मालवा के परमार व कश्मीर का इतिहास

इस वंश का संस्थापक उपेन्द्र था व प्रथम महत्वपूर्ण राजा सीयक द्वितीय था।परमार वंश की शक्ति का वास्तविक उदय सीयक के पुत्र वाक्पति मुंज (972 से 994ई.) के समय हुआ।उसने धारा में मुंज सागर झील का निर्माण करवाया।

मालवा के परमार

मुंज एक प्रतिभावान कवि व विद्वानों का संरक्षक था। ‘नवसाहसांक चरित’ के लेखक ‘पद्यगुप्त’ ‘दशरूपक’ के लेखक धनजंय, दशोरूपावलोक तथा काल निर्णय के लेखक धनिक हलायुध रहते थे।

मुंज की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई सिन्धुराज (994 से 1010ई.) शासक बना।नवसाहसांक चरित में इसी की जीवनी है।

भोज (1010 से 1055 ई.) इस वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा हुआ। उसने कल्यणी व अन्हिलवाड़ के चालुक्यों को पराजित किया किन्तु चन्देल शासक विद्याधर से पराजित हुआ।

भोज के अंतिम समय में कलचुरि नरेश लक्ष्मीकर्ण और गुजरात के चालुक्य नरेश भील प्रथम ने संघ बनाकर उसे पराजित किया व धारा नगरी को लूटा। भोज की इसी अभियान के समय मृत्यु हो गई।

भोज अपनी विद्वता के कारण कविराज (उदयपुर प्रशस्ति) की उपाधि से भी जाना जाता था। उसके विविध विषयों पर अनेक ग्रंथ लिखे। जिनमें व्यहारमंजरी, चंपुरामायण, अवनिकुमार, कोदण्ड काव्य, तत्व प्रकाश, आयुर्वेद सर्वस्व, स्थापत्य शास्त्र पर समरांगण सूत्रधार आदि प्रमुख हैं।

इसके अतिरिक्त भोज की अन्य प्रसिद्ध पुस्तके सरस्वतीकंठाभरण, विद्याविनोद, राजमार्तण्ड, युक्ति कल्य तरू, सिद्धांत संग्रह, योग सूत्र वृति, चारूचर्चा, आदित्य प्रताप सिद्धान्त, राजमृगांक, व्यवहार समुच्चय, शब्दानुशासन, नाममालिका है।

भोज परमार की मृत्यु पर यह कहावत प्रचलित हो गई “अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती” भोज ने भोजपुर नामक नगर बसाया तथा भोजसर नामक तालाब भी बनवाया।

भोज ने धारा में भोजशाला नामक संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कर उसमें वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की। वाग्देवी की प्रतिमा जो, ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रतीक चिह्न है, वह भोज द्वारा स्थापति वाग्देवी की प्रतिमा से ली गई है।

कश्मीर का इतिहास

कश्मीर में कार्कोट उत्पल व लोहार वंश में शासन किया। कल्हण की राजतंरगिणी से कश्मीर के इतिास पर प्रकाश पड़ता है द्वितीय राजतंरगिणी के लेखक जोनराज है।

कार्कोट वंश

  • सातवीं शताब्दी में दुर्लभवर्धन (596-632ई.) नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की। दुर्लभवर्धन ने हर्षवर्धन को बुद्ध के दाँत के अवशेष भेंट कर मित्रता की।
  • लालितादित्य मुक्तापीड़ (724 से 760ई. )इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था, उसने 733ई में कन्नौज के शासक यशोवर्मन को पराजित किया

उत्पल वंश

  • कार्कोट वंश के बाद इस वंश की स्थापना अवन्ति वर्मन (855 से 883ई.) में की अवन्तिवर्मन ने अपने योग्य मंत्री सुया (खूया) की मदद से नहरे बनाकर कृषि का विकास किया, झेलम नदी का मार्ग परिवर्तित कर दिया तथा सुया के नाम पर सूर्यपुर (वर्तमान सोपोर)नामक नगर बसाया।
  • अवन्तिवर्मन के बाद उत्तराधिकार युद्ध में शंकर वर्मन (883 से 902 ई.) विजय हुआ।
  • शंकर वर्मन की विधवा सुंगधा ने 914ई. तक शासन किया।
  • क्षेमगुप्त 950ई. में शासक बना तथा उसका विवाह लोहार वंश की दिद्दा से हुआ। दिद्दा ने 980 से 1003ई. तक शासन किया, इससे पहले दिद्दा ने 958 से 980ई. तक अपने अल्प वयस्क पुत्र अभिमन्यु की संरक्षिका के रूप में शासन किया।
  • दिद्दा कश्मीर व भारतीय इतिहास की प्रसिद्ध महिला शासिका थी। उसने सिक्कों पर भी अपना नाम चलवाया

भारत पर अरबी आक्रमण

लोहार वंश

दिद्दा ने अपने भतीजे लोहार वंश के संग्राम सिंह (1003 से 1028 ई.)  को अपना उत्तराधिकार नियुक्त किया।
इस वंश का अन्य महत्वपूर्ण राजा हर्ष (1089 से 1101ई.)था। कल्हण उसका आश्रित कवि था यह विरोधाभासी चरित्र का व्यक्ति था। विद्वान होने के साथ-साथ यह क्रूर भी था। अत: उसे कश्मीर का नीरो भी कहा जाता है।

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