भारतीय वर्षा के स्वरूप – पर्वतीय वर्षा
भारतीय वर्षा के स्वरूप – भारत में मानसून से प्राप्त होने वाली वर्षा का महत्वपूर्ण भाग पर्वतीय वर्षा के रुप में होता है। हिमालय और पश्चिमी घाट के सभी क्षेत्रों में पवनों के ऊंचे उठने के कारण उनके ठण्डे हो जाने से वर्षा हो जाती है। इस प्रकार की पर्वतीय वर्षा पवनमुखी ढालों पर सबसे अधिक होती है। उदाहरणार्थ पश्चिमी तट पर स्थित मंगलौर में 330 सेमी. वर्षा होती है, जबकि बंगलौर में केवल 86 सेमी. और तमिलनाडू के पूर्वी तट पर 38 सेमी. होती है। इसी प्रकार चेरापूंजी के पास मासेनराम गांव में विश्व में सर्वाधिक वर्षा 1,392 सेमी. से भी अधिक वर्षा होती है।
भारतीय वर्षा के स्वरूप – चक्रवातीय वर्षा
भारत में पूर्वी एवं पश्चिमी तट पर मानसून के प्रारम्भ तथा अन्त में उष्ण चक्रवात से एवं उत्तर-पश्चिमी भारत में शीतकाल में शीतोष्ण चक्रवात से वर्षा होती है।
भारतीय वर्षा के स्वरूप – संवहनीय वर्षा
यह अधिकतर वसंत या ग्रीष्म ऋतु में होती है। गर्मी द्वारा वायु में संवहनीय धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं जिससे वे ऊपर उठकर ठण्डी हो जाती हैं और स्थानीय रुप से कहीं-कहीं पर वर्षा कर देती हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत में मई में इसी कारण ओलावृष्टि भी हो जाती है।