भारत के तटीय मैदान

तटीय मैदान – पूर्वी-पश्चिमी तटीय मैदान

  • इन मैदानी का निर्माण नदियों द्वारा लाये गये अवसादों व समुद्री तरंगों द्वारा तटवर्ती भागों के अपक्षयन व अपरदन से निर्मित अवसादों के निक्षेपण से हुआ है।
  • पूर्वी व पश्चिमी तटीय मैदानों में कुछ मूलभूत अंतर है

पश्चिमी तटीय मैदान

पश्चिमी घाट के पश्चिमी भागों में संकीर्ण तटीय मैदान है। पश्चिमी घाट से सैकड़ों नदियां निकलकर अरब सागर में गिरती है और ढाल अधिक होने तथा कम दूरी में बहने के कारण यह अवसादों को भी अल्प मात्रा में ही बहा कर ले जाती है। इसीलिये इन मैदानों की चौड़ाई काफी कम है।

पश्चिमी तटीय मैदान काठियावाड़ से लेकर कन्याकुमारी तक विकसित है। गुजरात के क्षेत्र में इसे गुजरात मैदान, काठियावाड़ तट, सौराष्ट्र तट के नाम से जाना जाता है।

मुम्बई से गोवा तक क्षेत्र में इसे कोंकण तट कहा जाता है। जबकि गोवा से मंगलौर एवं मंगलौर से कन्याकुमारी के तटीय भाग क्रमशः कन्नड़ तट, मालाबार तट के नाम से जाने जाते हैं। पश्चिमी तटीय मैदानों की सर्वाधिक चौड़ी नर्मदा ताप्ती के मुहाने पर मिलती है। जहां 80 कि.मी. चौड़ा है जबकि सबसे संकीर्ण भाग कन्नड़ तट का क्षेत्र है।

मालाबार तट पर पश्च जलों व लैगूनों की अधिकता है।

  • इसमें बेम्बानद व अष्टमुदी झील (केरल) विशेष महत्वपूर्ण है।
  • पश्चिमी तटीय मैदान में सामान्यतः नदियों के द्वारा लाये गये अवसादों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है परंतु कच्छ या काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्री निक्षेपों की प्रधानता है।
  • इसके अलावा यहां ज्वालामुखी बेसाल्टिक लावा के अपक्षयन से प्राप्त रेगुर मिट्टी का निर्माण हुआ है।
  • पश्चिमी तटीय मैदान अधिक कटे छटे हैं।
  • जिससे यहां प्राकृतिक पोताश्रयों का बेहतर विकास हो सकता है। क्योंकि यहां प्राकृतिक खाड़ियों की अधिकता से पश्चिमी तटीय मैदान द. पश्चिमी मानसून पवनों के द्वारा भारी वर्षा प्राप्त करते हैं। इस प्रकार ये अधिक वर्षा के क्षेत्र हैं।

पूर्वी तटीय मैदान

  • ये अपेक्षाकृत अधिक चौड़े मैदान हैं।
  • बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली प्रायद्वीप नदियां अपेक्षाकृत लम्बी है तथा कम ढाल से प्रवाहित होते हुए समुद्र में गिरती है।
  • इन नदियों ने डेल्टाओं का निर्माण किया।

महानदी डेल्टा, कृष्णा-गोदावरी डेल्टा, कावेरी डेल्टा आदि क्षेत्रों में भारी अवसादों का जमाव हुआ।

  • इस प्रकार डेल्टाई भाग में पूर्व तटीय मैदान अधिक चौड़ाई रखता है।
  • इन मैदानों में नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ों को मुख्य भूमिका रही है।
  • पूर्वी तटीय मैदान सुन्दर वन के डेल्टाई क्षेत्र से लेकर कन्याकुमारी तक विकसित है।
  • कृष्णा गोदावरी के उत्तरी भाग में उड़ीसा इसे कलिंग तट, उत्कल तट या आंध्र तटवर्ती क्षेत्र में उत्तरी सरकार तट के नाम से जाना जाता है।
  • जबकि कृष्णा डेल्टाई क्षेत्र से कन्याकुमारी तक का तटीय मैदान कोरोमण्डल तट कहलाता है।
  • सामान्यतः पूर्वी तटीय मैदान कम कटे-छटे हैं तथा यहां प्राकृतिक खाड़ियों की कमी है।
  • इसीलिए यहां प्राकृतिक पोताश्रयों का विकास भी ठीक से नहीं हो सका है।
  • दक्षिणी पश्चिमी मानसून पवनों से वर्षा इस तटीय भाग को प्रायः नहीं के बराबर मिलती है, यहां वर्षा की मुख्य मात्रा लौटते हुए उत्तरी पूर्वी मानसून से सर्दियों में प्राप्त होती है।
  • पूर्वी तटीय मैदान अपनी प्राकृतिक उर्वरता के लिए विख्यात है।
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