भारत के पर्वत – अरावली, सतपुड़ा और पूर्वी घाट की पहाड़ियां प्राचीन मोड़दार पर्वतों के घर्षित अवशेष हैं। अरावली और बुंदेलखंड के बीच के नाइस क्षेत्र काफी घिस चुके हैं।
भारत के पर्वत एवं पहाड़िया
विंघ्य और सतपुड़ा के बीच नर्मदा और ताप्ती द्रोणियां प्रसिद्ध भ्रंश घाटियां है। दक्षिणी पठार अत्यन्त पुरानी कड़ी और रवेदार परिवर्तित चट्टानों से निर्मित है।
मध्यवर्ती पश्चिमी भाग लावा प्रदेश है, जहां विखंडन के चलते रेगुर या काली मिट्टी मिलती है। पठार के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर संकरे मैदान कच्छ से लेकर उड़ीसा तक फैले हुए हैं।
पूर्वी तट पर नदियों के पूर्व विकसित डेल्टा पाये जाने के कारण तटीय मैदान अधिक चौड़े हो गये हैं। दक्षिणी पठार पर पहाड़ों की जो शृंखला पायी जाती हैं, वो इस प्रकार हैं –
अरावली पर्वतमाला
- यह उत्तर-पश्चिम में है और अवशिष्ट पर्वतमाला का उदाहरण है।
- यह विच्छिन्न पहाड़ियों की शृंखला के रूप में गुजरात से दिल्ली तक विस्तृत है।
- इसकी मुख्य पहाड़ियां राजस्थान में स्थित हैं।
- इसकी अधिकतम ऊंचाई आबू पहाड़ी के गुरु शिखर की है।
- अरावली के पश्चिम में थार मरुस्थल है, जहां कठोर अपरदित चट्टानें और अर्द्धचन्द्रकार बालुकास्तूप मिलते हैं।
- थार मरुस्थल लगभग ढाई लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है।
- अरावली के पूर्व में चम्बल नदी की प्रसिद्ध बीहड़ घाटी मिलती है, जो मालवा पठार से होकर गुजरती है।
विंध्य पर्वतमाला
- इसकी श्रेणी मालवा के दक्षिण से आरम्भ होती है और उत्तरी भारत को दक्षिणी भारत से अलग करती है।
- प्राचीन युग की परतदार चट्टानों से बनी इस श्रेणी में रक्त चट्टानें प्रधान रूप से मिलती हैं।
- यह पश्चिम से पूर्व की ओर भारनेर, कैमूर तथा पारसनाथ पहाड़ियों के रूप में बिहार तक विस्तृत है।
सतपुड़ा श्रेणी
- यह श्रेणी विंध्याचल के दक्षिण में है और उसके समानान्तर है।
- इसमें पाये जानेवाले सात मोड़ों का सम्बन्ध इसके सात उत्थानों से बताया जाता है।
- सतपुड़ा पश्चिम में राजपीपला पहाड़ियों से आरम्भ होकर महादेव और मैकाल पहाड़ियों के रुप में छोटानागपुर पठार की पश्चिमी सीमा तक विस्तृत है।
- सतपुड़ा का सबसे ऊंचा भाग महादेव पहाड़ी है जिस पर पंचमढ़ी नगर स्थित है।
- सोन और नर्मदा नदियों का उद्गम यहीं है।
- मैकाल से पूरब बढ़ने पर छोटानागपुर और राजमहल की पहाड़ियां और उससे भी पूरब मेघालय की पहाड़ियां (गारो, खांसी और जयन्तियां) मिलती हैं।
- ये सभी दक्षिणी पठार के अंग हैं।
- छोटानागपुर स्थित रांची का पठार समतलप्राय मैदान का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- मेघालय (जिसे शिलांग पठार भी कहते हैं) छोटानागपुर पठार का अग्रभाग है।
- यह भारत का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थल है।
भारत के घाट– पश्चिमी घाट
- यह अरब सागर के समानान्तर है।
- ताप्ती के मुहाने से लेकर कुमारी अन्तरीप तक 1500 किमी. में विस्तृत पश्चिमी घाट की औसत ऊंचाई 900-1200 मी. है।
- पश्चिमी घाट की महाराष्ट्र में उच्चतम् चोटी कालसुबाई (1,646 मी) हरिश्चन्द्र श्रेणी में स्थित है।
- यह वास्तविक पर्वत श्रेणी नहीं हैं, बल्कि दक्षिणी पठार का अपरदित खड़ा कगार या किनारा है।
- ताप्ती से 160 उत्तरी अक्षांश तक इस पर बैसाल्ट लावा का प्रवाह मिलता है।
- 160 उत्तर से दक्षिणी नीलगिरी तक इसमें ग्रैनाइट और नाइस चट्टानें मिलती है।
- पश्चिमी घाट में थालघाट, भोरघाट और पालघाट तीन दर्रे मिलते हैं-
- पालघाट – केरल को तमिलनाडु, कर्नाटक से जोड़ती है।
- थालघाट – इससे मुंबई-कोलकाता मार्ग गुजरता है।
- भोरघाट – इससे मुंबई-पूना एवं दक्षिण को मार्ग जाता है।
- लावा-भाग में महाबलेश्वर और दक्षिणी लावारहित भाग में ऊटी स्थित है।
- नीलगिरि के दक्षिण अनयमलय (अन्नामलाई) की पहाड़ियां हैं जिनकी सबसे अधिक ऊंचाई 2695 मी. (अन्नाईमुड्डी के रूप में) है।
- नीलगिरि की अधिकतम ऊंचाई 2637 मी. (दोदाबेटा शिखर के रूप में) है।
- अनयमुदी के निकट ही पालनी और इलायची पहाड़ियां (कार्डेमम हिल) हैं।
- पश्चिमी घाट में ही शरावती नदी का गरसोप्पा जलप्रपात मिलता है, जो भारत में सर्वोच्च है।
- इस घाट के उत्तरी भाग को कोंकण और दक्षिणी भाग को मालाबार कहते हैं।
पूर्वी घाट
- पूर्वी घाट न तो शृंखलाबद्ध है और न इसकी ऊंचाई ही अधिक है।
- इसका उत्तरी भाग उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में हैं, जहां महेन्द्रगिरि (1501 मी.) सबसे ऊंचा शिखर है।
- उत्तरी-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ते हुए यह नीलगिरी में मिल गया है।
- उत्तरी खंड में उत्तरी पहाड़ी, मध्यखंड में कुडप्पा पहाड़ी और दक्षिणी खंड में तमिलनाडु पहाड़ी के नाम से पुकारी जानेवाली इन पहाड़ियों की ऊंचाई सामान्यतः 600 मी. है।
- पूर्वी घाट में रेतीले जमावों द्वारा घिरी चिल्का और पुलीकट छिछली (Lagoon) झीलें बन गयी हैं।
- इस संपूर्ण तट को कारोमंडल तट कहते हैं।
- उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार या गोलकुंडा, मध्यवर्ती भाग को काकीनाड़ा का तट और दक्षिणी भाग को कोरोमंडल तट कहते हैं।