कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
कोपेन ने जलवायु प्रदेशों को निर्धारित करने में निम्न बातों को आधार माना है- (i) वार्षिक एवं मासिक तापांतर (ii) वर्षा की मात्रा (iii) स्थानीय वनस्पति (iv) अंग्रेजी अक्षरों का प्रयोग
इन्होंने भारत को उष्ण कटिबंधीय व महाद्वीपीय भागों में बांटने के लिए प्रायद्वीपीय भारत की उत्तरी सीमा को आधार माना है।
उन्होंने जलवायु के पांच प्रकार माने हैं जिनके नाम हैं- (i) उष्ण कटि. जलवायु (ii) शुष्क जलवायु-शुष्कता कम होने पर यह अर्द्ध शुष्क मरूस्थल (S) व शुष्कता अधिक हो तो यह मरूस्थल (W) होता है। (iii) गर्म जलवायु (180C to 30C) (iv) हिम जलवायु (100C to 30C) (v) बर्फीली जलवायु (100C से कम गर्म महीने में भी)
Amw – मालाबार व कोंकण तट पर विस्तार, ग्रीष्म ऋतु में वर्षा 200 Cm. से अधिक होती है तथा शीत ऋतु शुष्क होती है। उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन मिलते हैं।
Aw – उष्ण कटिबंधीय सवाना प्रकार की जलवायु, वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है तथा शीत ऋतु शुष्क होती है, गर्मियाँ काफी गर्म, प्रायद्वीपीय भारत के अधिकांश भाग पर विस्तार मिलता है।
As – Aw की सभी विशेषताएँ मिलती है लेकिन अंतर केवल इतना ही है कि यहाँ पर ग्रीष्मकाल की अपेक्षा शीतकाल में वर्षा अधिक होती है।
BShw – अर्द्ध मरूस्थलीय शुष्क जलवायु पाई जाती है। वर्षा ग्रीष्मकाल में, शीत ऋतु शुष्क, वार्षिक तापमान का औसत 180C से अधिक रहता है। राजस्थान, कर्नाटक व हरियाणा में विस्तृत।
Bwhw – शुष्क उष्ण मरूस्थलीय जलवायु जो कि राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर व बाड़मेर जिलों में, वर्षा बहुत कम होती है, तापमान सदैव ऊँचा रहता है।
Dfc – शीतोष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु होती है जिसमें वर्षा सभी ऋतुओं में, शीतकाल में तापमान 100C के आसपास, ग्रीष्मकाल छोटा किन्तु वर्षा वाला होता है, सिक्किम, अरूणाचल व असम के कुछ भागों में।
Cwg – यह समशीतोष्ण आर्द्र जलवायु होती है जिसमें शीतकाल शुष्क व ग्रीष्मकाल वर्षा वाला होता है तथा काफी गर्म रहता है, इसका विस्तार U.P. के मैदानी व पठारी भाग, पूर्वी राजस्थान, उत्तरी M.P., बिहार व असम पर मिलता है।
E – यह धुवीय प्रकार की जलवायु है जहाँ सबसे गर्म माह का तापमान 100C से कम रहता है इसका विस्तार J&K, H.P., उत्तराखण्ड में मिलता है।
जलवायु से सम्बन्धित कुछ अन्य तथ्य
मानसून गर्त (Monsoon Trough) : मई के अंत में उत्तर भारत में अत्यधिक गर्मी तथा कर्क रेखा पर सूर्य के लम्बवत होने के कारण बने निम्न वायुदाब के क्षेत्र से वायुमण्डल में बना गर्त अगाध क्षेत्र कहलाता है।
मानसून का फटना (Brust of Monsoon) : जून के प्रारम्भ में जब सम्पूर्ण उत्तरी भारत में अत्यधिक न्यून वायुदाब का क्षेत्र उपस्थित होता है, तब हिंद महासागर की ओर से दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा अचानक केरल तट पर गरज एवं चमक के साथ होने वाली वर्षा को मानसून का फटना कहते हैं।
अलनिनो सिद्धांत : अलनिनो सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी मौसम वैज्ञानिक सर गिलवर्ट वाकर ने किया था।
- यह सिद्धान्त मानसून उत्पत्ति से कहीं अधिक मानसून प्रभाव में सूखे की स्थिति का वर्णन करता है।
- इस सिद्धांत के अनुसार मानसून का संबंध पेरू तट पर उत्पन्न होने वाली गर्म अलनिनो जलधारा से है।
- प्रशांत महासागर में विषुवत रेखा के पास प्रवाहित पछुआ पवनों की तीव्रता कमजोर पड़ जाने पर गर्म दक्षिण प्रशान्त जलधारा का विस्तार दक्षिण-पूर्वी प्रशांत में प्रवाहित ठंडी पेरू धारा तक हो जाता है, फलतः पूर्वी और मध्य प्रशांत असमान रूप से गर्म हो जाता है और अलनिनो जलधारा की उत्पत्ति होती है। अलनिनो परिघटना 5 से 10 वर्ष के अंतराल पर पूर्वी और मध्य द.प्रशान्त महासागर में देखा जाता है।