दक्षिण-पूर्व एशिया के मसाला बाजारों में सीधा प्रवेश प्राप्त करना ही डचों का महत्वपूर्ण उद्देश्य था। डच लोग हालैण्ड के निवासी थे। भारत में ‘डच ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1602 ई. में की गई।
भारत में डचों का आगमन
1596 ई. में भारत में आने वाला प्रथम डच नागरिक कारनोलिस डेडस्तमान था।
10 मार्च 1602 ई. की एक राजकीय घोषणा के आधार पर “युनाईटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी ऑफ द नीदरलैण्ड की स्थापना की गई।
भारत में डचों की महत्वपूर्ण कोठियाँ
डचों ने भारत में अपना पहला कारखाना 1605 ई. में मछलीपट्टम में खोला। मछलीपट्टम से डच लोग नील का निर्यात करते थे। डच लोग भारत में मुख्यतः मसालों , नील, कच्चे रेशम, शीशा, चावल व अफीम का व्यापार करते थे।
डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों को अधिक महत्त्व दिया। यह कपड़े कोरोमण्डल तट, बंगाल और गुजरात से निर्यात किए जाते थे।
डचों का भारत में अन्तिम रूप से पतन 1759 ई. में अंग्रेजों एवं डचों के मध्य हुए ‘बेदारा के युद्ध’ में हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व क्लाइव ने किया था।
डचों के पतन के कारणों में अंग्रजों की तुलना में नौ-शक्ति का कमजोर होना, मसालों के द्वीपों पर अधिक ध्यान देना, बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति, अत्यधिक केन्द्रीयकरण की नीति आदि को गिना जाता है।