बर तथा कट्टरपंथ के स्थान पर प्रेम, उदारता एवं गहन भक्ति को अपना आदर्श बनाया।
सूफी आन्दोलन
- भारत में सूफी आन्दोलन का प्रारम्भ दिल्ली सल्तनत की स्थापना से पूर्व ही हो चुका था।
- अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में 14 सिलसिले का उल्लेख किया है।
चिश्ती सिलसिला
- चिश्ती सिलसिले की स्थापना भारत में ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती ने की थी, जो 1192 में मुहम्मद गोरी के साथ भारत आये थे।
- मुइनुद्दीन चिश्ती कुछ समय तक लाहोर और दिल्ली में रहने के बाद अजमेर में जा बसे।
- शेख मुइनुद्दीन के शिष्य थे बख्तियार काकी तथा उनके शिष्य हुए फरीद-उद्दीन-गज-ए-शंकर।निजामुद्दीन औलिया बाबा फरीद के शिष्य थे।
- औलिया ने दिल्ली सल्तनत के सात सुल्तानों का काल देखा।
- बाबा फरीद की रचनाएं गुरुग्रन्थ साहिब में शामिल है।
- निजामुद्दीन औलिया ने योग प्राणायाम पद्धति अपनायी तथा योगी सिद्ध कहलाये।
- औलिया को सुल्तान-उल-औलिया भी कहा गया है।
- 1325 में जब गयासुद्दीन तुगलक बंगाल अभियान से लौट रहा था तो उसने शेख औलिया को दिल्ली खाली करने को कहा।
- इसी समय शेख औलिया ने ‘दिल्ली अभी दूर है’ वचन कहा।
- शेख सलीम चिश्ती निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था।
- शेख सलीम फतेहपुर सीकरी में रहते थे।
- दक्षिण भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की शुरुआत 1340 में शेख बुरहानुद्दीन गरीब ने की। इन्होंने दौलताबाद को अपना केन्द्र बनाया।
सुहरावर्दी सिलसिला
- इस सिलसिले की स्थापना शेख शिहाबुद्दीन उमर सुहरावर्दी ने की लेकिन 1262 में इसके सुदृढ़ संचालन का श्रेय शेख बहाउद्दीन जकारिया को है जिन्होंने मुल्तान तथा सिन्ध को अपना केन्द्र बनाया।
- इस सिलसिले के अन्य प्रमुख सन्त थे-जलालुद्दीन तबरीजी सैयद जोश, बुरहान आदि।
- यह सम्प्रदाय चिश्ती सम्प्रदाय से भिन्न है। इसने राज्य संरक्षण स्वीकार किया, भौतिक जीवन का पूर्ण परित्याग नहीं किया तथा जागीर एवं नकद राशि के रूप में राज्य से अनुदान प्राप्त किया।
कादिरी सिलसिला
- इसका संस्थापक बगदाद का शेख कादिर जिलानी था।
- भारत में इस सिलसिले के प्रसार का श्रेय नियामत उल्ला एवं मखदूम जिलानी को है।
- इसके अनुयायी गाना गाने के विरोधी थे।
- दारा शिकोह कादिरी सिलसिले के शेख मुल्लाशाह बदख्शी का शिष्य था।
नक्शबंदी सिलसिला
- इसकी स्थापना ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंद ने की।
- भारत में इस सिलसिले की स्थापना ख्वाजा बाकी विल्लाह ने की।
- बाकी विल्लाह के शिष्यों में अकबर का समकालीन शेख अहमद सरहिन्दी था जो इस्लाम धर्म के सुधारक के रूप में जाना जाता है।
शत्तारी सिलसिला
- इसकी स्थापना भारत में शेख अब्दुल सत्तार ने की।
- ग्वालियर के शाह मुहम्मद गौस इसके प्रमुख सूफी थे।
- गौस हुमायूं के समकालीन थे।
- रोशनिया आन्दोलन के संस्थापक मियां बायजीद अंसारी थे।
- कश्मीर के ऋषि आन्दोलन के संस्थापक शेख नुर-उद्दीन ऋषि थे।
- महदवी आन्दोलन के प्रणेता जौनपुर के सैयद मुहमद थे।
भक्ति आन्दोलन
- सूफी आन्दोलनों की अपेक्षा भक्ति आन्दोलन अधिक प्राचीन है।
- दक्षिण भारत में भक्ति की अवधारणा को शंकर के अद्वैतवाद तथा अलवार एवं नयनार संतों ने मजबूती प्रदान की।
- मुख्य रूप से यह एकेश्वरवादी पंथ था जिसमें मुक्ति के लिए ईश्वर की कृपा पर बल दिया गया।
- यह समतावादी आन्दोलन था। इसमें कर्मकाण्डों की निंदा की गयी। जनसाधारण की भाषा में उपदेश दिया गया। इसमें सगुण एवं निर्गुण दोनों भक्त थे
रामानुजाचार्य
- इन्होंने विशिष्ट अद्वैतवाद दर्शन को प्रचलित कर सगुण भक्ति पर बल दिया।
- मूर्तिपूजा एवं अस्पृश्यता का विरोध करते हुए राम को विष्णु का अवतार माना।
- इन्होंने श्रीसम्प्रदाय की स्थापना की।
- निम्बकाचार्य ने द्वैत-अद्वैत दर्शन की व्याख्या की।
- निम्बकाचार्य ने कृष्ण तथा राधा की उपासना पर बल देते हुए सनक सम्प्रदाय की स्थापना की।
माधावाचार्य
- इन्होंने द्वैतवाद दर्शन की व्याख्या की।
- इनके अनुसार ज्ञान से भक्ति तथा भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- रामानुजाचार्य – विशिष्ट अद्वैतवाद,
- मध्वाचार्य – द्वैतवाद,
- विष्णुस्वामी – शुद्ध अद्वैतवाद,
- निम्बकाचार्य – द्वेत-अद्वैतवाद, सनक सम्प्रदाय,
- वल्लभाचार्य – शुद्ध अद्वैतवाद, पुष्टिमार्ग,
- श्रीकंठ – शैव विशिष्ट अद्वैतवाद,
- भास्कराचार्य – भेदाभेदभाव,
- शंकराचार्य – अद्वैतवाद,
- तुकाराम – वरकरी सम्प्रदाय,
- रामदास – धारकरी सम्प्रदाय,
रामानन्द
- रामानन्द भक्ति आन्दोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाये।
- उन्होंने हिन्दी भाषा में उपदेश दिया।
- रामानंद भगवान राम को इष्टदेव मानते थे।
कबीर
- कबीर, सिकन्दर लोदी के समकालीन थे।
- वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे।
- वे एकेश्वरवादी थे तथा संत रहते हुए गृहस्थ जीवन का निर्वाह किया।
- इनकी रचनाएं हैं-सबद, साखी, रमैनी आदि।
- इनकी शिक्षाएँ बीजक में संग्रहीत है।
गुरुनानक (1469-1538)
- सिक्ख धर्म के संस्थापक। जन्म तलवंडी (पाकिस्तान) में, हिन्दू-मुस्लिम एकता, ईश्वर भक्ति तथा सच्चरित्रता पर बल।
- सूफी संत बाबा फरीद से प्रभावित थे।
- इनके उपदेश गुरुग्रंथ साहब में संग्रहित है।
चैतन्य (1486-1533)
- जन्म बंगाल के नदिया में, सगुणमार्गी भक्ति का अनुसरण करते हुए कृष्ण को अपना इष्टदेव माना।
- चैतन्य महाप्रभु ने गोसाई संघ की स्थापना की तथा संकीर्तन प्रथा को जन्म दिया। इनके दार्शनिक सिद्धान्त को ’अचिंत्य भेदाभेदवाद’ के नाम से जाना जाता है।
रैदास
- निर्गुण ब्रह्म के उपासक, रामानन्द के 12 शिष्यों में से एक।
- रैदासी सम्प्रदाय की स्थापना की।
मीराबाई (1499-1546)
- मेड़ता के रत्नसिंह राठौड़ की पुत्री तथा राणा सांगा के पुत्र भोजराज की पत्नी थीं।
- मीराबाई की भक्ति माधुर्य भाव की थी।
- कृष्ण भक्ति पति के रूप में।
- सूफी संत रबिया से तुलना की जाती है।
दादू दयाल (1544-1603)
- निर्गुण भक्ति पर बल दिया तथा ईश्वर की व्यापकता एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा सद्गुरु की महिमा का प्रसार।
- राजस्थान का कबीर।
वल्लभाचार्य (1498-1531)
- इन्होंने पुष्टिमार्ग दर्शन का प्रतिपादन किया।
- जगतगुरु की उपाधि धारण की।
- गृहस्थ जीवन में रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
- विजयनगर शासक कृष्णदेवराय का संरक्षण मिला।
ज्ञानेश्वर (1275-1296)
- महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन के प्रवर्तक थे।
नामदेव (1270-1350)
- सगुण ब्रह्म के उपासक थे।
तुकाराम
- वरकरी सम्प्रदाय की स्थापना की।
- वे शिवाजी के समकालीन थे।
- महाराष्ट्र में पंढरपुर स्थित बिठोबा मंदिर (विष्णु) मुख्य केन्द्र था।
सूरदास
- सूरदास (16-17वीं शताब्दी) :वे भगवान कृष्ण तथा राधा के भक्त थे।
- इन्होंने ब्रजभाषा में उपदेश दिया।
- सूरसारावली, सूरसागर तथा साहित्यलहरी प्रसिद्ध ग्रन्थ है।
तुलसीदास
- वे राम को ईश्वर का अवतार मानते थे।
- रामचरितमानस, गीतावली, विनयपत्रिका आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
- वे अकबर व जहाँगीर के समकालीन थे।
शंकरदेव (1449-1568)
- शंकरदेव (1449-1568) :इन्होंने असम में एक शरण सम्प्रदाय की स्थापना की।
- कृष्ण की पूजा मूर्ति के रूप में करते थे।
- असम के चैतन्य के रूप में प्रसिद्ध है।
- उनका धर्म महापुरुषीय धर्म के रूप में जाना जाता है।
नरसिंह मेहता
- नरसिंह मेहता (15वीं शताब्दी) गुजरात के प्रसिद्ध संत जिन्होंने राधा-कृष्ण के प्रेम का चित्रण गुजराती गीतों के माध्यम से किया है।
- सूरतसंग्राम में इनके गीत संकलित हैं।
- गांधीजी के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेनो कहिए,…..’ के भी रचयिता हैं।