भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1876 ई. में स्थापित इण्डियन एशोसियेशन (सुरेन्द्र नाथ बनर्जी द्वारा) को भारत का कांग्रेस से पूर्व प्रथम महत्वपूर्ण राजनीतिक संगठन माना जाता है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का श्रेय एक सेवानिवृत्त अंग्रेज प्रशासक ए.ओ.ह्यूम को दिया जाता है। तथा तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन के सहयोग से दिसम्बर, 1885 में बम्बई के सर गोकुल दास तेजपाल भवन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता डब्ल्यू.सी. बनर्जी ने की तथा इसमें 72 प्रतिनिधि शासन थे। सचिव ए.ओ. ह्यूम थे।

कांग्रेस के अधिवेशन

          सन्        स्थान        अध्यक्ष
1885        बम्बई        व्योमेश चन्द्र बनर्जी
        1886        कलकत्ता        दादाभाई नौरोजी
        1887        मद्रास        बदरूद्दीन तैयबजी
        1888        इलाहाबाद        जार्ज यूले
        1889        बम्बई        विलियम वेडरबर्न
        1890        कलकत्ता        फिरोजशाह मेहता
        1891        नागपुर        वी. आनन्द चार्लू
        1892        इलाहाबाद        व्योमेश चन्द्र बनर्जी
        1893        लाहौर        दादाभाई नौरोजी
        1894        मद्रास        अल्फ्रेड वेव
        1895        पूना        सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
        1896        कलकत्ता        रहीमतुल्ला सायानी
        1897        अमरावती        शंकरन नायर
        1898        मद्रास        आनन्द मोहन बसु
        1899        लखनऊ        रमेशचन्द्र दत्त
        1900        लाहौर        नारायण गणेश चंदावरकर
        1901        कलकत्ता        दिनशा इदुलची वाचा
        1902        अहमदाबाद        सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
        1903        मद्रास        लाल मोहन घोष
        1904        बम्बई        सर हेनरी कॉटन
        1905        बनारस        गोपाल कृष्ण गोखले
        1906        कलकत्ता        दादाभाई नौरोजी
        1907        सूरत (स्थागित)        रास बिहारी घोष
        1908        मद्रास        रास बिहारी घोष
        1909        लाहौर        मदन मोहन मालवीय
        1910        इलाहाबाद        विलियम वेडर बर्न
        1911        कलकत्ता        विशन नारायण दत्त
        1912        बांकीपुर        रंगनाथ नृसिंह मुधोलकर
        1913        करांची        नवाब सैयद मुहम्मद बहादुर
        1914        मद्रास        भूपेन्द्र नाथ बसु
        1915        बम्बई        सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा
        1916        लखनऊ        अम्बिका चरण मजूमदार
        1917        कलकत्ता        ऐनी बेसेंट
        1918        बम्बई        सैयद इमाम हसन
        1918        दिल्ली        मदन मोहन मालवीय
        1919        अमृतसर        मोती लाल नेहरू
        1920        नागपुर        चक्रवर्ती विजय राघवाचार्य
        1920        कलकत्ता        लाला लाजपत राय
        1921        अहमदाबाद        अजमल खाँ
        1922        गया        चितरंजन दास
        1923        काकोनाड़ा        मोहम्म्द अली
        1923        दिल्ली        अबुल कलाम आजाद
        1924        बेलगाँव        महात्मा गाँधी
        1925        कानपुर        सरोजनी नायडू
        1926        गुवाहाटी        श्रीनिवास अयंगर
        1927        मद्रास        डॉ. अन्सारी
        1928        कलकत्ता        मोती लाल नेहरू
        1929        लाहौर        जवाहर लाल
        1931        कराँची        सरदार पटेल
        1932        दिल्ली        रणछोड़मल अमृतलाल
        1933        कलकत्ता        नैल्ली सेन गुप्ता
        1934        बम्बई        राजेन्द्र प्रसाद
        1936        लखनऊ        जवाहर लाल नेहरू
        1937        फैजपुर        जवाहर लाल नेहरू
        1938        हरिपुरा        सुभाषचन्द्र बोस
        1939        त्रिपुरा        सुभाषचन्द्र बोस
        1940        रामगढ़        अबुल कलाम आजाद
        1946        मेरठ        जे. बी. कृपलानी
कांग्रेस के अधिवेशन

उदारवादी चरण (1885-1905 ई.)

इस चरण में कांग्रेस की मुख्य भूमिका भारतीय राजनीतिज्ञों को एकता व प्रशिक्षण के लिए एक मंच प्रदान करने के रूप में थी।

इस युग में कांग्रेस पर दादाभाई नौरोजी, फिरोज शाह मेहता, दिनशा वाचा, व्योमेश चन्द्र बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले आदि लोगों का वर्चस्व था।

प्रमुख उपलब्धियां :- जनता में राष्ट्रीयता की भावना जगायी, लोकतंत्र एवं राष्ट्रवाद की भावना को लोकप्रियता, ब्रिटिश साम्राज्यवाद शोषक चरित्र का खुलासा, राष्ट्रीय स्तर पर समान राजनीतिक आर्थिक कार्यक्रम, इंडियन कौंसिल एक्ट 1892 पारित आदि।

अनुदारवादी चरण (1905-1919 ई.)

इस चरण के मध्य कांग्रेस में नए लोगों का प्रवेश हुआ, जिसमें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, अरविंद घोष तथा लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे। इन्होंने सरकार के समक्ष स्वराज्य की मांग रखी।

उनका मत था, कि भारतीयों को मुक्ति स्वयं अपने प्रयासों से प्राप्त करनी होगी। नरमपंथियों की इस मान्यता को भारत अंग्रेजों के कृपापूर्ण मार्गदर्शन और नियंत्रण में ही प्रगति कर सकता है मानने से इंकार कर दिया।

सूरत अधिवेशन (1907 ई.)

1907 ई. में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस नरमपंथी और गरमपंथी दो अलग-अलग गुटों में विभक्त हो गया।

बंगाल विभाजन (1905 ई.)

वायसराय लार्ड कर्जन ने देशभक्ति के उफनते सैलाब को रोकने के लिए राष्ट्रीय गतिविधियों के केन्द्र बंगाल को 20 जुलाई, 1905 ई. को दो प्रान्तों पश्चिम बंगाल (बिहार, उड़ीसा) व पूर्वी बंगाल में विभाजन का निर्णय लिया।

स्वदेशी तथा बहिष्कार आन्दोलन (1905 ई.)

इस आन्दोलन के दौरान लोगों ने सामूहिक रूप से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया। विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। लोगों ने विदेशी पदवियों आदि का त्याग कर दिया।

कड़े विरोध के कारण 1911 ई. में सरकार को बग-भंग का आदेश वापस लेना पड़ा। यह निर्णय जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार (1911 ई.) में लिया गया, जो 1912 ई. में लागू हो गया।

मुस्लिम लीग (1906 ई.)

30 दिसम्बर, 1906 को ढ़ाका में भारतीय मुसलमानों में अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी लाने के उद्देश्य से ब्रिटिश समर्थक मुसलमानों ने नवाब की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग की स्थापना की।

वर्ष 1908 में आगा खाँ को मुस्लिम लीग का स्थायी अध्यक्ष बनाया गया। 1916 ई. में लखनऊ समझौते के पश्चात् कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने एक ही मंच पर कार्य करने का निर्णय किया।

दिल्ली दरबार (1911 ई.)

तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने 1911 ई. में सम्राट जार्ज पंचम तथा महारानी मेरी को भारत बुलाया और दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन करवाया। इसी दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द करने तथा राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने (1912 ई.) की घोषणा की गई।

पश्चिमी तथा पूर्वी बंगाल को फिर से एक करने का बिहार और उड़ीसा नाम के प्रान्त के निर्माण की घोषणा भी हुई।

लखनऊ समझौता (1916 ई.)

कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में महात्मा गाँधी, सरोजिनी नायडू, अबुल कलाम आजाद आदि नेताओं के प्रयासों से कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता हो गया।

होमरूल आन्दोलन (1916 ई.)

एनी बेसेंट द्वारा आयरिश होमरूल लीग के आधार पर भारत में होमरूल आन्दोलन आरम्भ किया गया।

अप्रैल,1916 में तिलक ने बेलगाँव (महाराष्ट्र) में होमरूल लीग का गठन किया। इसकी गतिविधियां मध्य प्रान्त, महाराष्ट्र (बम्बई को छोड़कर), कर्नाटक एवं बरार तक सीमित थी।

सितम्बर, 1916 में एनीबेसेंट ने मद्रास में अपना होमरूल लीग आरम्भ किया।

होमरूल आन्दोलन का उद्देश्य था, कि जनता को शिक्षित किया जाए और कांग्रेस को अपने आन्दोलन तथा एकमात्र उद्देश्य के लिए आधार बनाने में सहायता दी जाए। इनका उद्देश्य सरकार पर दबाव डालकर भारत को स्वशासन दिलाना था।

रॉलेक्ट एक्ट एवं जालियावाला बाग हत्याकांड

वर्ष 1919 में देश में फैल रही राष्ट्रीयता की भावना एवं क्रांतिकारी गतिविधियां को कुचलने के लिए ब्रिटेन को पुनः शक्ति की आवश्यकता थी। इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट को नियुक्त किया गया।

इस रॉलेट बिल को जनता ने काला कानून नाम दिया था।

इसके विरोध में गाँधीजी ने 30 मार्च और 6 अप्रैल, 1919 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। बम्बई में सत्याग्रह सभा का गठन किया गया और सत्याग्रह नामक गैरकानूनी पत्र का प्रकाशन आरम्भ हो गया।

रॉलेट एक्ट विरोधी जनसभाओं में पंजाब के जनप्रिय नेताओं सत्यपाल एवं सैफुद्दीन किचलू को भाषण देने की मनाही सरकार ने कर दी और 10 अप्रैल, 1919 को इन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया।

भारतीय नेताओं की गिरफ्तारी के विरुद्ध 13 अप्रैल, 1919 की दोपहर को जलियावाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया।

जनरल डायर 150 सशत्र सैनिकों समेत वहाँ पहुँचा। डायर ने सैनिकों को वहाँ एकत्र भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया।

इस गोलीकांड में हजारों लोग मारे गए। इस हत्याकांड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी।

कांग्रेस के बार-बार आग्रह और सर्वव्यापी असंतोष को देखे हुए इस हत्याकांड की जांच के लिए अक्टूबर, 1919 में सरकार ने हंटर कमेटी के गठन की घोषणा की। इस कमेटी के अनुसार इस कांड में सरकार का कोई दोष नहीं था।

Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!