भारत में नागरिक सेवा का जन्मदाता ‘लार्ड कार्नवालिस‘ था। 1800 ई. में लार्ड वेलेजली ने नागरिक सेवा में आने वाले युवा लोगों के प्रशिक्षण के लिए कलकत्ता में ‘फोर्ट विलियम कॉलेज’ खोला।
ब्रिटिश प्रशासनिक संगठन
1833 में चार्टर एक्ट ने राज्य के उच्चतम पदों पर भारतीयों की नियुक्ति को कानूनी बना दिया, किन्तु 1793 ई. के कानून की धाराओं के रद्द न किए जाने के कारण यह व्यवहार में नहीं लाया जा सका।
प्रारम्भ में नागरिक सेवा में प्रवेश की अधिकतम आयु 23 वर्ष थी, 1859 ई. में 22 वर्ष, 1866 ई. में 21 वर्ष तथा 1878 ई. में 19 वर्ष कर दी गई।
1863 ई. में इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले प्रथम भारतीय रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बड़े भाई सत्येन्द्रनाथ ठाकुर थे।
1912 में भारतीय लोक सेवाओं पर लार्ड आइलिंगटन की अध्यक्षता वाले ‘राजकीय आयोग’ ने आईसीएस की परीक्षा भारत में भी लिये जाने की सिफारिश की।
1924 में ली कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ‘इंडियन सिविल सर्विस‘ इंडियन पुलिस सर्विस, इंजीनियर्स सर्विस की सिंचाई शाखा और इंडियन फोरेस्ट सर्विस के अखिल भारतीय अफसरों की नियुक्ति को पहले की तरह सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इन काउंसिल द्वारा नियुक्त किए जाने एवं हस्तांतरित विभागों की नौकरियों को प्रान्तीय सरकारों द्वारा नियंत्रित किए जाने की सिफारिश की गई।
ली कमीशन के रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1925 में एक ‘लोक सेवा आयोग’ की नियुक्ति दी गई। 1935 के अधिनियम में संघीय लोक सेवा आयोग तथा प्रान्तीय लोक सेवा आयोगों की व्यवस्था दी।
न्यायिक व्यवस्था
1772 ई. में प्रत्येक जिले में दीवानी एवं फौजदारी अदालतों की स्थापना की गई। अपीलीय अदालत के रूप में कलकत्ता में दो उच्च स्तरीय न्यायालयों की स्थापना की गई-सदर दीवानी अदालत एवं सदर निजामत अदालत।
1774 ई. में रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
1787 ई. में जिला न्यायालय पुनः कलेक्टर के अधीन कर दिये गए। ढाका, पटना एवं मुर्शिदाबाद को छोड़कर अब कलेक्टर राजस्व मामलों की देखरेख नहीं कर सकता था। क्योंकि अब यह अधिकार राजस्व परिषद् को हस्तांतरित कर दिया गया।
1790 से सदर निजामत अदालत का संचालन मुसलमान न्यायाधीश के स्थान पर गवर्नर जनरल एवं परिषद् द्वारा सीधे किया जाने लगा। 1790 में जिला फौजदारी अदालत समाप्त कर दिये गए और अब चार मुख्य फौजदारी न्यायालय कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, ढाका एवं पटना में स्थापित किए गए।
1793 में ‘कार्नवालिस संहिता‘ के अंतर्गत कलेक्टर सभी न्यायिक एवं दंडाधिकारों से वंचित कर दिये गए। ये अधिकार अब नये न्यायाधीशों को दिये गए। सबसे निचली अदालत मुंसिफ अदालत थी।
- 1833 के एक्ट द्वारा कानून बनाने के सारे अधिकार गवर्नर जनरल को हस्तांतरित कर दिये गए।
- 1861 में इंडियन हाईकोर्ट एक्ट पारित हुआ।
- 1865 में कलकत्ता, मद्रास एवं बम्बई में उच्च न्यायालय स्थापित किए गए।
- 1935 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गई।